कोटा दशहरा मेला का इतिहास Kota dussehra mela history in hindi

Kota dussehra mela history in hindi

Kota dussehra –  दोस्तों आज हम आपको इस आर्टिकल के माध्यम से कोटा दशहरा मेला के इतिहास के बारे में बताने जा रहे हैं । चलिए अब हम आगे बढ़ते हैं और एक जबरदस्त आर्टिकल को पढ़कर कोटा दशहरा मेला के इतिहास के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त करते हैं ।

Kota dussehra mela history in hindi
Kota dussehra mela history in hindi

Image source – https://www.ohmyrajasthan.com/kotadussehramela-dussehr

कोटा दशहरा मेला के बारे में – कोटा दशहरा मेला भारत देश का सबसे प्राचीन उत्सव है । जो राजस्थान राज्य के कोटा में बड़े ही धूमधाम से प्रतिवर्ष मनाया जाता है । यह उत्सव नवरात्रि के पहले दिन से ही प्रारंभ हो जाता है और यह उत्सव रावण दहन तक , दशमी तक चलता है और इस मेले को देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं और अपने जीवन में आनंद प्राप्त करते हैं । इस मेले की तैयारी राजस्थान राज्य की प्रशासन 1 से 2 महीने पहले से ही करना प्रारंभ कर देती थी क्योंकि भारत देश के कोने कोने से लोग कोटा के दशहरा उत्सव को देखने के लिए आते हैं ।

कोटा के दशहरा मेले की प्राचीन सभ्यता के बारे में – प्राचीन समय से ही कोटा मे दशहरा मेला लगता है । जहां पर प्राचीन समय में वहां के राजा के द्वारा कई सांस्कृतिक चित्रकारी प्रतियोगिता रखी जाती थी । कोटा में बाहर से आए हुए लोगों के मनोरंजन के साधन भी जुटाए जाते थे ।प्राचीन समय के राजाओं के द्वारा काफी प्रयास किया गया कि कोटा के दशहरे मेले को पूरी दुनिया में प्रचलित किया जाए । प्राचीन सभ्यता में कोटा के दशहरे मेले का शुभारंभ किया गया था । जो आज तक बड़े ही हर्षोल्लास के साथ वहां पर मेला लगाया जाता है ।

राजस्थान के साथ-साथ भारत के कई राज्य के लोगों की आस्था कोटा के दशहरा मेला से जुड़ी हुई है और वह अपने जीवन में आनंद प्राप्त करने के लिए , कोटा दशहरा मेले को देखने के लिए जाते हैं और अपने जीवन में खुशी का अनुभव करते हैं ।

कोटा में दशहरे मेले की शुरुआत के बारे में – प्राचीन समय में जब कोटा के राजा राव माधव सिंह थे तब वहां पर दशहरे के उत्सव को बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता था ।कोटा में दशहरा उत्सव नवरात्रि के पहले दिन से ही प्रारंभ हो जाता था और कई लोग वहां पर इस उत्सव को देखने के लिए आते थे । महाराज राव माधव सिंह के द्वारा इस उत्सव की शुरुआत डाढ़ देवी के पूजन से की जाती थी । महाराज राव माधव सिंह के द्वारा इस दिन कोटा से सवारी भी निकाली जाती थी ।

जो सवारी डाढ़ देवी के मंदिर पर जाकर रुकती थी और वहां पर सभी एकत्रित होते थे । जब सप्तमी का दिन आता था तब उस दिन भी महाराज राव माधव सिंह के द्वारा कोटा शहर में सवारी निकाली जाती थी और सवारी सबसे पहले महारांंव नांता की भेरुजी के मंदिर जाती थी ।  कुछ समय भेरुजी के मंदिर मे  सवारी रोकी जाती थी । इसके बाद भेरूजी के मंदिर से सवारी निकाली जाती थी फिर यह सवारी अभेड़ा में स्थित करणी माता के मंदिर पहुंची थी और वहां पर महाराज राव माधव सिंह के द्वारा करणी मैया की पूजा अर्चना की जाती थी ।

इसके बाद जब अष्टमी का दिन आता था तब राव माधव सिंह महाराज के राज महल की सभी जनानी एवं महा रावगढ़ की सभी जनानी सुबह प्रातः काल उठकर कोटा शहर की सभी जनानी यों के साथ मिलकर डयोढ़ी मे स्थित आशपुरा माता के मंदिर जाती थी और वहां पर सभी जनानी  माता की पूजा , अर्चना करती थी । इसके बाद इसी दिन महाराज राव माधव सिंह के द्वारा ब्रजनाथ मंदिर  की भी पूजा अर्चना की जाती थी । पूजा अर्चना के साथ साथ महाराज के द्वारा हवन भी किया जाता था ।

जब अष्टमी के दिन शाम होती थी तब महाराज राव माधव सिंह के कहने पर शाम को 6:00 बजे कोटा के हथिया पुल के बाहर एक छोटी से चबूतरे पर दरी खाना प्रतियोगिता रखी जाती थी । इसके बाद जब नवमी का दिन आता है तब महाराज राव माधव सिंह के द्वारा आशापुरा की सवारी निकाली जाती थी और यह सवारी शाम के समय 5:00 बजे आशापुरा पहुंचती थी और आशापुरा में स्थित मंदिर पर सवारी को रोका जाता था । आशापुरा पर उब देवी की पूजा अर्चना की जाती थी ।

इसके बाद दशमी के दिन मेला लगाने की प्रथा भी महाराज के द्वारा प्रारंभ की गई थी ।  दशहरा के दिन कोटा के अंदर यह उत्सव बड़े धूमधाम से मनाया जाता था । भारत देश मे मैसूर और कुल्लू मे दशहरा बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है और मैसूर कुल्लू के साथ-साथ कोटा का दशहरा भी बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है । जो पूरे विश्व में पहचाना जाता है । कोटा में यह दशहरा पर्व प्राचीन समय से , तकरीबन 400 वर्ष पहले से ही मनाया जाता रहा है । इसीलिए यह राजस्थान के कोटा शहर का सबसे प्राचीन उत्सव है । जिस उत्सव की शुरुआत राब माधव सिंह के द्वारा की गई थी ।

इस मेले की शुरुआत के बारे में ऐसा कहा जाता है कि राव माधव सिंह के द्वारा इस मेले की पहली शुरुआत 1892 में की गई थी क्योंकि वह दशहरे पर्व को बड़े ही धूमधाम से मनाते थे । आज भी कोटा मे जब दशहरा मनाया जाता है तब देश विदेश से कई लोग कोटा के दशहरे को देखने के लिए आते हैं और अपने जीवन में आनंद प्राप्त करते हैं । जब कोटा शहर मे कोटा दशहरा मेले का 100 बा उत्सव दिवस 1992 में मनाया गया था तब इस उत्सव को प्रशासन के द्वारा ऐतिहासिक कार्यक्रमों के साथ मनाया गया था ।

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