जूते की आत्मकथा निबंध Autobiography of a shoe in hindi
Autobiography of a shoe in hindi
दोस्तों आज हम आपके लिए लाए हैं पैरों में पहनने वाले जूते की काल्पनिक आत्मकथा को. इस आर्टिकल में हमने एक जूते की काल्पनिक कथा को विस्तृत रूप से चित्रित किया है आप इसे जरूर पढ़ें तो चलिए पढ़ते हैं आज के इस लेख को
आप सब मुझे जानते ही हैं मैं कोई और नहीं पैरों में पहनने वाला जूता हूं. मेरा निर्माण जूते बनाने वाली कई प्रकार की मशीनों के द्वारा हुआ है. पहले जूते हाथों से ही बनाए जाते थे लेकिन अब मशीनों के द्वारा बहुत ही जल्द जूते बनाए जाते हैं, जूते बनने के बाद मेरे मालिक ने मेरी जांच की और अपने कारखाने में मेरे अन्य साथियों के साथ मुझे रख दिया. मैंने देखा कि वहां पर मेरे कई परिवार के लोग भी थे जो बिल्कुल मेरी तरह ही दिखते थे. कुछ छोटे थे तो कुछ बड़े भी थे, कुछ मेरे दोस्त थे मुझे उनके साथ रहना बहुत ही अच्छा लगता था.
कुछ समय बाद एक मॉल में मैं अपने साथियों के साथ चला गया दरअसल कुछ लोगों ने मुझे बेचने के लिए मुझे मेरे मालिक से खरीद लिया था. अब मेरा मालिक नया बन गया था जब मॉल में मैं गया तो मैंने देखा कि कई तरह की चीजें चारों ओर हैं. मेरी तरह अन्य आकर्षक जूते भी हैं कई तरह के पेंट शर्ट, मनुष्य जो अपने घर में खाना बनाने में उपयोगी सामग्री उपयोग में लाता है वह सभी वहां पर उपलब्ध थी. कई तरह के बैग, पानी से बचने वाला छाता वह सभी सामान मैंने वहां पर देखा. उस मॉल में मुझे तीसरी मंजिल पर रखा गया कुछ पल तो ऊपर जाते समय मुझे डर लगा कि कहीं में गिर ना जाऊं लेकिन मैं अपने मालिक के साथ तीसरी मंजिल पर अच्छी तरह से पहुंच गया.
तीसरी मंजिल पर चारों और जूते ही जूते थे बहुत सारे लोग जूते खरीदने के लिए भी खड़े थे. मैं भी एक अलमारी में रख दिया गया कुछ देर हुई थी कि एक व्यक्ति मुझे खरीदने के लिए देखने लगा लेकिन किसी वजह से उसने मुझे नहीं खरीदा यह देखकर मुझे काफी खुशी हुई क्योंकि मैं अब अकेला जाना नहीं चाहता था लेकिन दो-तीन दिन बाद ही एक ग्राहक आया उसने मुझे पसंद किया और अपने साथ ले चला. उसने मुझे अपने बैग में पैक करके रखा. घर ले जाने के बाद उसने मुझे अपने पूरे परिवार को दिखाया सभी लोगों के चेहरे पर मुस्कान थी, उसके बच्चे भी थे वह मुझे देखकर काफी खुश हो रहे थे.
अगले दिन वह मेरा मालिक मुझे लेकर अपने ऑफिस में ले गया वहां पर मैंने देखा की बड़ी सी टेबल लगी हुई थी चारों और कांच की दीवार प्रतीत हो रही थी एकदम अच्छा लगा मुझे यह सब देखकर क्योंकि मैंने पहली बार ही ऐसा नजारा देखा था मैं सिर्फ अपने परिवार और दोस्तों के बीच में ही अपनी जिंदगी समझता था लेकिन यहां मेरा अनुभव कुछ अलग था मेरा नया मालिक मुझे अपने पैरों में पहनकर रोज अपने ऑफिस आता और शाम को रोज घर पहुंच जाता, मुझे अच्छा भी लगता लेकिन परिवार से बिछड़ने के कारण थोड़ा दुख भी होता लेकिन कुछ ही समय बाद मैं अपने परिवार को भूल गया.
अब मेरी जिंदगी अपने मालिक के साथ रहने में ही थी, मैं चुपचाप मालिक के दरवाजे पर बैठा रहता मालिक से कुछ भी ना कहता, चलते चलते एक दिन में फस गया और मेरे मालिक ने मुझे अपने घर के एक कोने में पटक दिया मुझे यह सब अच्छा नहीं लगा लेकिन मेरी नई मालकिन ने एक दिन एक गरीब से दिखने वाले एक व्यक्ति को मुझे सौंप दिया, उसने मुझे बाजार में ले जाकर मेरी सिलाई करवाई और मैं फिर से नए जूते की तरह देखने लगा.
मैं समझ गया था कि मेरी कद्र तो एक गरीब ही कर सकता है, अमीर लोग तो सिर्फ जूते लेते हैं और थोड़ा सा फट जाने पर उसे फेंक देते हैं. इस गरीब ने मेरी कद्र की, मुझे बहुत ही अच्छा लगा मेरा यह गरीब मालिक वास्तव में मुझे बहुत ही प्यारा लगता है, मैं हमेशा जी जान से उसकी सेवा करता हू.
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