गुरु घासीदास की जीवनी Guru ghasidas biography in hindi

Guru ghasidas biography in hindi

दोस्तों आज हम आपको इस आर्टिकल के माध्यम से गुरु घासीदास की जीवनी के बारे में बताने जा रहे हैं । चलिए अब हम आगे बढ़ते हैं और इस आर्टिकल को पढ़कर गुरु घासीदास के जीवन परिचय को जानते हैं ।

guru ghasidas biography in hindi
guru ghasidas biography in hindi

Image source –https://ketansahu77.blogspot.com

जन्म स्थान व् परिवार – गुरु घासीदास जी का जन्म 18 दिसंबर 1756 को छत्तीसगढ़ राज्य के रायपुर के गिरौद गांव में हुआ था । इस जगह का पूरा नाम ग्राम गिरौदपुरी तहसील बलौदा बाजार जिला रायपुर है । सात्विक गुरु घासीदास जी ने अपने उपदेशों के माध्यम से कई लाचार लोगों की मदद की है एवं उनको रास्ता दिखाया है । गुरु घासीदास  जी के पिताजी का नाम महंगू दास था ।  घासीदास जी के पिताजी मजदूरी किया करते थे । यह गरीब फैमिली से ताल्लुक रखते थे । जब गुरु घासीदास जी का जन्म हुआ था तब गुरु घासीदास जी के घर की स्थिति ठीक नहीं थी ।

उन्होंने अपना बचपन गरीबी में ही विता दिया था । गुरु घासीदास जी की माता जी का नाम अमरौतिन था । इनकी मां बहुत ही शांत स्वभाव की थी ।गुरु घासीदास जी अपनी माता से बहुत प्रेम किया करते थे । गुरु घासीदास को बचपन से ही अपनी मां से सच्चाई का ज्ञान प्राप्त हुआ है । गुरु घासीदास जी की माता जी हमेशा उनको सच्चाई के रास्ते पर चलने के लिए कहा करती थी ।गुरु घासीदास की पत्नी का नाम सफूरा था जो सिरपुर अंजोरी गांव की निवासी थी । जब दोनों का विवाह हुआ था तब गुरु घासीदास जी निरंतर अपने जीवन को जीने की कोशिश कर रहे थे । विवाह के बाद गुरु घासीदास की चार संतानें हुई थी । गुरु घासीदास की चार संतानों में से बड़े पुत्र का नाम बालक दास था ।

गुरु घासीदास के द्वारा दिए गए उपदेश – गुरु घासीदास जी बचपन से ही सत्य और अहिंसा के पुजारी थे । वह हमेशा से लोगों को सच्चाई के रास्ते दिखाया करते थे । जब उनका जन्म हुआ था तब समाज में कई कुप्रथाएं फैली हुई थी । बाल विवाह , छुआछूत , जाति पात आदि कुप्रथाएं समाज के बीच में थी । इन सभी कुप्रथाओ को देखकर गुरु घासीदास ने अपना जीवन समाज की भलाई के लिए समर्पित कर दिया था और समाज की भलाई के लिए कार्य करने लगे थे । गुरु घासीदास ने सात्विक जीवन जीने का निश्चय कर लिया था ।

अपनी पत्नी एवं चार बच्चों को छोड़कर सात्विक जीवन जीने लगे थे । गुरु घासीदास के द्वारा समाज में फेली कुप्रथाओं को नष्ट करने का प्रयास किया गया था । कई लोग गुरु घासीदास के विचारों से सहमत हुए और अपना जीवन सच्चाई की ओर ले गए थे । गुरु घासीदास जी एक ऐसे साधु संत थे जिन्होंने लोगों को सात्विक जीवन जीने के उपदेश दिए थे । गुरु घासीदास अपने अनमोल वचनों के माध्यम से लोगों को बताया करते थे कि हमें जाती पाती को भुलाकर एकता को अपनाना चाहिए । हमेंं किसी भी तरह का कोई भी  गलत काम नहीं करना चाहिए , हमें किसी भी व्यक्ति का अपमान नहीं करना चाहिए ।

हमें अपना सिर किसी के भी सामने नहीं झुकाना चाहिए और ना ही किसी का अपमान करना चाहिए । हमें मांस मदिरा का सेवन नहीं करना चाहिए मांस मदिरा का सेवन करने से हमारी बुद्धि भ्रष्ट होती है ।यदि हम सभी लोग सात्विक जीवन जिए तो हमारा कल्याण हो सकता है , हम सभी का कल्याण हो सकता है । जब गुरु घासीदास जी किसी सभा में अपने उपदेशों को लोगों के सामने रखते थे तब सभी लोग उनके उपदेशों को बड़े ध्यानपूर्वक सुनते थे । जब गुरु घासीदास उपदेश दिया करते थे  तब वह शुद्ध भाषा एवं विस्तार पूर्वक अपनी बात को लोगों के बीच में रखा करते थे ।

गुरु घासीदास के उपदेशों से कई लोगों का भला हुआ है । कई लोगों ने गुरु घासीदास को गुरु मान लिया और सात्विक जीवन जीने के लिए तैयार हो गए थे । गुरु घासीदास के उपदेशों में बहुत ताकत थी । इसीलिए जब 1901 में गणना हुई तब यह पता चला था कि गुरु घासीदास सतनाम पंथ से तकरीबन 400000 लोग जुड़ चुके हैं । गुरु घासीदास के उपदेशों से कई लोग प्रेरित हुए थे । छत्तीसगढ़ के ही एक व्यक्ति ने गुरु घासीदास जी से प्रेरणा ली थी ।

छत्तीसगढ़ के प्रथम स्वतंत्रता सेनानी वीर नारायण सिंह के जीवन पर गुरु घासीदास जी का गहरा प्रभाव पड़ा था । वीर नारायण सिंह गुरु घासीदास के आदर्शों , उनके विचारों पर चलने लगे थे । उनके द्वारा बताई गई बातों को अपने जीवन में अपना पर आगे बढ़ रहे थे ।

सतनाम एवं सतनामी धर्म – सतनाम एवं सतनामी धर्म के संस्थापक श्री गुरु घासीदास जी माने जाते हैं । गुरु घासीदास जी ने सतनाम धर्म की स्थापना छत्तीसगढ़ में की थी । धीरे-धीरे उनके इस धर्म का प्रचार प्रसार बहुत तेजी से बढ़ चुका था और कई सारे लोगों ने सतनाम पंथ को अपनाया था । सतनाम एवं सतनामी धर्म से कई सारे लोग जुड़े थे । कई सारे लोगों ने गुरु घासीदास के आदर्शों पर चलने का फैसला कर लिया था ।

गुरु घासीदास के द्वारा बताए गए उपदेशों एवं गुरु घासीदास  जी के रास्तों पर चलने की सभी लोगों ने ठान ली थी । यह धर्म धीरे-धीरे बढ़ता गया और पूरे भारत देश के कई राज्यों एवं जिलों के लोगों ने यह धर्म अपना लिया था । जिस समय गुरु घासीदास ने अपने उपदेश लोगों को देना प्रारंभ किया था उस समय कई विचाराधीन व्यवस्थाएं समाज के बीच में थी । कई कुप्रथाएं समाज के बीच में थी जिससे कमजोर लोगों पर अत्याचार हो रहे थे । जो व्यक्ति सतनामी धर्म से जुड़ जाता था उसको गुरु घासीदास के द्वारा बताए गए रास्तों पर चलना पड़ता था ।

गुरु घासीदास जी हमेशा अपने अनुयायियों से कहते थे कि सदा सत्य के रास्ते पर चलना चाहिए । कभी भी ऐसा कोई काम नहीं करना चाहिए जिससे कि सामने वाले व्यक्ति को नुकसान हो । यह धर्म लोगों ने अपने दिल से अपनाया था । गुरु घासीदास ने छुआछूत जैसी कुप्रथा का डटकर विरोध किया था । उन्होंने एकता को मजबूत करने पर जोर दिया था । मंदिरों में हिंदुओं के साथ जो अपमान हो रहा था , महिलाओं के साथ जो अपमान हो रहा था उसका भी विरोध गुरु घासीदास ने जताया था ।

धर्म के नाम पर किसी व्यक्ति पर अन्याय करने के खिलाफ भी गुरु घासीदास जी ने आवाज उठाई थी । गुरु घासीदास जी सदैव सत्कर्म की ओर बढ़ते रहे और उनके अपने अनुयायियों को बढ़ाते रहें ।

गुरु घासीदास जी का व्यवहार – गुरु घासीदास जी बचपन से ही दयालु प्रवृत्ति के थे । वह किसी पर अत्याचार होते हुए नहीं देख पाते थे । गुरु घासीदास जी मनुष्यों के साथ-साथ जीव जंतु , पशुओं एवं पक्षियों से भी प्रेम किया करते थे । इसीलिए गुरु घासीदास जी मंदिरों में चलने वाली बली प्रथाओं के खिलाफ अपनी आवाज उठाई थी । गुरु घासीदास जी मांस मदिरा का सेवन करने के खिलाफ थे ।अपने उपदेशों में वह कहते थे कि कभी भी बली जैसी प्रथाओं को नहीं अपनाना चाहिए ।

बाल शिक्षा पर जोर देना चाहिए और बाल विवाह जैसी कुप्रथा को खत्म करना चाहिए । इन सभी कुप्रथाओ के खिलाफ समाज को एकजुट होकर काम करना चाहिए । जाति धर्म आदि भेदभाव जैसी कुप्रथाओं को हम सभी को मिलकर खत्म करना चाहिए । क्योंकि ऐसी कुप्रथा होने के कारण हमारे समाज एवं हमारा विकास संभव नहीं है । छुआछूत जैसी कुप्रथा से छोटे वर्ग के लोगों पर अत्याचार बढ़ते जा रहे थे । उनकी दशा को सुधारने एवं उनको समाज की दृष्टि में लाने के लिए समाज में फैली गलत सोच को बदलने के लिए गुरु घासीदास कमर कसकर तैयार होकर खड़े हो गए थे ।

गुरु घासीदास ने अपना मकसद बना लिया था कि छुआछूत जैसी को कुप्रथाओं को पूरी तरह से नष्ट करके ही रहूंगा । गुरु घासीदास जी का व्यवहार हमेशा अच्छे लोगों के प्रति दयनीय रहा है । वह जीव जंतु , पशु पक्षियों को दाना खिलाते एवं पानी पिलाते थे । जब किसी जानवर को इसी तरह की कोई भी चोट लग जाती थी तो वह उस जानवर का इलाज किया करते थे । गुरु घासीदास जी गाय से खेत जोतने के खिलाफ भी खड़े हुए थे । उनका कहना था कि गाय से पूरे खेत को जोतना सही नहीं है । जब गुरु घासीदास जी लोगों को अपने उपदेश देते थे तब वह सभी लोगों के विचारों को भी सुना करते थे ।

जब कोई व्यक्ति किसी मुसीबत में होता था तब उसे उस मुसीबत से बाहर निकलने के रास्ते भी गुरु घासीदास जी बता दिया करते थे । गुरु घासीदास जी का महिलाओं के प्रति सम्मान बहुत अच्छा था । वह नारी जाति के सम्मान पर भी प्रचार किया करते थे , उपदेश दिया करते थे ।

गुरु घासीदास के द्वारा कुप्रथाओ का विरोध – गुरु घासीदास जी ने  कई कुप्रथाओ के विरोध अपनी आवाज उठाई थी । गुरु घासीदास जी एसी कुप्रथाओ के खिलाफ लड़ते रहे जिन का दुष्प्रभाव समाज के लोगों पर पड़ रहा था । गुरु घासीदास जी अपने लोगों को एक साथ जीवन जीने के उपदेश दिया करते थे । जो भी व्यक्ति सतनाम धर्म से जुड़ जाता था उसको सीधा रास्ता गुरु घासीदास के द्वारा दिखाया जाता था । गुरु घासीदास जी हमेशा सत्य के रास्ते पर चलने को कहते थे । कई विषमताओं के खिलाफ गुरु घासीदास जी के द्वारा आवाज उठाई गई थी ।

ब्राह्मण के द्वारा मंदिरों में किया जाने वाला भेदभाव उनको अच्छा नहीं लगा । उन्होंने ऐसी व्यवस्था के विरुद्ध आवाज उठाई जिन व्यवस्थाओं से मनुष्य पर अत्याचार हो रहे थे ।  गुरु घासीदास  जीने ब्राह्मणों के द्वारा मंदिरों में दी जाने वाली वलियों के खिलाफ भी आवाज उठाई थी । गुरु घासीदास जी ने कई धर्म जातियों एवं वर्गों में बटने एवं जात पात के व्यवहार के विरुद्ध अपनी आवाज उठाई थी । धर्म के नाम पर व्यक्ति को बांटने की जो व्यवस्था थी उस व्यवस्था को खत्म करने के लिए गुरु घासीदास जी इस सिस्टम के विरुद्ध खड़े हो गए थे । गुरु घासीदास जी छुआछूत जेसी कुप्रथा के खिलाफ भी लड़ रहे थे ।

गुरु घासीदास जी ने अपने उपदेशों के माध्यम से यह प्रचार किया कि जात-पात एवं छुआछूत जैसी प्रथाओं से पिछड़ी जाति के लोगों पर अत्याचार किया जाता है , नीची जाति के लोगों को पूरा हक नहीं मिल पाता है , वह दर दर की ठोकरें खाते फिरते हैं । इसीलिए इन सभी कुप्रथाओं को खत्म करने के प्रयास किए गए थे । गुरु घासीदास जी ने नारी शिक्षा एवं नारी के सम्मान पर भी जोर दिया था । वह नारी सम्मान को बढ़ावा देते रहे । वह अपने उपदेशो से लोगों को सच्चाई के रास्ते पर चलने के लिए कहा करते थे ।

गुरु घासीदास जी का कहना था कि जो व्यक्ति नारी जाति का सम्मान नहीं करता है उसको समाज में रहने की इजाजत नहीं देनी चाहिए । हम सभी मनुष्य हैं , इंसान हैं  इसलिए हमें अपनी इंसानियत को नहीं भूलना चाहिए और समाज के द्वारा बनाए गए नियमों का पालन करना चाहिए । कभी भी नारी की भावनाओं को ठेस नहीं पहुंचाना चाहिए ।

गुरु घासीदास जी के सप्त सिद्धांत – गुरु घासीदास जी ने सतनाम पंथ के अनुयायियों को सप्त सिद्धांत प्रदान किए हैं । वह हमेशा सतनाम पंथ से जुड़े हुए लोगों को सप्त सिद्धांतों पर चलने के लिए प्रेरित किया करते थे । गुरु घासीदास जी के सप्त सिद्धांत निम्न है । पहला सिद्धांत था सतनाम पर विश्वास रखना । जिस धर्म से हम जुड़े हैं उस धर्म पर पूर्ण विश्वास हम सभी को रखना है । दूसरा सिद्धांत जीव हत्या नहीं करना था । इस सिद्धांत के माध्यम से गुरु घासीदास जी यह समझाना चाहते थे कि जीव हत्या से किसी का कल्याण होने वाला नहीं है ।

हम जब किसी जीव की हत्या कर देते हैं तब हम उस हत्या के भागीदार हो जाते हैं । इस हत्या का पूरा पाप हमारे ऊपर आ जाता है । इसीलिए कभी भी जीव हत्या नहीं करना चाहिए । तीसरा सिद्धांत मांसाहार आदि व्यंजनों का सेवन नहीं करना । गुरु घासीदास जी कहते थे कि मांसाहार भोजन करने से किसी तरह का कोई भी भला नहीं होता है क्योंकि वह मास एक जीवित पशु एवं जानवर का होता है । जिसकी हत्या का पाप हमारे ऊपर लग जाता है । इसलिए मांसाहार भोजन नहीं करना चाहिए । मांसाहार भोजन करने से बुद्धि का विकास नहीं होता है ।

मांसाहार भोजन करने से हमारी बुद्धि नष्ट हो जाती है । यदि हम अपने शरीर को स्वस्थ एवं तंदुरुस्त बनाना चाहते हैं तो हरी सब्जियों एवं फल फ्रूट खाना चाहिए । गुरु घासीदास जी का चौथा सिद्धांत था जुआ , सट्टा से दूर रहना । जो व्यक्ति जुआ एवं सट्टे का आदी हो जाता है वह कभी भी अपने परिवार को अच्छा जीवन नहीं दे सकता है क्योंकि जुआ की आदत एक बार लग जाने पर वह पूरे परिवार को नष्ट करे बिना नहीं मानती है । कभी भी किसी व्यक्ति को चोरी करने के रास्ते पर नहीं जाना चाहिए क्योंकि यह रास्ता गलत है ।

चोरी करने से कभी भी भला नहीं होता है । चोरी करने से हमें किसी तरह की कोई भी सफलता प्राप्त नहीं होती है । पांचवा सिद्धांत नशा नहीं करना था । जो व्यक्ति नशे की लत में पड़ जाता है वह अपने शरीर को नष्ट कर देता है । नशे के कारण पूरा परिवार नष्ट हो जाता है ।उसके परिवार वाले परेशान होते हैं । नशे के कारण कई तरह की बीमारियां हो जाती है । कई तरह की बीमारियों के कारण व्यक्ति मौत का शिकार भी बन जाता है । छटा सिद्धांत जाती पाती के प्रमंच मेंं नहीं पढ़ना । जो व्यक्ति जाति पाति जैसी बातों पर विश्वास करनेेे लगता है वह इंसान को इंसान नहीं समझता है क्योंकि इंसाान का एक ही धर्म होता है और वह धर्म इंसानियत का है । सातवा सिद्धांत व्यभियाचार नहीं करना हैं ।

दोस्तों हमारे द्वारा लिखा गया यह जबरदस्त लेख गुरु घासीदास की जीवनी guru ghasidas biography in hindi यदि पसंद आए तो सब्सक्राइब अवश्य करें धन्यवाद ।

Add a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *