खूब लड़ी मर्दानी कविता Hindi poem khub ladi mardani

झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई की कविता Hindi poem khub ladi mardani

Hindi poem khub ladi mardani-झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई एक ऐसी महान रानी थी जिसने अंग्रेजों के शासनकाल में आजादी के लिए अंग्रेजों का खूब सामना किया था वह नारी जाति के लिए एक ऐसी प्रेरणा दे गई जिसकी बखान करना शब्दों में संभव नहीं हो सकेगा

Hindi poem khub ladi mardani
Hindi poem khub ladi mardani

आज हम पढ़ेंगे झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के ऊपर लिखी हुई कविता को जो हर किसी के रगों में जुनून भर देगी.

सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी

बूढ़े भारत में आई फिर से नई जवानी थी

गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी

दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी

चमक उठी सन सत्तावन में वह तलवार पुरानी थी

बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी

कानपुर के नाना की मुंहबोली बहन छबीली थी

लक्ष्मीबाई नाम पिता की वह संतान अकेली थी

नाना के संग पढ़ती थी वह नाना के संग खेली थी

बरछी ढाल कृपाण कटारी उसकी यही सहेली थी

वीर शिवाजी की गाथाएं उसकी याद ज़बानी थी

बुंदेले हरबोले के मुह हमने सुनी कहानी थी

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी
लक्ष्मी थी या दुर्गा थी वह स्वयं वीरता की अवतार

देख मराठे पुलकित होते उसकी तलवारों के वार

नकली युद्ध-व्यूह और खेलना खूब शिकार

सैन्य घेरना दुर्ग तोड़ना यही थे उसके प्रिय खिलवार

महाराष्ट्र कुलदेवी उसकी भी आराध्य भवानी थी

बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी

हुई वीरता की वैभव के साथ सगाई झांसी में

विवाह हुआ रानी बन आई लक्ष्मीबाई झांसी में

राजमहल में बजी बधाई खुशियां छाई झांसी में

चित्रा ने अर्जुन को पाया शिव से मिली भवानी थी

बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी

उदित हुआ सौभाग्य मुदित महलों में उजियाली छाई

किंतु कालगति चुपके चुपके काली घटा घेर लाई

तीर चलाने वाले कर मैं उसे चूड़ियां कब भाई

रानी विधवा हुई हाय विधि को भी नहीं दया आई

निसंतान मरे राजाजी रानी शोक-समानी थी

हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी

बुझा दीप झांसी का तब डलहौजी मन में हरसाया

राज्य हड़प करने का उसने यह अच्छा अवसर पाया

फौरन फ़ोजें भेज दुर्ग पर अपना झंडा फहराया

लावारिस का वारिस बनकर ब्रिटिश राज झांसी आया

अश्रुपूर्ण रानी ने देखा झांसी हुई बिरानी थी

बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी

अनुनय विनय नहीं सुनती है विकट शासकों की माया

व्यापारी बन दया चाहता था जब है भारत आया

डलहौजी ने पैर पसारे अब तो पलट गई काया

राजाओं ने नव्वाबों को भी उसने पैरों ठुकराया

रानी दासी बनी,बनी है दासी अब महरानी थी

बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी

छिनी राजधानी दिल्ली की लखनऊ छीना बातों-बात

कद पेशवा था विथुर में हुआ नागपुर का भी घाट

उदयपुर तंजोर सतारा करनाटक की कौन बिसात

जबकि सिंध पंजाब ब्रह्म पर अभी हुआ था ब्रिज निपात

बंगाली मद्रास आदि की भी तो वही कहानी थी

बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी

रानी रोइ रिनवासो में बेगम गम से थी बेजार

उनके कहने कपड़े बिकते थे कलकत्ते के बाज़ार

सरे आम नीलाम छापते थे अंग्रेजों के अखबार

नागपुर के जेवर ले लो लखनऊ के लो नौलक्ख हार

यो  पर्दे की इज्जत परदेसी के हाथ बिकानी थी

बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी

कुटियों में भी विसम वेदना महलों में आहत अपमान

वीर सैनिकों के मन में था अपने पुरखों का अभिमान

नाना धुंधूपंत पेशवा जुटा रहा था सब सामान

बहन छबीली ने रणचंडी का कर दिया प्रकट आह्वान

हुआ यज्ञ आरंभ होने से सोई ज्योति जगानी थी

बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी

महलों ने दी आग झोंपड़ी ने ज्वाला सुलगाई थी

यह स्वतंत्रता की चिंगारी अंतरतम से आई थी

झांसी चेती दिल्ली चेती लखनऊ लगते छाई थी

मेरठ कानपुर पटना ने भारी धूम मचाई थी

जबलपुर कोल्हापुर में भी कुछ हलचल उकसानी थी

बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी

इस स्वतंत्रता महायज्ञ में कई वीरवर आए काम

नाना धुंधूपंत तात्या चतुर अज़ीमुल्ला सरनाम

अहमद शाह मौलवी ठाकुर कुंवरसिंह सैनिक अभिराम

भारत के इतिहास गगन में अमर रहेंगे जिनके नाम

लेकिन आज जुर्म कहलाती उनकी जो कुरबानी थी

बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी

इनकी गाथा छोड़ चले हम झांसी के मैदानों में

जहां खड़ी है लक्ष्मीबाई मर्द बनी मर्दानों में

लेफ्टिनेंट वाकर आ पहुंचा आगे बढ़ा जवानों में

रानी ने तलवार खींच ली हुआ द्वन्द आसमानों में

जख्मी हो कर वाकर भागा उसे अजब हैरानी थी

बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी

रानी बढ़ी कालपी आई कर सोमील निरंतर पार

घोड़ा थक कर गिरा भूमि पर गया स्वर्ग तत्काल सिधार

यमुना तट पर अंग्रेजो ने फिर खाई रानी से हार

बिजली रानी आगे चल दी किया ग्वालियर पर अधिकार

अंग्रेजों के मित्र सिंधिया ने छोड़ी रजधानी थी

बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी

विजय मिली पर अंग्रेजों की फिर सेना घिर आई थी

अबके जनरल स्मिथ सम्मुख था उसने मुंह की खाई थी

काना और मंदरा सखियां रानी के संग आई थी

युद्ध क्षेत्र में उन दोनों ने भारी मार मचाई थी

पर पीछे हुरोज आ गया हाय घिरी अब रानी थी

बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी

तो भी रानी मार काटकर चलती बनी सेन के पार

किंतु सामने नाला आया था यह संकट विषम अपार

घोड़ा अड़ा,नया घोड़ा था,इतने में आ गए अवार

रानी एक शत्रु बहुतेरे होने लगे वार-पर-वार

घायल होकर गिरी सिंहनी उसे वीरगति पानी थी

बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी

खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी थी

रानी गई सिधार चिता अब उसकी दिव्य सवारी थी

मिला तेज से तेज तेज की वह सच्ची अधिकारी थी

अभी उम्र कुल 23 की थी मनुज नहीं अवतारी थी

हमको जीवित करने आई वन स्वतंत्रता-नारी थी

दिखा गई पथ सिखा गयी हमको जो सीख सिखानी थी

बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी

जाओ रानी याद रखेंगे ये  कृतज्ञ भारतवासी

यह तेरा बलिदान जगावेगा स्वतंत्रता अविनाशी

होवे चुप इतिहास लगे सच्चाई को चाहे फासी

हो मदमाती विजय मिटा दे गोलों से चाहे झाँसी

तेरा स्मारक तू ही होगी तू खुद अमिट निशानी थी

बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी.

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