बेगम हजरत महल की जीवनी Begum hazrat mahal biography in hindi

Begum hazrat mahal biography in hindi

दोस्तों आज हम आपको इस आर्टिकल के माध्यम से बेगम हजरत महल की जीवनी के बारे में बताने जा रहे हैं . बेगम हजरत महल एक ऐसी महिला हैं जिन्होंने तवायफ खाने से उठकर 1857 की क्रांति में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी . चलिए अब हम इस आर्टिकल के माध्यम से बेगम हजरत महल की जीवनी को बड़े ध्यान से पढ़ते हैं .

begum hazrat mahal biography in hindi
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जन्म स्थान व परिवार – बेगम हजरत महल जिनका वास्तविक नाम मुहम्मदी खानुम  था . बेगम हजरत महल का जन्म अप्रैल 1820 को फैजाबाद के अवध में हुआ था . यह एक तवायफ थी जो शाही राजा महाराजाओं के लिए नृत्य किया करती थी . इनके जन्म के बाद इनके माता-पिता ने बेगम हजरत महल को बेच दिया था और इनको ख्वासीन के शाही हरम में रखा गया था .  यही पर इनका  नाम ख्वासीन रखा गया था . इसके बाद इनको परी के नाम से संबोधित किया जाने लगा था और सभी इनको महक परी कहने लगे थे .

इनके तवायफ खाने में अवध के नवाब मुजरा देखने के लिए आया करते थे और उनका दिल बेगम हजरत महल पर आ गया था .  बेगम हजरत महल को अवध के नवाब ने  अपनी रखैल बना लिया था . फिर अवध के नवाब ने इनसे शादी की और इनको बेगम का दर्जा  दिया .  इनके पति का पूरा नाम वाजिद अली शाह था . इनकी एक संतान हुई जिनका नाम बिरजिस कद्र था  . शादी के बाद यह अपने तवायफ खाने से सीधे शाही महल में चली गई थी और वहीं पर अपना जीवन यापन करने लगी थी . जब इनका बेटा हुआ तब इनको हजरत महल की उपाधि दी गई और इनका नाम हजरत महल रखा गया था .

हजरत महल का क्रांतिकारी जीवन – जब अंग्रेजों ने भारत पर अपना आधिपत्य जमाना स्थापित किया था तब ब्रिटिश शासन की नजर अवध पर पड़ी और ब्रिटिश शासन ने अवध के नवाब वाजिद अली शाह को निर्वासित कर दिया था . अवध के नवाब वाजिद अली शाह को कलकत्ते में निर्वासित करके अवध पर अपना कब्जा जमाकर अवध को अपने कब्जे में ले लिया था .  अवध के राजा वाजिद अली शाह ने बेगम हजरत महल को तलाक दे दिया था लेकिन बेगम हजरत महल ने अवध को आसानी से अंग्रेजों के हवाले नहीं किया .

बेगम हजरत महल सरकारी कामकाज देखती रही . उन्होंने अपनी शक्ति और बुद्धि से अवध रियासत के सभी राजकीय मामलों को गंभीरता से संभाला था . जब भारत की पहली आजादी की लड़ाई 1857 को लड़ी गई तब बेगम हजरत महल ने राजा जयसिंह की अगुवाई में ब्रिटिश सरकार यानी ईस्ट इंडिया के खिलाफ बगावत छेड़ दी थी .  बेगम हजरत महल ने लखनऊ पर पुनः अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया था . बेगम हजरत महल ने जब लखनऊ को अपने कब्जे में ले लिया था तब अपने बेटे को वहां का राजा घोषित कर दिया था .

वह अंग्रेजों से लड़ती रही और अपने बेटे को भी लड़ाई  सिखाती रही . इस क्रांति के बाद बेगम हजरत महल नानासाहेब से मिली . नानासाहेब कि जब बेगम हजरत महल से मुलाकात हुई तब वह बेगम हजरत महल को उत्साहित करने लगे . बेगम हजरत महल से नानासाहेब कहने लगे की  सभी क्रांतिकारी आपके साथ हैं . हम सभी मिलकर अंग्रेजों का सामना करेंगे . बेगम हजरत महल ने 18 57 की क्रांति का नेतृत्व किया और 18 57 की क्रांति बेगम हजरत महल के नेतृत्व में लड़ी गई .

बेगम हजरत महल के द्वारा महिलाओं की सेना तैयार की गई थी . बेगम हजरत महल ने महिला सैनिक बल को सिखाने एवं युद्ध के दाव पेच सिखाने की जिम्मेदारी रहीमी को दे दी थी . लखनऊ में एक तवायफ खाना था जहां की सबसे नामचीन तवायफ हैदरी वाई थी . हैदरी बाई के तवायफ खाने में मुजरा देखने के लिए अंग्रेज आया करते थे और तवायफ खाने पर विचार-विमर्श करते थे . हैदरी भाई भले ही तवायफ थी लेकिन उनके अंदर देशभक्ति की भावना कूट-कूट कर भरी हुई थी .

वह सभी जानकारी ब्रिटिश शासन की क्रांतिकारियों तक पहुंचाती थी . समय बीतने के साथ  हैदरी बाई क्रांतिकारियों से जाकर मिल गई थी और अपना योगदान क्रांतिकारियों को दिया था . ब्रिटिश शासन ने अपनी ताकत एवं धोखे से बेगम हजरत महल की सेना को अपने कब्जे में ले लिया और बेगम हजरत महल को नेपाल जाना पड़ा . जब बेगम हजरत महल नेपाल पहुंची तब वहां के राजा जंग बहादुर ने उनको शरण देने से इनकार कर दिया था .

कुछ समय बीत जाने के बाद जब राजा जंग बहादुर के दिमाग में यह आया कि यह एक योद्धा महिला है तब जंग बहादुर ने बेगम हजरत महल को रुकने की इजाजत दी और कुछ समय बीत जाने के बाद सन 1879 को बेगम हजरत महल का निधन हो गया . उनके शरीर को काठमांडू के जामा मस्जिद के मैदान में दफनाया गया था . आज भी उनकी कब्र मौजूद है . जब बेगम हजरत महल का निधन हुआ तब ब्रिटिश शासन ने रानी विक्टोरिया के जन्मदिवस पर बेगम हजरत महल के बेटे को माफ कर दिया और उनको भारत में वापस आने के लिए कह दिया था .

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