दक्षिणेश्वर काली मंदिर का इतिहास व् रहस्य dakshineswar kali temple history in hindi
dakshineswar kali temple history in hindi
दोस्तों आज हम आपको इस आर्टिकल के माध्यम से दक्षिणेश्वर काली मंदिर के इतिहास व् रहस्य के बारे में बताने जा रहे जा रहे हैं । चलिए अब हम आगे बढ़ते हैं और दक्षिणेश्वर काली मंदिर के इतिहास को जानते हैं ।दक्षिणेश्वर काली मंदिर का इतिहास काफी पुराना एवं रोचक माना जाता है । दक्षिणेश्वर काली माता का मंदिर भारत देश के पश्चिम बंगाल के कोलकाता शहर में स्थित है ।
दक्षिणेश्वर काली माता का मंदिर हुगली नदी के तट पर बेलूर मठ के दूसरी तरफ स्थित है । इस मंदिर का इतिहास काफी पुराना माना जाता है । इस मंदिर के दर्शनों के लिए देश-विदेश से लाखों लोग आते हैं । इस मंदिर से आस्था सभी लोगों की जुड़ी हुई है । पश्चिम बंगाल के लोगों की आस्था दक्षिणेश्वर काली माता के मंदिर से जुड़ी हुई है । यह पूरे भारत का सबसे बड़ा एक ऐसा मंदिर है जिसमें काली माता की सबसे बड़ी मूर्ति लगी हुई है ।
इस मूर्ति के बारे में ऐसा कहा जाता है कि यह मूर्ति काली माता की इच्छा से स्थापित हुई है । इस मंदिर की बात करें तो इस मंदिर से कई विद्वान लोगों का नाता जुड़ा हुआ है ।विवेकानंद जी के जो गुरु थे श्री रामकृष्ण परमहंस जी उनका नाता भी इस मंदिर से जुड़ा हुआ था । विवेकानंद जी रामकृष्ण परमहंस जी से जुड़े हुए थे । उन्हीं से उन्होंने ज्ञान प्राप्त कर अपना ज्ञान बढ़ाया था । यह मंदिर बहुत ही अद्भुत एवं चमत्कारी मंदिर है ।
इस मंदिर के बाहर जैसे ही हम जाते हैं वहां पर परमहंस की पत्नी श्री शारदा माता तथा रानी रासमनी की समाधि भी मौजूद है । इस मंदिर के निर्माण के बारे में ऐसा कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण सन 1847 को प्रारंभ किया गया था । इस मंदिर का निर्माण कार्य 1855 को पूरा हुआ था । इस मंदिर के निर्माण के बारे में एक कहानी भी कही जाती है । जो सच्ची कहानी मानी जाती है । प्राचीन समय में पश्चिम बंगाल में एक रासमनी नाम की रानी रहती थी ।
वह रानी बहुत ही धनवान थी । उसके पास अथाह धन-संपत्ति थी ।रानी रासमनी विधवा थी । वह जिस भी व्यक्ति से शादी करती उसका पति मर जाता था । इस बात से वह रानी बहुत दुखी थी । धीरे-धीरे समय बीतता गया उसकी उम्र निकलती गई । जब उसकी उम्र का चौथा पहर हुआ तब उस रासमनी ने तीर्थ यात्रा करने का निर्णय लिया । रानी रासमनी ने यह विचार किया की में अपने तीर्थ की शुरुआत वाराणसी एवं कोलकाता से करूंगी ।
यह सोचकर वह तीर्थ यात्रा पर जाने के लिए तैयार हो गई थी । जब प्राचीन समय में किसी को वाराणसी से कोलकाता , कोलकाता से वाराणसी जाना होता था तो वह पानी की नाव में बैठकर अपनी यात्रा पूरी करता था । तो रानी भी उसी नाव में बैठकर यात्रा करने वाली थी । पूरी तैयारी करके रानी सोने के लिए जा रही थी और माता काली का ध्यान करते हुए रानी रासमनी अपने बिस्तर पर सो गई थी । जैसे ही रात होती जा रही थी रानी रासमनी को एक सपना आया ।
उस सपने में माता काली ने रानी रासमनी को दर्शन दिए और रानी से कहा कि तुझे तीर्थ यात्रा करने की कोई आवश्यकता नहीं है । यदि तू गंगा नदी के तट पर मेरा मंदिर बनवा दे और उसमें एक मूर्ति की स्थापना करवा दे तो मैं उस मूर्ति में समा जाऊंगी । जो भी मेरी पूजा सच्चे मन से करेगा मैं उसकी मुरादें पूरी करूंगी । ऐसा कहकर मां काली रानी रासमनी के सपने से अंतर्ध्यान हो गई । जब सुबह हुई तब रानी रासमनी की आंख खुली ।
जब रानी रासमनी की आंख खुली तब वह मंदिर बनवाने के लिए जगह की तलाश करने लगी और वह जगह ढूंढते ढूंढते नदी के तट पर पहुंची । एक जगह पर जब वह पहुंची तब उसके अंदर से एक आवाज आई कि इस स्थान पर ही मंदिर बनना चाहिए । रानी रासमनी ने उस स्थान को खरीद लिया और 1847 को उस मंदिर को बनाना प्रारंभ कर दिया था । रानी रासमनी के अथक प्रयासों से दक्षिणेश्वर काली मंदिर का निर्माण हुआ था ।दक्षिणेश्वर काली मंदिर का निर्माण कार्य 1855 को पूरा हो गया था ।
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