चिल्हो सियारो की कथा chilho siyaro katha in hindi

chilho siyaro katha in hindi

दोस्तों आज हम आपको इस आर्टिकल के माध्यम से चिल्हो सियारो  की कथा सुनाने जा रहे हैं । चलिए अब हम आगेे बढ़ते और चिल्हो सियारो की कथा पढ़ते हैं ।

chilho siyaro katha in hindi
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कथा – नर्मदा नदी के तट के पास एक कंचनबटी नाम का नगर था जो कि बहुत प्रसिद्ध नगर था । उस कंचनबटी नाम के नगर का राजा मलयकेतु था जो उस नगर पर अपना राज चलाता था । नदी के पश्चिमी दिशा की ओर एक मरुभूमि भी स्थिति थी।  जिस मरुभूमि को बालुहटा नाम से सभी लोग जानते थे । वहां पर एक बहुत विशाल बहुत बड़ा घना पेड़ था और उस पेड़ पर एक चील रहती थी । जहां पर वह अपना रेन बसेरा करती थी ।

पेड़ के नीचे एक गुफा थी जिसमें एक सियारिन रहती थी । सियारिन और चीन में बहुत गहरी मित्रता थी , बहुत गहरी दोस्ती थी । एक बार दोनों ने मिलकर यह निर्णय लिया कि हम दोनों एक अच्छे दोस्त हैं और हम दोनों को एक साथ मिलकर जितिया व्रत करना चाहिए । दोनों ने यह संकल्प लिया और व्रत किया था । दोनों ने जीऊतवाहन की पूजा सच्चे मन से की और निर्जला व्रत रखा । जिस दिन सियारिन और चील ने व्रत रखा था उस दिन उस नगर के एक बहुत बड़े व्यापारी की मृत्यु हो गई थी ।

उस व्यापारी का देह संस्कार उसी मरुस्थल भूमि पर किया गया था जहां पर चील और सियारिन रहते थे । जब धीरे-धीरे समय गुजरता जा रहा था , रात पास में आती जा रही थी , जैसे-जैसे रात्रि का समय पास में आ रहा था उस सियारिन  को बहुत भूख लग रही थी । जब उस सियारिन ने मुर्दा देखा तो वह खुद को नहीं रोक सकी और उसने उस मुर्दे को खा लिया । अपनी भूख मिटाने के लिए उसने मुर्दे को खा लिया था जिसके कारण उस सियारिन का व्रत टूट गया था , खंडित हो गया था ।

परंतु चील ने अपना व्रत नहीं तोड़ा और अपने ऊपर नियंत्रण रखा । दूसरे दिन चील ने उस व्रत का पारण किया । पूरी विधि विधान से व्रत का पारण करके भोजन किया था । सियारिन और चील का जन्म अगले जन्म में पता है । सियारिन और चील एक ब्राह्मण के घर में जन्म लेती हैं । यह दोनों ब्राह्मण के घर पर पुत्री के रूप में जन्मी थी । दोनों आपस में बहने थी । उस ब्राह्मण का नाम भास्कर था । जो चील थी वह बड़ी बहन के रूप में पंडित के यहां , ब्राह्मण के यहां जन्मी थी ।

उस जन्म में चील का नाम शीलबती रखा गया था । जो शीलबती थी उसकी शादी उसके पिता भास्कर ने एक  व्यक्ति जिसका नाम बुद्धि सिंह था उसके साथ कर दी थी । भास्कर ब्राह्मण के घर पर सियारिन ने छोटी बेटी के रूप में जन्म लिया था और भास्कर ब्राह्मण ने उसका नाम कपुरावती रखा था । भास्कर ब्राह्मण ने अपनी छोटी बेटी का विवाह नगर के राजा मलायकेतु से कर दिया था । छोटी बहन कपुरावती उस नगर के राजा की पत्नी होने से उस नगर की रानी बन गई थी ।

उस नगर का नाम कंचनबटी था । भगवान जीऊतवाहन की कृपा से शीलबती की सात संताने हुई थी लेकिन कपुराबती की कोख से बच्चे जन्म लेते और मर जातेेे थे । इस तरह से कपुराबती की कोई भी संतान नहीं थी । समय बीतता गया और शीलबती के सातों पुत्र बड़े हो गए थे । जब वह पुत्र बढ़े हुए तब राजा केेे दरबार में काम करने लगे थे । जब कपुराबती ने उन सात पुत्रों को देखा तब उसको  ईर्ष्या होने लगी थी । कपुराबती ने राजा से कहकर उन सातों पुत्रों की गर्दन कटवा दी थी ।

उसने नए बर्तनों में कटे हुए सिर रखवा कर लाल कपड़े से ढककर शीलबती के पास भिजवा  दिए थे । यह सब देख कर जीऊतवाहन भगवान ने मिट्टी के सातों भाइयों के सिर बनाकर और उनके धड़ से सिर को जोड़ कर उन पर अमृत छिड़क दिया था । अमृत छिड़कने के बाद उन सभी में जान आ गई थी । सातों केेे सातों पुत्र जीवित हो गए थे और अपनेेेे घर वापस चले गए थे । जो सर रानी ने काटे थेेेे वे सभी सिर फल एवं फूल बन गए थे ।

रानी कपुराबती बुद्धि सेन के घर से  बच्चों की मौत की खबर  सुनने के लिए व्याकुल थी । जब बहुत समय बीत गया और कपुराबती के पास  उन सात भाइयों की मौत की खबर नहीं आई तब कपुराबती स्वयं अपनी बड़ी बहन के घर पर गई । जब कपुराबती अपनी बड़ी बहन के यहां पहुंची तो उसने सभी भाइयों को जिंदा  देखा तो उसे बड़ा आश्चर्य हुआ । कपुराबती उन सभी भाइयों को जिंदा देख कर बेहोश हो गई थी । जब कपुराबती को होश आया तब उसने अपनी बड़ी बहन को सारी बात बता दी और पछताने लगी ।

कपुराबती अपनी बड़ी बहन से गलती की क्षमा मांगने लगी थी । भगवान जीऊतवाहन  की कृपा से  शीलबती को अपने पूर्व जन्म की कहानी याद आ गई थी और बड़ी बहन कपुराबती को  उस पेड़ के पास ले गई  और उस  पेड़  की कहानी बता दी थी । जैसे ही  कपुराबती ने अपनी कहानी सुनी वह बेहोश हो गई और उसका देहांत हो गया था । जब राजा को इस बात की खबर मिली तो राजा ने अपनी पत्नी कपुराबती का दाह संस्कार उसी पेड़ के नीचे कर दिया था ।

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