लिंगराज मंदिर का इतिहास Lingaraj temple history in hindi
Lingaraj temple history in hindi
Lingaraj temple – दोस्तों आज हम आपको इस आर्टिकल के माध्यम से लिंगराज मंदिर के इतिहास के बारे में बताने जा रहे हैं । तो चलिए अब हम आगे बढ़ते हैं और इस जबरदस्त आर्टिकल को पढ़कर लिंगराज मंदिर के इतिहास के बारे में जानकारी प्राप्त करते हैं ।
लिंगराज मंदिर के बारे में – लिंगराज मंदिर भारत देश के उड़ीसा राज्य में , उड़ीसा राज्य की राजधानी भुवनेश्वर में स्थित है । जिस मंदिर की सुंदरता देखने लायक है । जहां पर प्रति वर्ष लाखों की संख्या में भक्तगण जाते हैं और लिंगराज मंदिर के दर्शन करके अपने जीवन में आनंद प्राप्त करते हैं । यह मंदिर भुवनेश्वर भगवान को समर्पित है । जहां पर भुवनेश्वर भगवान के दर्शन करने के लिए सभी जाते हैं । यदि हम लिंगराज मंदिर के निर्माण की बात करें तो लिंगराज मंदिर का निर्माण तकरीबन 617 से 657 ईसवी के बीच में कराया गया था ।
जब इस मंदिर का निर्माण कार्य पूरा हो गया था तब इस मंदिर के पट सभी नागरिकों के लिए खोल दिए गए थे । इस मंदिर के निर्माण में ललाटेडु केसरी का महत्वपूर्ण योगदान रहा है । इस मंदिर के निर्माण में सोमवंशी राजा का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है । जिस सोमवंशी राजा का नाम जजाति केसरी था । जिसने 11वीं शताब्दी में इस मंदिर के निर्माण कार्य में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया था । इस मंदिर को बनाने से पहले इसकी सुंदरता और इसकी नक्काशी के लिए दूर-दूर से कारीगरों को बुलवाया गया था और सभी कारीगरों ने मिलकर इस मंदिर के निर्माण कार्य को पूरा किया था ।
मंदिर का जो प्रांगण बनाया गया है वह प्रांगण 150 मीटर वर्गाकार ने बनाया गया है । लिंगराज मंदिर में जो कलश बनाया गया है उस कलश की ऊंचाई तकरीबन 40 मीटर रखी गई है । जब कोई व्यक्ति लिंगराज मंदिर के दर्शनों के लिए जाता है वह है कलश की ऊंचाई और सुंदरता को देखकर आनंद प्राप्त करता है । कुछ समय बीत जाने के बाद इस मंदिर का निर्माण कार्य एक बार फिर से प्रारंभ कराया गया था और यह निर्माण कार्य 1090 से 1104 तक चला था । जब इस मंदिर का निर्माण कार्य प्रारंभ कराया गया था तब इस मंदिर पर नक्काशी के लिए पत्थर चारों तरफ से मंगवाए गए थे ।
जिन पत्थरों को नक्काशीयो के द्वारा तराशा गया था । जब हम इस मंदिर को देखते हैं तब इस मंदिर के कुछ हिस्से काफी पुराने दिखाई देते हैं और इन पुराने हिस्सों के बारे में ऐसा कहा जाता है कि यह पुराने हिस्से तकरीबन 1400 वर्ष पुराने हैं । जिसकी मरम्मत के लिए निर्माण कार्य कराए गए हैं । लिंगराज मंदिर पर एक धार्मिक कथा भी कहीं जाती है । कथा में यह बताया जाता है कि बसा और लिट्टी नाम के दो अहंकारी रक्षक थे । जिन्होंने आसपास के लोगों को परेशान करके रखा था । जब लोगों ने माता पार्वती की आराधना की तब माता पार्वती ने इन दोनों राक्षसों का वध कर दिया था ।
जब माता पार्वती ने दोनों राक्षसों का वध कर दिया था तब माता पार्वती को प्यास लगी थी । जब माता पार्वती को प्यास लगी तब शंकर भगवान ने कूप बनाने का निर्णय किया और सभी पवित्र नदियों को आमंत्रित किया था । सभी पवित्र नदियों के योगदान से कूप बनाया गया था । जिस कूप में माता पार्वती जी ने पानी पीकर अपनी प्यास बुझाई थी जिससे वहां पर बिंदुसागर सरोवर की उत्पत्ति हुई थी । जो आज भी वहां पर स्थित है । उसी बिंदुसागर सरोवर के बगल में लिंगराज का एक विशालकाय मंदिर स्थित है ।
जिस मंदिर से हिंदू धर्म एवं कई धर्म के लोगों की आस्था जुड़ी हुई है ।लिंगराज मंदिर का जो गर्भ ग्रह है वह बहुत ही सुंदर और अद्भुत है । जिस गर्भ ग्रह को देखने का मन सभी का करता है । भोग मंडल एवं जगमोहन के अंदर सुंदर-सुंदर मूर्तियां स्थित हैं । जो मूर्तियां देवी-देवताओं की मूर्तियां हैं । इन मूर्तियों की कलात्मक प्रतिमाएं जब हम देखते हैं तब हमें एक आनंद प्राप्त होता है । लिंगराज मंदिर की पूजा के भी कुछ नियम कानून है । वहा पर क्रमबद्ध पूजा होती हैं । सबसे पहले बिंदु सरोवर में स्नान किया जाता है । बिंदु सरोवर में स्नान करने के बाद क्षेत्रपति अनंत बासुदेव के दर्शन के लिए सभी जाते हैं ।
इसके बाद गणेश की आरती की जाती है । गणेश पूजा करने के बाद गोपालनी देवी की पूजा अर्चना की जाती है । गोपालनी देवी की पूजा करने के बाद शिवजी के बाहक नंदी की पूजा भी की जाती है ।नंदी की पूजा कर लेने के बाद लिंगराज के मुख्य स्थान पर पहुंचा जाता है और वहां पर लिंगराज की पूजा की जाती है । लिंगराज मंदिर में स्वयंभू लिंग स्थित है । जो लिंग 8 फुट मोटी एवं 1 फिट ऊंची हैं । जिस स्वयंभू लिंग को ग्रेनाइट पत्थर से बनाया गया है । लिंगराज मंदिर को देखने के लिए काफी पर्यटक देश विदेश से आते हैं और लिंगराज मंदिर के दर्शन करके अपनेेे जीवन में आनंद प्राप्त करते हैं ।
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