क्या मानवता से ऊपर राष्ट्रवाद है निबंध What is nationalism above humanity essay in hindi
What is nationalism above humanity essay in hindi
What is nationalism above humanity – दोस्तों आज हम आपको इस आर्टिकल के माध्यम से क्या मानवता से ऊपर राष्ट्रवाद है ? पर लिखे निबंध के बारे में बताने जा रहे हैं । तो चलिए अब हम आगे बढ़ते हैं और इस आर्टिकल को पढ़कर क्या मानवता से ऊपर राष्ट्रवाद है ? पर लिखे निबंध के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त करते हैं ।
मानवता और राष्ट्रवाद – मानवता और राष्ट्रवाद दोनों में किसी भी तरह का कोई भी अंतर नहीं होता हैं । जिस व्यक्ति के अंदर मानवता नहीं होती है उसके अंदर दूसरे के प्रति दया , करुणा भाव की भावना नहीं होती है वह इंसान नहीं कहलाता है। वह अपनी मानवता को खो देता है । एक राष्ट्रभक्त जो अपने देश के प्रति अपनी जान निछावर करने के लिए हमेशा तत्पर रहता है वह अपने अंदर मानवता बनाए रखता हैं । वह हमेशा दूसरे के हित में कार्य करता रहता है ।
उसे अपनी सफलता से कुछ भी मतलब नहीं रहता है वह मानवता के विकास के लिए , राष्ट्रहित के विकास के लिए कार्य करता है । मानवता क्या होती है ? दूसरों के कल्याण के लिए कार्य करें ऐसी सोच मानवता होती है । जो व्यक्ति अपने आप को राष्ट्र भक्त कहता है यदि उस व्यक्ति के अंदर मानवता नहीं होती है तो वह राष्ट्रभक्त कहलाने का हकदार नहीं होता है । कहने तात्पर्य यह है की वह अपने स्वार्थ के लिए राष्ट्रभक्ति का दामन ओढ़ कर ढोंग रचता है । ऐसे व्यक्ति देश के लिए खतरनाक होते हैं । ऐसे व्यक्ति देश के अंदर अशांति फैलाने का कार्य करते हैं ।
वह राष्ट्रभक्ति के नाम पर दंगे फसाद कराकर देश की शांति को भंग करते हैं । अपने आप को राष्ट्रभक्त कह कर धर्म जाति के नाम पर देश में अशांति फैलाते है । देश में अशांति फैलाना राष्ट्रवाद नहीं होता है । राष्ट्रवाद के साथ मानवता का होना बहुत ही जरूरी होता है । मानवता से ही एक अच्छे राष्ट्र का निर्माण होता है । जब अच्छे राष्ट्र का निर्माण होगा तो देश के विकास कार्य में काफी तेजी आएगी और एक अच्छे राष्ट्र का निर्माण होगा । मानवता व्यक्ति के अस्तित्व की पहचान होती है । जो व्यक्ति अपने अस्तित्व की पहचान कर लेता है वह एक इंसान बन जाता है ।
उसी व्यक्ति ने मानवता जागृत होती है और वह अपने परिवार के साथ साथ अपने समाज , अपने देश का नाम रोशन करता है । अपने देश , समाज की भलाई के लिए कार्य करता है । जो व्यक्ति राष्ट्र और समाज के लिए निस्वार्थ भाव से कार्य करता है उस व्यक्ति के अंदर मानवता होती है और वही व्यक्ति राष्ट्र के उज्जवल भविष्य की कामना करता है । हमारे भारत देश के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी के भी यही विचार थे की राष्ट्रीयता और मानवता दोनों एक ही होते हैं । इनमें किसी भी तरह का कोई भी अंतर नहीं होता है । राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी का यह मत बहुत ही प्रचलित हैं । कई महान लोगों ने महात्मा गांधी जी के इस मत को स्वीकार किया था ।
आज भी गांधीवादी लोग महात्मा गांधी जी के सुविचार को अपना कर आगे बढ़ रहे हैं । राष्ट्रभक्त देश के विकास के लिए बहुत जरूरी है । उससे भी ज्यादा जरूरी है व्यक्ति को मानवता अपनाना । जब तक व्यक्ति अपनी मानवता को जिंदा नहीं करेगा तब तक वह राष्ट्र हित के लिए निस्वार्थ कार्य नहीं कर सकता है । जो व्यक्ति अपने स्वार्थ के लिए राष्ट्रवाद का चोला पहनकर कार्य करता है वह कभी भी राष्ट्र हित के लिए कार्य कर ही नहीं सकता है ।उसके द्वारा जो भी कार्य किया जाएगा पर अपने भलाई के लिए कार्य करेगा ।
मानवता की भलाई के लिए , विश्व कल्याण के लिए मानवता का होना बहुत ही जरूरी है ।लोगों के कल्याण के लिए मानवता का होना जरूरी है ।मनुष्य अपने परिवार , देश , समाज और अपने उज्जवल भविष्य की कामना करने से पहले मानवता को अपना ले तो वह अपना , अपने परिवार का और देश का नाम रोशन कर सकता है । वह एक अच्छे राष्ट्र का निर्माण करने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है । महात्मा गांधी के सुविचार के अनुसार राष्ट्रीयता और मानवता एक ही चीज है ।
महात्मा गांधी के सुविचार के अनुसार यह बताया गया है कि राष्ट्रभक्त जो नियम अपनाकर राष्ट्र के हित के लिए कार्य करता है वही कार्य किसी परिवार का मुखिया करता है । घर के मुखिया को नियमों से घर चलाना होता है उसी तरह से एक राष्ट्रभक्त राष्ट्र के सभी लोगों के कल्याण के लिए कार्य करता है । जब घर के मुखिया पर किसी तरह की कोई परेशानी आती है तब पूरा परिवार मुखिया के साथ खड़ा होकर उस परेशानी से लड़ने लगता है । ठीक उसी तरह जब राष्ट्रभक्त किसी कठिनाई में आता है तो राष्ट्रभक्त की मानवता को देखते हुए सभी लोग उसके साथ खड़े हो जाते हैं और राष्ट्र निर्माण में सभी लोग कदम से कदम मिलाकर अपना महत्वपूर्ण योगदान देते हैं ।
मानवता के ऊपर राष्ट्रवाद नहीं होता है बल्कि मानवता और राष्ट्रवाद दोनों एक ही चीज होते हैं । यदि दोनों में से किसी एक को हटा दिया जाए तो एक अच्छे राष्ट्र का निर्माण नहीं किया जा सकता है । कहने का तात्पर्य यह है कि एक विकसित राष्ट्र के निर्माण के लिए इंसान के अंदर मानवता रूपी धन अवश्य होना चाहिए । जब इंसान के अंदर मानवता होगी तब वह एक विकासशील राष्ट्र का निर्माण करेगा । व्यक्ति के अंदर दया करुणा , भक्ति भावना की सोच होनी चाहिए । दया करुणा भाव की भावना होने पर ही उस व्यक्ति के अंदर मानवता जागृत होती है ।
जब व्यक्ति के अंदर मानवता जागृत होती तब वह राष्ट्र निर्माण में अपना योगदान देता है और लोगों के कल्याण के लिए कार्य करता है ।
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