तिरुपति बालाजी मंदिर का इतिहास Tirupati balaji temple history in hindi
Tirupati balaji temple history in hindi
Tirupati balaji temple – दोस्तों आज हम आपको इस आर्टिकल के माध्यम से तिरुपति बालाजी मंदिर के इतिहास के बारे में बताने जा रहे हैं । तो चलिए अब हम आगे बढ़ते हैं और इस आर्टिकल को पढ़कर तिरुपति बालाजी मंदिर के इतिहास के बारे में जानकारी प्राप्त करते हैं ।
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तिरुपति बालाजी मंदिर के बारे में – तिरुपति बालाजी मंदिर का पावन धाम भारत देश के आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले में स्थित है । जहां पर प्रतिवर्ष लाखों की संख्या में भक्तगण जाकर तिरुपति बालाजी के चरणों में माथा टेककर आशीर्वाद प्राप्त करते हैं । तिरुपति बालाजी के मंदिर को वेंकटेश्वर मंदिर , श्रीनिवास और गोविंदा मंदिर के नाम से भी सभी लोग जानते हैं । भारत देश का यह मंदिर 15 वी शताब्दी मे पूरी दुनिया में प्रसिद्ध हुआ था । इस मंदिर की सुंदरता वाकई में देखने के लायक है । जो भी भक्त इस मंदिर के दर्शन के लिए जाता है वह अपने जीवन में सुख समृद्धि और आनंद प्राप्त करता है ।
इतिहासकारों का यह मानना है कि तकरीबन 5 वी शताब्दी के दौरान हिंदू धर्म के लोगों के लिए यह स्थान धार्मिक स्थान था । तिरुपति बालाजी के इस पावन धाम के निर्माण के बारे में यह भी कहा जाता है कि तिरुपति बालाजी मंदिर का निर्माण वैष्णव संप्रदाय के द्वारा किया गया था । इस मंदिर की सुंदरता को देखने के बाद बहुत ही आनंद प्राप्त होता है । 9 वींं शताब्दी के दौरान इस मंदिर की सुंदरता को देखते हुए कांचीपुरम के पल्लव शासकों के द्वारा इस मंदिर पर कब्जा कर लिया गया था । मंदिर के अंदर और बाहर की सुंदरता देखने के लायक है ।
जब हम मंदिर के मुख्य द्वार से अंदर प्रवेश करते हैं तब हमें मंदिर के मुख्य द्वार के दरवाजे की दाई ओर एक छड़ी दिखाई देती है । उस छड़ी के बारे में ऐसा कहा जाता है कि वह छड़ी वही छड़ी है जिस छड़ी से बचपन में बालाजी को पीटा गया था । बालाजी की सुंदर चमत्कारी मूर्ति बालाजी गर्भ ग्रह के मध्य भाग में स्थित है जिस प्रतिमा के दर्शनों के लिए लाखों की संख्या में भक्तगण आते हैं । जो भी भक्तगण तिरुपति बालाजी मंदिर के दर्शनों के लिए जाता है वह तिरुपति बालाजी मंदिर से 5 किलोमीटर दूरी पर स्थित पद्मावती मंदिर के दर्शनों के लिए भी अवश्य जाता है ।
ऐसा कहा जाता है कि जब तक भक्तगण पद्मावती मंदिर के दर्शन नहीं करता है तब तक उस भक्तगण की तिरुपति मंदिर की तीर्थ यात्रा सफल नहीं होती है । तिरुपति मंदिर समुद्र तल से 3200 फिट ऊंचाई पर स्थित तिरुमाला पहाड़ी पर बना हुआ है । जहां की सुंदरता वाकई में देखने के लायक है । तिरुपति बालाजी और पद्मावती जो माता लक्ष्मी जी का ही अवतार है । इनके अवतार के बारे में पौराणिक ग्रंथ में यह बताया गया है कि जब समुद्र मंथन किया गया था तब समुद्र मंथन से 14 रत्न प्राप्त हुए थे । उन 14 रत्नों में एक माता लक्ष्मी जी भी थी ।
माता लक्ष्मी जी की सुंदरता को देखते हुए सभी देवी देवता , राक्षस माता लक्ष्मी जी की सुंदरता से मोहित हो गए थे और माता लक्ष्मी जी से विवाह करना चाहते थे । जब माता लक्ष्मी जी का विवाह समारोह आयोजित किया गया तब देवी देवता राक्षस माता लक्ष्मी जी से विवाह करने के लिए उपस्थित हुए थे । भगवान विष्णु भी उस विवाह आयोजन में उपस्थित हुए थे । माता लक्ष्मी जी ने विष्णु भगवान को माला पहनाकर उनसे विवाह कर लिया था ।जिसके बाद विष्णु भगवान ने माता लक्ष्मी जी को अपने बक्ष पर बसा लिया था ।
जब विष्णु भगवान ने माता लक्ष्मी जी को बक्ष पर बसाया तब यह रहस्य बन गया था कि माता लक्ष्मी जी को हृदय में क्यों नहीं बसाया गया । विष्णु भगवान ने माता लक्ष्मी जी को ह्रदय में इसलिए स्थान नहीं दिया क्योंकि हृदय में विष्णु भगवान के सभी भक्त बसे हुए थे । एक बार जब धरती के कल्याण के लिए यज्ञ का आयोजन किया गया तब उस यज्ञ के समापन के बाद यज्ञ फल ब्रह्मा , विष्णु , महेश तीनों में से किसको दिया जाए यह समस्या बन गई थी । इस समस्या का निराकरण करने के लिए देवी देवताओं के द्वारा भ्रगू ऋषि को चुना गया था । समस्या का निराकरण करने के लिए भ्रगू ऋषि सबसे पहले ब्रह्मा जी और शंकर भगवान के पास पहुंचे थे ।
पर भ्रगू ऋषि ने दोनों को यज्ञ फल प्राप्त करने के लायक नहीं समझा था । इसके बाद भृगु ऋषि विष्णु भगवान के दरबार में पहुंचे थे । उस समय विष्णु भगवान गहरी नींद के साथ विश्राम कर रहे थे । भ्रगू ऋषि ने विष्णु भगवान के बक्ष पर ठोकर मार दी थी । जब विष्णु भगवान की आंखें खुली तो वह भ्रगू ऋषि के चरणों में गिर गए और कहने लगेे थेे की कहीं आपके कोमल पैरों में कहीं चोट तो नहीं आ गई है । विष्णु भगवान का व्यवहार देखकर विष्णु भगवान को भ्रगू ऋषि जी के द्वारा यज्ञ फल देने की घोषणा की गई थी ।
जिस समय यह घटना हुई उस समय वहां पर लक्ष्मी जी भी मौजूद थी । वह यह देखकर बहुत क्रोधित हो गई और विष्णु भगवान से यह कहने लगी कि भ्रगू ऋषि के द्वारा बक्ष पर जो लात मारी गई है उस बात से मे बहुत दुखी हूं क्योंकि बक्ष पर सिर्फ मेरा ही अधिकार है । लक्ष्मी जी विष्णु भगवान से क्रोधित होकर वहां से चली गई थी । इसके बाद विष्णु भगवान उनको खोजते हुए पृथ्वी लोक पर आए थे । जब विष्णु भगवान पृथ्वी लोक पर आए तब विष्णु भगवान ने पृथ्वी पर श्रीनिवास के नाम से जन्म लिया था और माता लक्ष्मी जी ने पद्मावती के नाम से जन्म लिया था ।
दोनों का पृथ्वी पर पुनः विवाह किया गया था । उस विवाह में भ्रगू ऋषि भी उपस्थित हुए थे और भ्रगू ऋषि ने माता लक्ष्मी से क्षमा मांगी थी । माता लक्ष्मी जी ने भ्रगू ऋषि को क्षमा कर दिया था । उस विवाह में एक घटना भी घटी थी ऐसा कहा जाता है कि विष्णु भगवान ने माता लक्ष्मी जी को भेंट देने के लिए कुबेर से धन उधार लिया था और विष्णु जी ने कुबेर से यह कहा था कि कलयुग के समापन तक ब्याज सहित वह उस धन को चुका देंगे । इसीलिए तिरुपति बालाजी पर जो भी भक्तगण जाता है श्रद्धा के साथ जो चढ़ाता है वह विष्णु भगवान के उधार को चुकाने में सहायता करता है । जो भी भक्तगण दान चढ़ाता है वह वहां से खाली हाथ नहीं जाता है ।
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