केदारनाथ मंदिर का इतिहास Kedarnath temple history in hindi
Kedarnath temple history in hindi
Kedarnath temple – दोस्तों आज हम आपको इस आर्टिकल के माध्यम से भारत देश में स्थित केदारनाथ मंदिर के इतिहास के बारे में बताने जा रहे हैं । चलिए अब हम आगे बढ़ते हैं और इस आर्टिकल को पढ़कर केदारनाथ मंदिर के इतिहास के बारे में जानकारी प्राप्त करते हैं ।
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केदारनाथ मंदिर के बारे में – भारत देश के उत्तराखंड राज्य में केदारनाथ मंदिर स्थित है । केदारनाथ मंदिर का इतिहास प्राचीन समय से ही दिलचस्प रहा है । भारत देश के कई ग्रंथों में केदारनाथ मंदिर के महत्व के बारे में बताया गया है । भारत देश के उत्तराखंड राज्य में केदारनाथ मंदिर गिरिराज हिमालय पर स्थित केदार नाम की चोटी पर स्थित है । केदारनाथ मंदिर से भारतीय लोगों की आस्था जुड़ी हुई है । केदारनाथ मंदिर में देश की 12 ज्योतिर्लिंगों मे से एक ज्योतिर्लिंग स्थित है । केदारनाथ मंदिर के चारों तरफ पहाड़ हैं ।
यदि हम केदारनाथ मंदिर के आसपास के क्षेत्र की बात करें तो केदारनाथ मंदिर के एक तरफ 22000 फुट ऊंचा केदार पर्वत है और दूसरी तरफ 21600 फुट ऊंचा एक खर्च कुंड भी है । केदारनाथ के तीसरी तरफ 22700 फुट ऊंचा भरत कुंड भी मौजूद है ।केदारनाथ मंदिर के आसपास ऊंची ऊंची चोटियों के साथ-साथ 5 नदियों का संगम भी मौजूद है । उन पांच नदियों के नाम इस प्रकार से हैं । सरस्वती , क्षीरगंगा , मंदाकिनी , मधु गंगा , स्वर्ण गोरी आदि । इन सभी पांच नदियों का संगम भी वहां से होकर गुजरता है । वहां पर स्थित अलकनंदा की सहायक मंदाकिनी के किनारे पर ही केदारनाथ मंदिर स्थित है ।
यदि हम केदारनाथ मंदिर के मौसम की बात करें तो केदारनाथ मंदिर पर सर्दियों के मौसम में बहुत अधिक बर्फ गिरती है । जब बारिश का मौसम होता है तब भारी बारिश भी केदारनाथ धाम पर होती है । केदारनाथ मंदिर उत्तराखंड राज्य का सबसे विशाल शिव मंदिर है । जिस मंदिर से हिंदू धर्म के लोगों की आस्था जुड़ी हुई है । यदि हम इस मंदिर के निर्माण के बारे में बात करें तो यह मंदिर कटवा पत्थरों को काटकर विशाल शिलाखंडों को जोड़कर , पत्थरों को तराश कर बनाया गया है । इस मंदिर में जो शिलाखंड उपयोग किए गए हैं वह शिलाखंड भूरे रंग के हैं । इस मंदिर को बनाने से पहले वहां पर 6 फुट का 1 लंबा चबूतरा बनाया गया था ।
इसके बाद उस 6 फुट के चबूतरे पर मंदिर का निर्माण कराया गया था । अब हम इस मंदिर के बारे में और भी जानेंगे की इस मंदिर की सुंदरता इतनी अधिक क्यों हैं । इस मंदिर में एक गर्भ ग्रह भी स्थित है । जिस गर्भ ग्रह को प्राचीन समय का माना जाता है । इस गर्भ ग्रह के निर्माण के बारे में ऐसा कहा जाता है कि इस गर्भ गृह का निर्माण तकरीबन 80 वी शताब्दी के दौरान किया गया था । गर्भ ग्रह के पास में स्थित एक अर्धा भी स्थित है और अर्धा के पास चारों कोनों पर 4 कठोर पत्थर के बने पाषाण स्तंभ भी मौजूद है । जहां से होकर सभी भक्तों की प्रदक्षिणा होती है । यदि हम केदारनाथ मंदिर में स्थित अर्धा की बात करें तो अर्धा चोकोर है जो अंदर से पोली है । इस मंदिर में स्थित सभामंडप भव्य एवं विशाल है ।
इस सभामंडप की छत चार विशाल पाषाण स्तंभों पर बनाई गई है । इस मंदिर की जो विशालकाय छत बनाई गई है वह पत्थर की बनाई गई है । मंदिर के अंदर गवाक्षो मे 8 पुरुष प्रमाण मूर्तियां भी स्थित हैं । जो मूर्तियां अत्यधिक सुंदर दिखाई देती हैं । यह सभी मूर्तियां अत्यंत कलात्मक हैं । केदारनाथ मंदिर धाम 187 फुट लंबा 85 फुट ऊंचा और 80 फुट चौड़ा है । इस मंदिर की जो दीवारें बनाई गई है वह दीवारें 12 फुट मोटी हैं ।
केदारनाथ धाम में स्थित शिवलिंग के बारे में – केदारनाथ मंदिर धाम में जो शिवलिंग स्थित है उस शिवलिंग के बारे में भारतीय हिंदू पुराणों में यह बताया गया है कि हिमालय के केदार पर्वत पर भगवान विष्णु के अवतार महा तपस्वी नर और नारायण ऋषि के द्वारा कठोर तपस्या की गई थी । उनकी तपस्या से खुश होकर भगवान भोलेनाथ जी वहां पर प्रकट हुए थे और उनकी तपस्या से खुश होकर उनको मनचाहा वरदान मांगने के लिए कहा गया था । जब शंकर भगवान ने नारायण ऋषि की तपस्या से खुश होकर उनसे मनचाहा वरदान मांगने के लिए कहा तब नारायण ऋषि ने शंकर भगवान से यह कहा कि वह ज्योतिर्लिंग के रूप में सदा के लिए यहां पर बास करें ।
शंकर भगवान ने उनकी प्रार्थना स्वीकार कर ली और ज्योतिर्लिंग के रूप में वहां पर विराजमान हो गए थे । भारतीय ग्रंथों के अनुसार मंदिर के सर्वप्रथम निर्माण के बारे में ऐसा भी कहा जाता है कि यहां पर मंदिर का सर्वप्रथम निर्माण पांडवों के द्वारा करवाया गया था लेकिन कुछ समय बाद यहां से मंदिर लुप्त हो गया था । फिर समय बीत जाने के बाद तकरीबन आठवीं शताब्दी के दौरान आदिशंकराचार्य जी के अथक प्रयासों से यहां पर एक नए मंदिर का निर्माण कार्य प्रारंभ कराया गया था ।
जब आदिशंकराचार्य जी ने यहां पर मंदिर का निर्माण कराया था तब कुछ समय बाद यह मंदिर बर्फ मे दब गया था और यह मंदिर तकरीबन 400 वर्ष तक बर्फ मे दबा रहा था ।
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