जोधपुर किला का इतिहास Jodhpur kila history in hindi
Jodhpur kila history in hindi
Jodhpur kila – दोस्तों आज हम आपको इस आर्टिकल के माध्यम से भारत देश के राजस्थान राज्य के जोधपुर के किले का इतिहास बताने जा रहे हैं । चलिए अब हम आगे बढ़ते हैं और राजस्थान का किला जोधपुर किला के बारे में जानकारी प्राप्त करते हैं ।
जोधपुर किला मेहरानगढ़ दुर्ग के बारे में – भारत देश कई प्राचीन किलो के लिए पहचाना जाता है । भारत देश के जोधपुर में स्थित मेहरानगढ़ दुर्ग बड़ा ही सुंदर और अद्भुत किला है । जिस किले को बनवाने में काफी कलात्मक चीजों का उपयोग किया गया है । यह किला जोधपुर शहर की सुंदरता में चार चांद लगाता है । इस किले का निर्माण 15 वी शताब्दी के दौरान किया गया था । इस किले की नीव पथरीली पहाड़ी पर रखी गई थी । जो पहाड़ी जमीन से 125 मीटर ऊंचाई पर स्थित थी ।
इस किले के अंदर मुख्य 8 द्वार हैं । जिनमें सात द्वार नॉर्मल है जो सीधे दिखाई देते हैं । जो 8 वा द्वार है वह गुप्त द्वार है । जिस द्वार को बनाने में कई तरह की सावधानियां रखी गई हैं ।अब हम बात करते हैं इस किले के निर्माण की नींव के बारे में । इस किले के निर्माण मे जोधपुर के साहसी राजा राव जोधा का महत्वपूर्ण योगदान है । जो रणमल सिंह की 24 वी संतानों में से एक थे । जिसको जोधपुर का 15 वा शासक नियुक्त किया गया था । जब राव जोधा ने जोधपुर की भागदौड़ सभांली तब उनको यह लगा की यह किला सुरक्षित नहीं है ।
इसके बाद राव जोधा ने एक सुरक्षित किले के निर्माण की नींव रखी थी । राजा राव जोधा ने किले के निर्माण के लिए एक पहाड़ी इलाका नियुक्त किया था । जिस पहाड़ी इलाके को उस समय भोर चिड़ियाटूंक कहां जाता था । राजा राव जोधा के द्वारा इस किले की नींव तकरीबन 12 मई 1459 ईसवी में रखी गई थी । इसके बाद इस महल का निर्माण कार्य महाराज जसवंत सिंह के द्वारा पूरा किया गया था । जब महाराज जसवंत सिंह ने इस किले के निर्माण कार्य को पूरा करने का निर्णय लिया तब उसके द्वारा किल्ले के मुख्य 8 द्वार बनवाए गए थे ।
जिन मुख्य द्वारों की सुंदरता दर्शनीय हैं । आज जब देश-विदेश से पर्यटक जोधपुर के इस किले की सुंदरता को देखने के लिए जाते हैं तब वह अपने जीवन में आनंद प्राप्त करते हैं । आज भी इस किले को सबसे सुंदर और सबसे प्राचीन किला माना जाता है । इस अद्भुत किले के अंदर फूल महल दर्शनीय है । जिसकी सुंदरता की प्रशंसा जितनी की जाए उतनी कम है । इसके साथ साथ इस किले के अंदर मोती महल भी है । जिसकी भी सुंदरता बहुत अच्छी है । इसके साथ-साथ शीश महल , दौलत खाना , सिलेह खाना भी इस किले की सुंदरता में चार चांद लगाते हैं ।
इस किले के अंदर जो भव्य भव्य महल हैं वे सभी भव्य महल अद्भुत नक्काशी के माध्यम से सजाए गए हैं । इस महल के जालीदार किवाड़ , खिड़कियां दर्शनीय हैं । जिसकी सुंदरता देखने के लायक है । इस किले के चारों तरफ 8 किलोमीटर ऊंची दीवार भी नियुक्त की गई है । किले के अंदर कई बुर्ज भी लगे हुए हैं । अब हम बात करते हैं इस अद्भुत चमत्कारी महल के द्वारों के बारे में । इस महल का जो प्रथम द्वार है वह द्वार बहुत ही सोच समझकर बनाया गया है । प्रथम द्वार को हाथियों के हमले से बचाने के लिए इसमें नुकीले कीले लगाए गए हैं ।
जिससे कि हाथियों के हमले से बचा जा सके । इसके बाद महल में जो जयपोल द्वार है इस द्वार के निर्माण में महाराज मानसिंह का महत्वपूर्ण योगदान है । जिस द्वार का निर्माण राजा मानसिंह ने 1806 में करवाया था और इस द्वार का निर्माण राजा मानसिंह ने बीकानेर और जयपुर पर विजय प्राप्ति के बाद करवाया था । इसके बाद हम बात करते हैं विजय द्वार की तो विजय द्वार के निर्माण में महाराज अजीत सिंह का महत्वपूर्ण योगदान रहा है । महाराज अजीत सिंह ने मुगलों पर विजय प्राप्त करने के बाद इस द्वार का निर्माण कराने की योजना बनाई थी ।
महाराज अजीत सिंह ने कई प्रसिद्ध कारीगरों को बुलाकर इस द्वार का निर्माण कराया था । अब हम बात करते हैं इस महल की नींव रखने वाले महाराज राव जोधा की तो वह हिंदू धर्म में विश्वास रखता था और वह चामुंडा माता का भक्त भी था । जो किसी भी कार्य को करने से पहले माता चामुंडा देवी के दर्शनों के लिए जाता था । राव जोधा ने इस महल की सुंदरता को और भी बढ़ाने के लिए चामुंडा देवी के मंदिर का निर्माण महल के पास में ही करवाया गया था क्योंकि मां चामुंडा देवी उनकी कुल की देवी थी । कुल की देवी होने के कारण राव जोधा का मां चामुंडा देवी पर श्रद्धा और विश्वास था ।
राव जोधा ने कुल की देवी चामुंडा देवी का मंदिर 1460 ईस्वी में बनवाया था । जब इस मंदिर का निर्माण कार्य पूरा हो गया था तब इस मंदिर के अंदर मां चामुंडा देवी की मूर्ति भी स्थापित करवाई गई थी । मूर्ति स्थापित करवाने के बाद इस मंदिर के द्वार जोधपुर के सभी नागरिकों के लिए खोल दिए गए थे और जोधपुर के सभी नागरिक इस मंदिर में आते और दर्शन करते थे .
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