वाल्मीकि का जीवन परिचय Maharishi valmiki biography in hindi

Maharishi valmiki biography in hindi

हेलो दोस्तों कैसे हैं आप सभी,दोस्तों आज हम आपको Maharishi valmiki biography in hindi बताएंगे दोस्तों कुछ लोग ऐसे होते हैं जो बुरे कर्म करते हैं लेकिन अगर उन्हें अपने बुरे कर्मों का पश्चाताप होता है तो वह जीवन में आगे बढ़ते हैं और अपने पाप कर्मों को दूर करके जीवन में कुछ खास करते हैं ऐसे ही थे महर्षि बाल्मीकि जी जो पहले डाकू रत्नाकर नाम से प्रसिद्ध थे लोग उनके नाम से कांपते थे लेकिन उनके साथ कुछ ऐसा हुआ कि वह इस दुनिया के एक महाकवि बने जिन्होंने श्री रामचंद्र की संतानों लव कुश को शिक्षा दी.

रामायण नाम के एक महाकाव्य की रचना करके दुनिया में एक ऐसी ख्याति पाई कि जब तक दुनिया रहेगी तब तक महर्षि वाल्मीकि को नहीं भूला जाएगा आखिर यह सब कैसे हुआ आखिर कैसे एक डाकू रत्नाकर महर्षि बाल्मीकि बन गए तो चलिए पढ़ते हैं उनके जीवन की पूरी कहानी

Maharishi valmiki biography in hindi
Maharishi valmiki biography in hindi

image source-  http://www.iloveindia.com/spirituality/gurus/valmiki.html

महर्षि वाल्मीकि का जन्म त्रेता युग में हुआ था इनका वास्तविक नाम रत्नाकर था ये महर्षि कश्यप के परिवार से थे लेकिन बचपन में इन्हें एक भील चुरा ले गया था जिस वजह से बुरी संगत में पड़कर एक डाकू बन गए.ये रास्ते में आ रहे लोगों का धन लूट लिया करते थे इतना ही नहीं कुछ लोगों को जान से भी मार देते थे उन्होंने अपने जीवन काल में बहुत सारे पाप किए थे इनके पापों का घड़ा दिना दिन भर रहा था लूटा हुआ धन जब इनके पास आता तो अपने परिवार की जीविका चलाते थे.

इनके बारे में एक घटना है कि डाकू रत्नाकर लोगों को लूटने के इरादे से जंगल में को घेरे हुए थे तभी उधर से बहुत से लोग दौड़ते हुए जा रहे थे पास में नारद मुनि ने जब उन लोगों से पूछा तब उन्हें पता चला कि पास में ही रत्नाकर नाम का डाकू है लेकिन नारद मुनि नहीं रुके जिस रास्ते से वह लोग डर के मारे भाग रहे थे नारद मुनि भी उसी रास्ते पर चल पड़े कुछ समय बाद ही नारद मुनि के सामने रत्नाकर डाकू सामने आ गया रत्नाकर नारद मुनि से धन लूटना चाहता था लेकिन नारद मुनि ने डाकू रत्नाकर से कुछ ऐसा कहा कि रत्नाकर का पूरा जीवन परिवर्तित हो गया.

दरअसल नारद मुनि ने डाकू रत्नाकर से कहा की तुम पाप कर रहे हो तो क्या इस पाप में तुम्हारे परिवार वाले भी भागीदार होंगे तब डाकू रत्नाकर कहने लगे की ऋषि नारद मुनि मैं लोगों को लूट कर कोई पाप नहीं कर रहा हूं और वैसे भी अगर पाप करता हूं तो मैं अपने परिवार की जीविका चलाने के लिए करता हूं मेरे परिवार वाले जरूर ही मेरे पाप के भागीदार बनेंगे.

नारद मुनि ने डाकू रत्नाकर को अपने परिवार से यह बात पूछने को कहा तब रत्नाकर वहां से चला गया जब वह अपने परिवार वालों के पास पहुंचा तो उसने अपनी पत्नी और अपने पिता से कहा कि क्या मैं यह कर रहा हूं वह पाप है और अगर ये पाप है तो आप मेरे इस पाप में भागीदार बनेंगे तब उनके परिवार वाले कहते हैं कि हां ये पाप है लेकिन हम तुम्हारे सुख दुख में भागीदार बन सकते हैं लेकिन तुम्हारे पाप में भागीदार नहीं बन सकते रत्नाकर को बहुत ही दुख हुआ और वह नारद मुनि के पास गए और बुरे कर्मों को हमेशा के लिए छोड़ने को कहा.

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नारद मुनि ने उन्हें राम-राम जपने की सलाह दी और कहा की तुम्हें अगर अपने पापों को धोना है और एक अच्छा इंसान बनना है कुछ ख्याति पाना है तो तुम्हें तप करना पड़ेगा तभी से रत्नाकर तप करने के लिए चले गए जब वह तप करने के लिए गए तभी उन्हें एक शिकारी मिला.शिकारी प्रेमालाप में डूबे सारस पक्षी पर आक्रमण करके उसका शिकार कर चुका था यह देखकर रत्नाकर ने उन्हें यह सब न करने को कहा और उन्हें शिक्षा दी और फिर इसी के दौरान रत्नाकर जी ब्रह्माजी का तप करने लगे

काफी सालों तक ब्रह्मा जी का तप करने के बाद आखिर ब्रह्मा जी एक दिन उनके समक्ष प्रस्तुत हुए और उन्हें श्री रामचंद्र की रामायण नामक ग्रंथ को लिखने की सलाह दी उसके बाद महर्षि वाल्मीकि ने रामायण लिखना शुरु कर दिया.जब वाल्मीकि जी यानी रत्नाकर जी तप कर रहे थे तब उनके शरीर पर चारों ओर दीमक वामी बना चुके थे और जब रत्नाकर जी की तपस्या पूरी हुई तो वह वामी तोड़कर बाहर निकले तो लोग उन्हें वाल्मीकि कहने लगे क्योंकि दीमक की वामी को लोग बाल्मीकि कहते हैं तभी से रत्नाकर जी का नाम महर्षि वाल्मीकि हो गया.

ब्रह्मा जी के द्वारा दिए गए उपदेशों के बाद महर्षि बाल्मीकि यानी रत्नाकर जी ने महाकाव्य रामायण रचना की इस काम में उन्होंने श्री रामचंद्र की मर्यादा पुरुषोत्तम जीवन के बारे में जानकारी दी और हमें जीवन में उनके मार्ग पर चलने की सलाह दी. अपने बुरे कामों के पश्चाताप और ब्रह्माजी के तप के कारण महर्षि बाल्मीकि के पुराने बुरे कर्म धुल चुके थे वह एक अच्छे इंसान बन चुके थे लोग उन्हें भगवान वाल्मीकि जी भी कहते हैं इस तरह से एक डाकू महर्षि वाल्मीकि बन गया जिन्होंने श्रीरामचंद्र के पुत्रों लव और कुश को शिक्षा दी और उन्हें ज्ञानवान बनाया.महर्षि वाल्मीकि के द्वारा किए गए महान कर्मों की वजह से इनकी जयंती हमारे भारत देश में मनाई जाती है.

उत्तर भारत में ये जयंती और भी बहुत जोरों शोरों से मनाई जाती है कई जगह पर तो इनकी जयंती में शोभायात्राएं निकाली जाती हैं और कई प्रकार के धार्मिक आयोजन भी किए जाते हैं इसके अलावा तरह-तरह की मिठाये लोगों में वितरण की जाती है वाकई में महर्षि बाल्मीकि के जीवन से हमें बहुत कुछ सीखने को मिलता है आज दुनिया में एक इंसान भले ही कितना भी बुरा हो,कुछ भी कर रहा हो लेकिन अगर वह दिल से पश्चाताप करें और एक अच्छा इंसान बने तो वह दुनिया में कुछ कर सकता हैं, दुनिया में महर्षि वाल्मीकि की तरह ख्याति पा सकता है.

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