राजा हरिश्चंद्र की कहानी satyavadi raja harishchandra story in hindi

Satyavadi raja harishchandra story in hindi

Satyavadi raja harishchandra ki katha-हेलो दोस्तों कैसे हैं आप सभी दोस्तों हम अपने जीवन में बहुत से लोगों की कहानी पढ़ते हैं जिनसे हमें जीवन में प्रेरणा मिलती है आज हम आपके लिए एक ऐसे ही महान इंसान की कहानी लेकर आए हैं जो आप सभी के लिए बहुत ही प्रेरणादायक साबित होगी दोस्तों कुछ लोग ऐसे होते हैं जो अपने जीवन में कुछ ऐसा कर जाते हैं जिसको भुला पाना बहुत मुश्किल होता है आज हम आपको satyavadi raja harishchandra story in hindi सुनाने वाले हैं जिनको लोग सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र के नाम से जानते हैं उन्होंने अपने जीवन में हर एक मुसीबत में हमेशा सत्य का साथ दिया है चलिए पढ़ते हैं उनकी जीवनी

satyavadi raja harishchandra story in hindi
satyavadi raja harishchandra story in hindi

image source-  https://commons.wikimedia.org/wiki/File:Harishchandra_by_RRV.jpg

दोस्तों सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र एक ऐसे महान इंसान थे जिन्होंने बड़ी-बड़ी मुसीबतों का सामना किया है दोस्तों सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र को एक बार सपना आया कि उन्होंने अपना पूरा राज्य अपने ऋषि विश्वामित्र को सौंप दिया है जब वह सुबह जागे और अपने सभी मंत्री गण और ऋषियो के समक्ष प्रस्तुत हुए तो उन्होंने अपना ये स्वप्न सभी को सुनाया और महर्षि विश्वामित्र को अपना राज्य सौप दिया.

विश्वामित्र जी ने इसी के साथ राजा हरिश्चंद्र से कुछ मुद्राएं भी मांगी तो राजा विश्वामित्र को मुद्राएं देने के लिए राजी हुए लेकिन विश्वामित्र ने कहा कि तुमने मुझे राज्य के साथ में सब कुछ यानी धन,हीरे जवाहरात सभी मुझे दान में दे दिए है अब तुम्हारे पास मुझे मुद्राए देने के लिए नहीं है अब तुम क्या करोगे तभी राजा हरिश्चंद्र ने उस विश्वामित्र ऋषि के मांगने पर अपनी बीवी बच्चों को ऋषि विश्वामित्र के हवाले कर दिया

लेकिन उससे भी उस ऋषि की मांग पूरी न हो सकी उसमें भी कुछ मुद्राएं कम पड़ रही थी उसके बाद राजा हरिश्चंद्र ने अपने आपको भी इस ऋषि को सौंप दिया कि आज से मैं आपका गुलाम हूं इस तरह से राजा हरिश्चंद्र ने अपने आपको उस ऋषि को सौप दिया और एक गुलाम बन चुके थे अब वह अपना सब कुछ खो चुके थे.

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कुछ समय बाद राजा हरिश्चंद्र एक मरघत साला में काम करने लगे दरअसल एक व्यक्ति ने उनको मरगज शाला में काम करने के लिए नियुक्त किया था दरअसल जब भी कोई व्यक्ति मरगज शाला में किसी को जलाने के लिए लाता तो राजा हरिश्चंद्र उस व्यक्ति के कहे अनुसार उस मृत व्यक्ति के parivar वालो से कर के रूप में कुछ पैसा वसूल करते थे उन्होंने काफी समय तक ये काम किया.

एक समय ऐसा भी आया कि राजा हरिश्चंद्र को बहुत ही परेशानी का सामना करना पड़ा दरअसल एक बार जब राजा हरिश्चंद्र मरगट शाला में थे तभी एक औरत अपने मृत बच्चे को जलाने के लिए लाई लेकिन उसके पास पैसे नहीं थे जिस वजह से राजा हरिश्चंद्र ने उस बच्चे को मरगठ साला में जलाने से इंकार कर दिया

लेकिन जब उस औरत पर रोशनी की किरण पड़ी तभी राजा हरिश्चंद्र को पता लगा कि वह बच्चा और औरत कोई और नहीं बल्कि उसी के पत्नी और बच्चा है लेकिन फिर भी राजा ने उस बच्चे को जलाने से इंकार कर दिया क्योकि राजा हरिश्चंद्र हमेशा सत्य बोलते थे और कभी भी अपने काम को गलत तरीके से नहीं करते थे चाहे उसके लिए परिवार वालों को भी क्यों ना नुकसान उठाना पड़े.

राजा हरिश्चंद्र की इस बात को सुनकर उनके सत्य के रास्ते पर चलते हुए देखकर भगवान प्रकट हुए और उन्होंने राजा हरिश्चंद्र से कहा कि मैं आपसे बहुत खुश हूं तू जो मांगना चाहे वह मुझसे मांग सकता है.राजा हरिश्चंद्र ने इस वर के बदले अपने बच्चे की जान वापिस मांग ली तभी राजा हरिश्चंद्र का बच्चा उठ खड़ा हुआ और भगवान ने राजा हरिश्चंद्र के सत्य के मार्ग पर चलने के कारण उन्हें अपना राज्य और बीवी,बच्चे वापस दिलवा दिए और इस तरह से राजा हरिश्चंद्र सत्य के न्याय के लिए फिर से राजा बने और हमारे देश का नाम उज्जवल किया

इस तरह से हम कह सकते हैं कि राजा हरिश्चंद्र वाकई में सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र थे वह किसी भी परिस्थिति में सत्य के मार्ग को नहीं छोड़ते थे,वो सत्यवादी थे हमको भी उनके जीवन से प्रेरणा लेने की जरूरत है और जीवन में कुछ अच्छा करने की जरूरत है.

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