हड़प्पा सभ्यता का इतिहास harappa sabhyata history in hindi language

harappa sabhyata history in hindi language

दोस्तों आज हम आपको इस आर्टिकल के माध्यम से हड़प्पा सभ्यता के इतिहास के बारे में बताने जा रहे हैं । चलिए अब हम  आगे  बढ़ते  हैं और हड़प्पा सभ्यता के इतिहास को जानते हैं ।

harappa sabhyata history in hindi language
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Image source – https://commons.m.wikimedia.org/wiki/File:Lothal_-_ancient_well.jpg

हड़प्पा सभ्यता का इतिहास – हड़प्पा सभ्यता का इतिहास काफी पुराना है । हड़प्पा सभ्यता का इतिहास 3300 बीसी से 1700 ईस्वी पूर्व तक है । यह सभ्यता विश्व की सबसे प्राचीन सभ्यता है । यह प्राचीन नदी घाटी सभ्यता में से एक मानी जाती है । इस सभ्यता के लोग कई तरह के सामान बनाया करते थे । प्राचीन समय में इस सभ्यता का विकास काफी तेज गति से हुआ था । यह सभ्यता दक्षिण एशिया के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में एवं दक्षिण एशिया के उत्तर पश्चिमी क्षेत्र में फैली हुई थी ।

यह सभ्यता पाकिस्तान , अफगानिस्तान के उत्तर पूर्वी एवं पश्चिमी भारत में भी तेज गति से फैली थी । इस सभ्यता की शुरुआत 3250 बीसी से हुई थी । इस सभ्यता का विकास सिंधु नदी के आसपास हुआ था । इसलिए इस हड़प्पा सभ्यता को सिंधु सरस्वती सभ्यता भी कहा जाता है । इस सभ्यता में शहर कई बार बसे एवं कई बार उजड़े थे । इस सभ्यता का विकास घग्गर , सिंधु नदी , हकडा , मोहनजोदड़ो , हड़प्पा , लोथम , कालीबंगा , धोलावीरा , राखीगढ़ी आदि प्रमुख क्षेत्रों में हुआ था ।

यहां पर हड़प्पा सभ्यता एवं सिंधु सभ्यता के लोग रहते थे । यह सभी जगह हड़प्पा सभ्यता के मुख्य केंद्र के रूप में स्थित थे । हड़प्पा सभ्यता के बारे में ऐसा कहा जाता है कि यह सबसे पुरानी सभ्यता है । इस सभ्यता के लोग मिट्टी के बर्तन , मिट्टी के घड़े , मिट्टी की ईट बनाया करते थे । हड़प्पा सभ्यता के लोग अधिकतर मिट्टी की ईटें बना कर अपना जीवन व्यतीत करते थे । हड़प्पा सभ्यता के लोग पकी हुई ईटों के मकान में रहते थे । उनके घर पकी हुई ईटों से बने हुए होते थे । हड़प्पा सभ्यता के लोग ऊंन के कपड़े एवं कॉटन के कपड़े पहना करते थे ।

हड़प्पा सभ्यता के लोग अपने घर के बाहर एक पकी हुई ईंटों का चबूतरा बनाया करते थे । उस चबूतरे के अंदर वह अनाज रखा करते थे । हड़प्पा सभ्यता के लोग कला एवं खेती करने में भी महारथी थे । हड़प्पा सभ्यता के लोग पशु पालन भी किया करते थे । हड़प्पा सभ्यता के लोग व्यापार में भी रूचि रखते थे । कई इतिहासकारों ने हड़प्पा सभ्यता की खोज की है । सातवीं शताब्दी के दौरान पंजाब में जब खुदाई हुई तब उस खुदाई में हड़प्पा सभ्यता के समय की पकी हुई ईटें मिली हैं ।

जब पकी हुई ईंटें मिली तब वहां की और खुदाई की गई थी और खुदाई में कई अवशेष मिले हैं । उन अवशेषों को देखकर यह मालूम चलता है कि हड़प्पा सभ्यता के लोग कितने समझदार थे । हड़प्पा सभ्यता के लोग जानवरों को पालने में भी रूचि रखते थे । हड़प्पा सभ्यता के लोग गाय , भैंस , बकरी , मुर्गी को पालते थे । हड़प्पा सभ्यता के लोग घोड़े को नहीं जानते थे । हड़प्पा सभ्यता के समय लोहे का विकास नहीं हुआ था । हड़प्पा सभ्यता प्राचीन सभ्यता थी । हड़प्पा सभ्यता का विकास बहुत तेज गति से हुआ था । हड़प्पा सभ्यता तकरीबन 8000 वर्ष पुरानी सभ्यता है ।

हड़प्पा सभ्यता का उदय सिंधु नदी के आसपास हुआ था । इसलिए हड़प्पा सभ्यता को सिंधु सभ्यता कहा जाता है । 1826 को विश्व के एक महान इतिहासकार चार्ल्स मैसेन ने सबसे पहले हड़प्पा सभ्यता की खोज करना प्रारंभ किया था और कई जगह पर हड़प्पा सभ्यता को खोजने के लिए खुदाई की थी । उस खुदाई में कई तरह के अवशेष एवं हड़प्पा सभ्यता के निशान मिले थे । इसके बाद 1856 में हड़प्पा सभ्यता के इतिहास को जानने के लिए कनिंघम ने इस सभ्यता के सर्वेक्षण का काम प्रारंभ किया था और जहां-जहां हड़प्पा सभ्यता के पदचिन्ह मिले थे उन सभी जगहों का सर्वेक्षण किया था ।

कनिंघम ने हड़प्पा सभ्यता के इतिहास को करीब से जानने की कोशिश की थी । हड़प्पा सभ्यता सबसे प्राचीन सभ्यता होने के कारण सभी इतिहासकार इस सभ्यता को गहराई से जानना चाहते थे । इसीलिए हड़प्पा सभ्यता की पहचान करने के लिए भारत में 1861 को एलेक्जेंडर कनिंघम के दिशा निर्देश में भारतीय पुरातत्व विभाग का गठन किया गया था । इस विभाग के द्वारा हड़प्पा सभ्यता की खोज के लिए जो खुदाई हुई थी  उस खुदाई में जो अवशेष मिले थे उन सभी अवशेषों की जांच करने की व्यवस्था थी ।

हड़प्पा सभ्यता के इतिहास को किस तरह से खोजा जाए इस सभी के लिए भारत ने भारतीय पुरातत्व विभाग की स्थापना की गई थी । जब इस विभाग की स्थापना की गई तब इस विभाग में ज्ञानी लोगों को रखा गया था , इस विभाग का काम सौंपा गया था । 1902 में लार्ड कर्जन ने इस पुरातत्व विभाग की जिम्मेदारी ली थी और लॉर्ड कर्जन ने इस विभाग का महानिर्देशक जॉन मार्शन को बना दिया था । जब लॉर्ड कर्जन ने जॉन मार्शन को यह जिम्मेदारी दी थी तब लॉर्ड कर्जन ने यह कह दिया था कि हड़प्पा सभ्यता एक सबसे प्राचीनतम सभ्यता है ।

इस सभ्यता में किस तरह के लोग रहते थे , वह किस तरह की भाषा बोलते थे इसकी पूरी खोज करने की जिम्मेदारी तुम्हारे ऊपर है । समय बीतने के साथ-साथ इस सभ्यता को खोजने की उत्साहिकता बढ़ती गई । 1921 में हड़प्पा सभ्यता को जानने एवं उसके पूरे इतिहास की खोज करने का जिम्मा दयाराम साहनी ने अपने हाथों में लिया था । दयाराम साहनी ने हड़प्पा सभ्यता का उत्खनन करना प्रारंभ किया और कई खोजें हड़प्पा सभ्यता की की थी । इसलिए दयाराम साहनी को हड़प्पा सभ्यता का खोजकर्ता कहा जाता है ।

दयाराम साहनी के दिशा निर्देशों पर हड़प्पा सभ्यता की खोज की गई और दयाराम साहनी को सफलता भी मिली थी । दयाराम साहनी के एक लेख के माध्यम से यह पता चलता है कि हड़प्पा सभ्यता सिंधु नदी की घाटियों में फैली हुई थी । इसीलिए इस सभ्यता का नाम सिंधु सभ्यता रखा गया था । हड़प्पा सभ्यता भारत-पाकिस्तान के साथ-साथ अफगानिस्तान देशों में भी फैल चुकी थी । जब हड़प्पा सभ्यता की खोज के लिए खुदाई करना प्रारंभ किया था तब खुदाई करने के बाद 1400 केंद्र अभी तक खोजे जा चुके हैं ।

सबसे बड़ी बात यह है कि 1400 केंद्रों में से 125 केंद्र भारत में खोजे गए थे । इसके बाद तकरीबन 80% केंद्र सिंधु नदी के आसपास हैं । इन सभी इलाकों की , क्षेत्रों की खुदाई की गई थी । खुदाई में हड़प्पा सभ्यता के लोगों के घर , उनके अवशेष , बर्तन एवं आभूषण प्राप्त हुए हैं । हड़प्पा सभ्यता की खोज से यह पता चला है कि हड़प्पा सभ्यता के लोग बहुत बुद्धिमान थे । भारत में हड़प्पा सभ्यता का विकास पंजाब , बलूचिस्तान , सिंध , गुजरात , हरियाणा , उत्तर प्रदेश , राजस्थान आदि क्षेत्रों तक फैला हुआ था ।

हड़प्पा सभ्यता बहुत तेजी से फैल रही थी । हड़प्पा सभ्यता उत्तर दिशा में रहमान ढेरी से लेकर दक्षिण क्षेत्र में दैमाबाद जो कि महाराष्ट्र में स्थित है तक फैला हुआ था । पश्चिम दिशा में बलूचिस्तान से लेकर मकरान के उत्तर पूर्व में एवं मेरठ और कुरुक्षेत्र तक हड़प्पा सभ्यता का फैलाव था । हड़प्पा सभ्यता की खोज के बाद सबसे बड़ी बात यह मालूम पड़ी कि हड़प्पा सभ्यता के लोग सबसे ज्यादा मिट्टी के बर्तन , मिट्टी की ईट एवं पत्थर का उपयोग किया करते थे ।

हड़प्पा सभ्यता के लोगों की आर्थिक स्थिति –  हड़प्पा सभ्यता के लोगों की आर्थिक स्थिति कृषि पर आधारित थी । हड़प्पा सभ्यता के लोग कृषि एवं पशुपालन करके अपना जीवन व्यतीत किया करते थे । हड़प्पा सभ्यता के लोग कृषि प्रधान व्यक्ति थे । उनका जीवन कृषि पर निर्भर था । कृषि के माध्यम से वह अपने परिवार की इच्छाओं की पूर्ति किया करते थे । चौथी शताब्दी के दौरान जब सिकंदर के कहने पर हिंदू सभ्यता के इतिहास को जानने के लिए खोज की गई तब यह पता चला कि सिंधु सभ्यता उपजाऊ क्षेत्रों में से एक थी ।

जहां पर कृषि का उत्पादन बहुत अधिक होता था । हड़प्पा सभ्यता के लोग गेहूं , जो , ज्वार , मका , राई , मटर की फसल उगाया करते थे और इसी फसल को एक दूसरे को बेचकर व्यापार किया करते थे ।

हड़प्पा सभ्यता के दौरान पशुपालन – हड़प्पा सभ्यता के लोग बहुत बुद्धिमान  थे । वह हर तकनीक को जानते थे ।हड़प्पा सभ्यता के समय हड़प्पा सभ्यता के लोग पशुपालन किया करते थे । हड़प्पा सभ्यता के लोग पशुपालन से अपना जीवन यापन करते थे । हड़प्पा सभ्यता के समय हड़प्पा सभ्यता के लोग भैंस , गाय , बैल , बकरी , भेड़ , सूअर आदि का पशुपालन किया करते थे  और उनको बेचकर अपना घर चलाया करते थे । हड़प्पा सभ्यता के लोग गेंडे एवं हाथी को नहीं जानते थे । उनको गेंडे एवं हाथी के बारे में कुछ भी पता नहीं था ।

सिंधु नदी के आसपास रहने वाले लोग ज्यादातर भैंस , बकरी , गाय , बिल्ली , बैल , कुत्ते , बकरी , मुर्गी , मुर्गा आदि को भी पालते थे । हड़प्पा सभ्यता के लोग घोड़े के बारे में नहीं जानते थे,  उनको घोड़े का ज्ञान नहीं था ।

हड़प्पा सभ्यता के लोगों की कला – हड़प्पा सभ्यता के लोग कई तरह की चित्रकारी किया करते थे । हड़प्पा सभ्यता के लोग जब मिट्टी के बर्तन बनाते थे तब उन बर्तनों को रंग-बिरंगे रंगों से रंग देते थे । उन बर्तनों पर चित्रकारी किया करते थे । हड़प्पा सभ्यता के समय के कई ऐसे अवशेष मिले हैं जिन अवशेषों को देखने के बाद ऐसा पता चलता है कि हड़प्पा सभ्यता के लोग चित्रकारी करने में रुचि रखते थे । हड़प्पा सभ्यता के लोगों को पशुओं का चित्र बनाने में रुचि थी । हड़प्पा सभ्यता के लोग पशु , पक्षी एवं पेड़ , पौधों का भी चित्र बनाया करते थे ।

हड़प्पा सभ्यता के लोगों का पहनावा – हड़प्पा सभ्यता के लोग ऊनी कपड़े पहना करते थे । हड़प्पा सभ्यता के लोग भेड़ को पालते थे और भेड़ के द्वारा ऊंन का निर्माण किया करते थे और उस ऊन के कपड़े पहनते थे । ऊंन के कपड़ों के साथ साथ हड़प्पा सभ्यता के लोग कॉटन के कपड़े भी पहना करते थे । हड़प्पा सभ्यता के लोगों को कॉटन के कपड़े पहनना बहुत अच्छा लगता था । हड़प्पा सभ्यता के लोग जब कॉटन के कपड़े बनाते थे तब वह सिर्फ दो हिस्सों में कपड़ों को तैयार करते थे । हड़प्पा सभ्यता के पुरुष धोती पहना करते थे जो की कॉटन की बनी हुई होती थी ।

हड़प्पा सभ्यता के खुदाई वाले स्थान –  हड़प्पा सभ्यता की खोज करने के लिए लोथम ,  रोपड़ कालीबंगा , रंगापुर , वनमाली आदि क्षेत्रों की खुदाई की गई और उन क्षेत्रों की खुदाई के बाद कई अवशेष  मिले थे । उन अवशेषों की जांच एक लेबोरेटरी में की गई थी । उन सभी अवशेषों की जांच के बाद यह पता चलता है कि हड़प्पा सभ्यता के लोग कई बातों को जानते थे एवं हड़प्पा सभ्यता के लोग बहुत ही बुद्धिमान व्यक्ति थे । खुदाई के समय हड़प्पा सभ्यता के लोगों के घर एवं कम कब्रिस्तान मिले हैं ।

हड़प्पा सभ्यता समय में हड़प्पा सभ्यता के लोग अपने घर में सिर्फ दो कमरे बनाया करते थे और उनके घरों की लंबाई 5 फुट एवं चौड़ाई 97 फुट हुआ करती थी । घर के बाहर एक चबूतरा भी बनाया करते थे और उस चबूतरे के अंदर वह अनाज को रखा करते थे । हड़प्पा सभ्यता की खोज के समय खुदाई की गई थी और उस खुदाई में हड़प्पा सभ्यता के कई कब्रिस्तान भी मिले थे । हड़प्पा सभ्यता के बारे में ऐसा कहा जाता है कि उस समय किसी भी तरह के कोई भी मंदिर एवं देवी देवताओं के मंदिर स्थित नहीं थे ।

ऐसे कुछ भी अबशेष नहीं मिले हैं कि यह साबित हो सके कि उस समय में  मंदिर हुआ करते थे ।हड़प्पा सभ्यता की खोज के लिए गुजरात में भी खुदाई की गई थी । जब गुजरात राज्य के कच्छ में खुदाई का काम प्रारंभ किया तब उस खुदाई ने हड़प्पा सभ्यता के समय के कई खंडहर मिले थे । उन खंडहर के बारे में ऐसा कहा जाता है कि उन खंडहर में मजदूर रहा करते थे । हड़प्पा सभ्यता की खोज के लिए हरियाणा में भी खुदाई की गई थी क्योंकि वहां पर कुछ ऐसे साक्ष्य मिले थे कि वहां पर भी हड़प्पा सभ्यता के लोग रहते थे ।

जब वहां की खुदाई की गई तब हरियाणा के राखीगढ़ी में एक युगल का कंकाल मिला था । जब उस कंकाल को जांच के लिए भेजा गया तब यह पता चला यह कंकाल कम उम्र के व्यक्ति का था । उस खुदाई में  दो व्यक्तियों  के अवशेष भी मिले हैं और यह अवशेष कम उम्र के लड़के एवं कम उम्र की लड़की के थे । जब दोनों अवशेषों की जांच कराई गई तब यह पता चला कि यह दोनों कम उम्र में ही मर चुके थे और इन को दफनाया गया था । जब और खुदाई की गई तब वहां पर सोना चांदी एवं मुलायम धातु के बने हुए गहने भी मिले थे ।

सहारनपुर के सकतपुर में भी 17 मई 2016 को खुदाई की गई थी और खुदाई में ताम्र कुठार मिला था । ताम्र कुठार के साथ-साथ वहां पर चूड़ियां , सिलबट्टे , मुष्टिका , जीवाश्म , लकड़ी के गाड़ी के पहिए , भट्टियां , फियांश , अनुष्ठान चिन्ह , मृदभांड आदि अवशेष प्राप्त हुए हैं ।

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