मंगल (भौम) प्रदोष व्रत कथा, पूजा विधि tuesday pradosh vrat katha, puja vidhi in hindi
tuesday pradosh vrat katha, puja vidhi in hindi
दोस्तों आज हम आपको इस लेख के माध्यम से मंगल (भौम) प्रदोष व्रत कथा , पूजा विधि के बारे में बताने जा रहे हैं । चलिए अब हम आगे बढ़ते हैं और ध्यान से इस लेख को पढ़ते हैं ।

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पूजा विधि – मंगल प्रदोष व्रत एवं कथा त्रयोदशी के दिन कहीं जाती है । जब मंगल के दिन प्रदोष व्रत पड़ता है तब उस दिन इस व्रत को मंगल प्रदोष व्रत कहा जाता है । जो भी व्यक्ति इस व्रत को करता है वह सुबह प्रातः काल स्नान करके , अपने घर की साफ सफाई करके , घर में भगवान शिव की मूर्ति स्थापित करके, पूजा का सामान एकत्रित करके , आसन लगाकर विधि विधान से पूजा करनी चाहिए । शिव मूर्ति पर फूल माला चढ़ाना चाहिए ।
श्वेत वस्त्र धारण करते यह पूजा करनी चाहिए । यह पूजा हम मंदिर में भी जाकर कर सकते हैं । यदि आसपास मंदिर नहीं है तो घर पर भी कर सकते है । जो भी व्यक्ति इस व्रत को रखता है वह पूरे दिन ओम नमः शिवाय का जाप करता है और भगवान शिव की प्रार्थना एवं वंदना करता है । पूजा करने के बाद सभी को कथा सुननी चाहिए और व्रत का संकल्प लेना चाहिए ।
पूजा की थाली में रोली , हल्दी , चावल , गोल सुपारी , कलस , पान के पत्ते , कपूर , घी का दीपक , नारियल , धूपबत्ती , अगरबत्ती , अक्षत आदि सामान चाहिए होता है । पूजा के बाद हवन करने के लिए हवन सामग्री भी चाहिए होती है । हवन पीपल की सूखी लकड़ी से किया जाता है ।
कथा – एक गांव में एक बुढ़िया रहती थी उसका एक पुत्र था । जिसे वह बहुत प्रेम करती थी । वह वृद्धा नित्य दिन सुबह स्नान करके , पूजा पाठ करके हनुमान जी महाराज को भोग लगाया करती थी । वह कभी भी हनुमान जी महाराज को भोग लगाना नहीं भूलती थी । हर शनिवार एवं मंगलवार को हनुमान जी की विशेष पूजा-अर्चना करती थी और भोग लगाया करती थी । एक बार हनुमान जी महाराज ने विचार बनाया कि चलो इस वृद्धा की परीक्षा लेते हैं ।
हनुमान जी महाराज परीक्षा लेने के लिए उस वृद्धा के घर पर एक साधु का रूप धारण करके पहुंचे । मंगलवार के दिन हनुमान जी साधु का रूप धारण करके वृद्धा के द्वार पर जाकर कहने लगे । कोई घर में है तो बाहर आ जाओ और साधु की आवाज सुनकर वृद्धा बाहर आई और साधु महाराज से कहने लगी की है साधु महाराज मैं बड़ी सौभाग्य साली महिला हूं क्योंकि साधु महाराज के दर्शन मुझे प्राप्त हुए हैं । साधु महाराज ने उस बृद्धा से कहा कि मुझे भोजन कराओ ।
मुझे बहुत भूख लगी हुई है । साधु महाराज उस बृद्धा से कहा कि तू थोड़ी सी जमीन को गोबर से लिप दें जिससे कि मैं वहां पर बैठकर भोजन कर लूंगा । वह वृद्धा आश्चर्य में पड़ कर रह गई और उसने साधु महाराज से सीधे शब्दों में यह कह दिया कि है साधु महाराज आप लीपने और मिट्टी खोदने के अलावा जो भी कहोगे मैं करने को तैयार हूं । हनुमान जी ने उस बुढ़िया से वचन ले लिया और वृद्धा वचनबद्ध हो गई । हनुमान जी महाराज ने कहा कि तेरे बेटे को बुला मैं उसकी पीठ पर आग जलाकर खाना पका लूंगा ।
बुढ़िया यह सुनकर आश्चर्य में पड़ गई और उसे बड़ा दुख हुआ लेकिन उसमें साधु महाराज को वचन दिया था और वह बुढ़िया वचनबद्ध थी । इसलिए उस बुढ़िया ने बच्चे को बुलाकर उल्टा लेटा दिया था । बुढ़िया अपने बेटे को जलते हुए नहीं देख सकती थी इसलिए वह अंदर चली गई थी । हनुमान जी महाराज ने उसके बेटे की पीठ पर खाना बनाया । खाना बनाने के बाद साधु महाराज अंदर आए और बुढ़िया से कहने लगे कि तू तेरे बेटे को बुला ले हम सभी साथ में मिलकर भोजन करेंगे ।
वह वृद्धा औरत कहने लगी कि मेरा बेटा तो मर गया होगा । आप क्यों मेरी हंसी उड़ा रहे हो । हनुमान जी महाराज ने कहा कि तुम अपने बेटे को आवाज लगाओ । मैं जब तक भोजन नहीं करूंगा तब तक कि तुम्हारा बेटा नहीं आ जाता है । बुढ़िया ने साधु के कहे अनुसार बेटे को आवाज़ दी और उस बुढ़िया का बेटा सही सलामत वहां पर आया ।
बुढ़िया यह देखकर चकित रह गई और साधु महाराज के चरणों में गिर गई । इस तरह से वह वृद्धा हनुमान जी की परीक्षा में पास हो गई । उसको सुख , शांति एवं समृद्धि का आशीर्वाद हनुमान जी महाराज के द्वारा प्राप्त हुआ था । उसकी जीवन में खुशियां ही खुशियां भर गई भी । जो व्यक्ति यह व्रत करता है उसके दुख दूर हो जाते हैं , खुशियां आती है ।
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