परहित सरिस धर्म नहिं भाई पर निबंध Essay on parhit saris dharam nahi bhai in hindi

Essay on parhit saris dharam nahi bhai in hindi

Essay on parhit saris dharam nahi bhai in hindi
Essay on parhit saris dharam nahi bhai in hindi

दोस्तों कैसे आप सभी, दोस्तों आज हम आपके लिए लाए हैं तुलसीदास जी द्वारा लिखित परहित सरिस धर्म नहिं भाई पर निबंध आप इसे जरूर पढ़ें तो चलिए पढ़ते हैं आज के इस निबंध को।

तुलसीदास जी द्वारा लिखित इस पंक्ति में बताया है कि दूसरे की भलाई से करने से बढ़कर कोई भी बड़ा धर्म नहीं होता। वास्तव में यह बात पूरी तरह सत्य है हमें दूसरों की हित के बारे में सोचना चाहिए वहीं हमारे लिए सबसे अच्छा है। आज हम देखें तो देश में कई ऐसे गरीब हैं जिन को दो वक्त का भोजन भी नसीब नहीं हो पाता हमारा सबसे बड़ा धर्म है कि हम उन गरीबों की कुछ मदद कर सकें अगर हम ऐसा कर पाते हैं तो वास्तव में हमें पुन्य मिलते हैं यही हमारा सबसे बड़ा धर्म होता है सामने वाला गरीब हमें धन्यवाद भी देता है उसके दिल को सुकून मिलता है।

अगर कोई अधिकारी जो कोई कार्य करने में या अपने दो वक्त का गुजारा करने में सक्षम नहीं है हमें चाहिए कि हम उसकी कुछ मदद करें क्योंकि यही हमारा सबसे बड़ा धर्म है हम उसे कुछ खाने के लिए दे सकते हैं जिससे वह हमें धन्यवाद कहे अगर आप इतने काबिल हो कि आप दूसरों की मदद कर सको तो आपको चाहिए कि किसी जरूरतमंद की आप मदद करें और जीवन में उसको आगे बढ़ने में मदद करें। आप किसी भी तरह से किसी व्यक्ति की मदद करना चाहे उसी तरह से कर सकते हैं। बुजुर्ग लोग जो असहाय हैं आप उनकी मदद करके भी पुण्य कमा सकते हैं यही आपके लिए सबसे बड़ा धर्म होगा।

गर्मियों में अपने छत पर या घर के द्वार पर जानवरों, पक्षियों के लिए पानी की व्यवस्था कर सकते हैं इससे भी दूसरों पर परोपकार होता है इससे भी हमें पुण्य मिलते हैं। अगर आप जीवन में एक सफल इंसान बनना चाहते हैं पैसा कमाना चाहते हैं और मान सम्मान पा लेते है। अगर आपके पास अपार संपत्ति है और आप किसी दूसरे का भला नहीं करते है तो इतनी संपत्ति जोड़ने का क्या मतलब हमें दूसरों की मदद करना चाहिए यही हमारा सबसे बड़ा धर्म है।

बहुत से लोग ऐसे भी होते हैं जो भगवान को मानते हैं उनके मंदिर भी जाते हैं पूजा आराधना भी करते हैं यह बहुत अच्छी बात है कि आप ऐसा करते हैं लेकिन यदि किसी गरीब असहाय व्यक्ति की आप मदद नहीं करते हो तो वास्तव में भगवान की सेवा करना बेकार है क्योंकि भगवान भी चाहते हैं कि आप गरीब असहाय लोगों की किसी न किसी तरह से मदद करें।

आप अपना समय इन कार्यों में जरूर लगाएं। भगवान श्री राम ने जब सुग्रीव से मित्रता की थी तब उन्होंने निस्वार्थ भाव से सुग्रीव की मदद की थी उन्होंने सुग्रीव के दुश्मन वाली को मार डाला था और सुग्रीव को अपना राज दिलवाया था। श्री राम की तरह हमको भी निस्वार्थ भाव से अपने दोस्तों की, रिश्तेदारों की, गरीबों की, बेसहारा लोगों की मदद करते रहना चाहिए।

हम मंदिर जाते हैं तो मंदिर में भी हमें भगवान श्री राम की तरह उनके पदचिन्हों पर चलने की शपथ लेनी चाहिए और अपनी बुराइयों को दूर करने की भी कसम खानी चाहिए। वास्तव में जो इंसान दूसरों की भलाई का कार्य करता है गरीबो,बेसहारा सभी की हर तरह से मदद करता है बह सबसे बड़ा धर्म का काम करता है। ईश्वर भी हमेशा उससे खुश रहता है। जीवन में वह आगे बढ़ता चला जाता है सफलता की ऊंचाइयों को छूता है क्योंकि ईश्वर का आशीर्वाद उसके सिर पर हमेशा रहता है।

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