चिंतपूर्णी माता मंदिर का इतिहास Chintpurni temple history in hindi
Chintpurni temple history in hindi
Chintpurni temple – दोस्तों आज हम आपको इस आर्टिकल के माध्यम से चिंतपूर्णी माता मंदिर के इतिहास के बारे में बताने जा रहे हैं । तो चलिए अब हम आगे बढ़ते हैं और इस बेहतरीन लेख को पढ़कर चिंतपूर्णी माता मंदिर के इतिहास के बारे में जानकारी प्राप्त करते हैं ।
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चिंतपूर्णी माता मंदिर के बारे में – चिंतपूर्णी माता का मंदिर बहुत ही प्राचीन समय का है । जिस मंदिर से हिंदू धर्म के लोगों की आस्था जुड़ी हुई है । चिंतपूर्णी माता का यह मंदिर भारत देश के हिमाचल प्रदेश मे स्थित है । मैं आपको हिमाचल प्रदेश के बारे में बता दूं कि हिमाचल प्रदेश प्राचीन समय से ही देवी देवताओं की भूमि मानी जाती रही है । माता चिंतपूर्णी का यह सुंदर और अद्भुत चमत्कारी मंदिर भारत देश के हिमाचल प्रदेश के ऊना जिला में स्थित हैं । जिसकी सुंदरता देखने के लायक है ।चिंतपूर्णी माता का यह मंदिर उन धार्मिक तीर्थों में से एक है जिन तीर्थों पर जाकर हिंदू धर्म के लोगों को आनंद प्राप्त होता है ।
चिंतपूर्णी माता के इस पावन धाम को छिन्नमस्तिका भी कहा जाता है । जो भी भक्त माता चिंतपूर्णी के दर्शनों के लिए जाना चाहता है वह दिल्ली , धर्मशाला , शिमला , चंडीगढ़ आदि स्थान पर पहुंचकर वहां से साधन प्राप्त करके माता चिंतपूर्णी के मंदिर पर दर्शन करने के लिए जा सकता है । मैं आपको बता दूं कि माता चिंतपूर्णी के इस पावन धाम पर प्रति वर्ष यानी साल में दो बार मेले का आयोजन किया जाता है । पहला मेला माता चिंतपूर्णी के पावन धाम पर चैत्र मास के नवरात्रि पर लगाया जाता है । इस मेले को देखने के लिए , माता चिंतपूर्णी के दर्शनों के लिए काफी लोग दूर-दूर से आते हैं और अपने जीवन में आनंद प्राप्त करते हैं ।
इसके बाद माता चिंतपूर्णी के पावन धाम पर साल का दूसरा मेला श्रावण मास पर पढ़ने वाली नवरात्रि पर लगाया जाता है ।जिस मेले में काफी लोग दर्शन के लिए आते हैं और मां चिंतपूर्णी माता से प्रार्थना करते हैं कि वह उनकी चिंताओं , उनके दुखों को हरे । यदि हम बात करें माता चिंतपूर्णी के पावन धाम के निर्माण की तो माता चिंतपूर्णी के पावन धाम के निर्माण के बारे में एक कथा कही जाती है । जो प्राचीन समय की है । कथा में यह बताया जाता है कि माता चिंतपूर्णी के इस पावन धाम की जो खोज की थी वह खोज 14 शताब्दी के दौरान की गई थी ।
माता चिंतपूर्णी के पावन धाम का निर्माण करने में माई दास नामक भक्त का महत्वपूर्ण योगदान था । माई दास के द्वारा इस पावन मंदिर की स्थापना की गई थी । अब मैं आपको चिंतपूर्णी माता के पहले भक्त माई दास के बारे में बताने जा रहा हूं ।माई दास जो माता चिंतपूर्णी का प्रथम भक्त था उसका जन्म अठुर गांव रियासत पटियाला मे हुआ था । माता चिंतपूर्णी के प्रथम भक्त माई दास के दो बड़े भाई भी थे ।जिनके नाम देवीदास और दुर्गादास थे । माई दास एक धार्मिक प्रवृत्ति का व्यक्ति था । जो पूजा पाठ करने में विश्वास रखता है ।
भगवान की भक्ति में अपना ज्यादा समय व्यतीत करता था । इसके जो बड़े भाई थे वह बहुत समृद्ध व्यक्ति थे । उनके पास पैसे की कोई कमी नहीं थी । दोनों भाई माई दास से खुश नहीं थे क्योंकि वह एक गरीब था । माई दास के पास पैसों की कमी थी कारण दोनों भाई ने माई दास को अलग कर दिया था । माई दास अपने बीवी और बच्चे के साथ अलग रहने लगा था । जब माई दास ने यह देखा कि वह अपने बीवी बच्चों का भरण पोषण करने में असमर्थ है तब उसने अपने बीवी बच्चे को मायके भेज दिया था और वह मजदूरी करने लगा था ।
जब माई दास को लगा कि वह अब अपने परिवार का भरण पोषण कर सकता है तब वह अपने बीवी बच्चे को लेने के लिए ससुराल गया था । जाते-जाते वह बहुत थक गया था । रास्ते में एक घना जंगल पड़ा जिस जंगल में एक बट वृक्ष का पेड़ उसे दिखाई दिया था । जिस पेड़ के नीचे वह आराम करने लगा था । वह इतना थक गया था कि उसको वहीं पर नींद आ गई और वह सो गया था । जैसे ही उसकी नींद लगी उसके सपने में एक दिव्य कन्या आई और उससे कहने लगी कि मैं चिंतपूर्णी माता हूं । मैं इस वृक्ष मैं निवास करती हूं ।
मैं तुमसे यह चाहती हूं कि तुम इस स्थान पर मेरी मूर्ति की स्थापना करवाओ । तुम्हीं मेरे पहले भक्त हो । यह सुनकर माई दास अचंभे में पड़ गया था । परंतु वह एक असहाय व्यक्ति था वह मंदिर के निर्माण में अपने आप को परिपूर्ण नहीं मानता था । इसलिए वह वहां से ससुराल जाने के लिए निकल गया था । ससुराल में गया और अपने बीवी बच्चों को लेकर घर की ओर रवाना होने लगा था । रास्ते में वह जंगल पड़ा जैसे ही वह जंगल पड़ा वहां पर माई दास के पैर अपने आप रुक गए थे । फिर उस दिव्य कन्या ने माई दास से आकाशवाणी के माध्यम से कहा कि तुम यहां पर मेरी मूर्ति की स्थापना करो ।
फिर माई दास उस वटवृक्ष के नीचे बैठकर माता की आराधना करने लगा और माता से प्रार्थना करने लगा कि यदि में आपका पहला भक्त हूं और मैंने आपकी पूजा सच्चे मन से की हो तो आप मुझे दर्शन दे और मुझे आज्ञा दे के मैं किस तरह से यहां पर आपकी मूर्ति की स्थापना कराऊ । माता चिंतपूर्णी ने माई दास को दर्शन दिए । माई दास ने माता चिंतपूर्णी से कहा कि मैं इतना धनी व्यक्ति नहीं हूं कि मैं आपके मंदिर की स्थापना कराऊ । यह एक घना जंगल है । यहां पर तो पानी भी नहीं है । माता ने माई दास ने कहा की मैं तुझे निर्भया दान देती हूं ।
तू जिस शिला को उखाड़ेगा वहीं से तुझे पानी प्राप्त होगा और तेरी जो भी समस्या है वह समस्या हल हो जाएगी । माता के कहने पर माई दास ने उस स्थान पर माता की मूर्ति की स्थापना कराई और वहां पर मंदिर बनवाया था ।
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