नर्मदा की भ्रमण की आत्मकथा Narmada nadi ki atmakatha in hindi
Narmada nadi ki atmakatha in hindi
Narmada nadi – दोस्तों आज हम आपको इस आर्टिकल के माध्यम से नर्मदा की भ्रमण की आत्मकथा के बारे में बताने जा रहे हैं तो चलिए अब हम आगे बढ़ते हैं और इस काल्पनिक आर्टिकल को पढ़कर नर्मदा की भ्रमण की आत्मकथा के बारे में जानकारी प्राप्त करते हैं ।
नर्मदा के भ्रमण की आत्मकथा के बारे में – मैं नर्मदा बोल रही हूं । मैं प्राचीन समय से ही भारत की एक शुद्ध और पवित्र नदी के रूप में पहचानी जाती रही हूं । आज जहां पर हिमालय है वहां पर तकरीबन करोड़ों वर्ष पूर्व उथला हुआ समुद्र हुआ करता था । परंतु जब एक भयानक भूकंप का आगमन हुआ तब उथला हुआ समुद्र हिमालय में बदल गया था । मेरे होने से पहले तकरीबन चार करोड़ वर्ष पूर्व के समय में मेरे स्थान पर अरब सागर का सकरा हिस्सा हुआ करता था । परंतु समय बीतने के साथ-साथ अरब सागर का सकरा हिस्सा लुप्त हो गया और मेरा निर्माण हुआ ।
मेरी उम्र के बारे में मैं आपको बता देना चाहती हूं कि मैं गंगा से बड़ी हूं क्योंकि जब मेरा निर्माण हुआ उस समय गंगा नहीं थी । इसलिए मैं गंगा नदी से बड़ी हूं । मेरे स्थान के आसपास प्राचीन समय में कई महान ऋषि के आश्रम रहे हैं क्योंकि महान ऋषि नर्मदा नदी को पवित्र मानते थे और नर्मदा नदी के तट पर तपस्या किया करते थे । मेरे तट पर कई महान ऋषियों के द्वारा तप किया गया है । उन महान ऋषियों के नाम इस प्रकार से हैं । मार्कंण्डेय ऋषि , कपिल ऋषि , भग्गू ऋषि , जमदग्नि ऋषि और भी कई महान ऋषि मुनि मेरे तट पर तपस्या कर चुके हैं ।
इन सभी महान ऋषियों में से किसी एक ने मेरा नाम रेवा रखा था । रेवा का अर्थ होता है कुंदना क्योंकि मेरा जल पहाड़ियों से नीचे की तरफ गिरता हुआ दिखाई देता था । इसलिए एक ऋषि के द्वारा मेरा नाम रेवा रखा गया था । इसके बाद दूसरे ऋषि के द्वारा मेरा नाम नर्मदा रखा गया और आगे चलकर मुझे नर्मदा के नाम से पुकारा जाने लगा था । मैं भारत की सात प्रमुख नदियों में से एक हूं । मेरी पवित्रता का बखान ग्रंथों में भी किया गया है । भारतीय पौराणिक ग्रंथों में भी मेरा उल्लेख किया गया है ।
मैं नर्मदा आप लोगों को बताना चाहती हूं कि स्कंद पुराण में जो रेवा खंड लिखा गया है उस रेवा खंड में मेरा उल्लेख किया गया है । कहने का तात्पर्य यह है कि स्कंद पुराण का रेवा खंड मुझ पर ही समर्पित है । मैं पश्चिम की ओर सदा रहती हूं । मेरे ऊपर एक कहानी भी कहीं जाती है । कहानी में यह बताया जाता है कि मैं और सोन का उद्गम पास पास में होता है । कहानी में यह बताया जाता है कि मेरा और सोन का विवाह होने वाला था परंतु सोन की नजर मेरी दासी जूहीया पर पड़ी तब सोन मेरी दासी पर मोहित हो गया था । जिसके बाद मैंने विवाह न करने का संकल्प लिया और मैं पश्चिम की ओर चली गई थी ।
इस तरह से और भी कई कहानियां मेरे ऊपर सुनाई जाती हैं । जब कोई भक्त मेरी परिक्रमा करता है तब उसे आनंद प्राप्त होता है । जब कोई भक्त श्रद्धा के साथ भिक्षा मांगते हुए नंगे पैर मेरी परिक्रमा करता है तब वह आनंदित हो जाता है । जब कोई भक्त मेरी परिक्रमा सभी नियमों से करता है तब उस भक्त को तकरीबन 3 वर्ष 3 महीने 13 दिन लग जाते हैं । मेरे तट पर जो भी व्यक्ति निवास करता है वह शुद्ध वातावरण प्राप्त करता है । मेरे आस-पास का वातावरण शुद्ध और स्वच्छ रहता है । मेरे तट पर ज्यादातर आदिम जातियां निवास करती हैं । मेरी परिक्रमा लगाने वाले व्यक्ति को मैं आशीर्वाद देती हूं कि वह सदा अपने जीवन में खुश रहे ।
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