छठ पूजा का इतिहास व् कथा chhath puja history, katha in hindi
chhath puja katha in hindi
दोस्तों आज हम आपको इस आर्टिकल के माध्यम से छठ पूजा का इतिहास व कथा बताने जा रहे हैं . चलिए अब हम आगे बढ़ते हैं और इस लेख को पढ़ते हैं .
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छठ पूजा का इतिहास – छठ पूजा का इतिहास काफी पुराना माना जाता है . छठ पूजा को सूर्य षष्ठी भी कहा जाता है . छठ माता की पूजा कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की षष्ठी को की जाती है .
इस व्रत में सूर्य भगवान की पूजा की जाती है . इस व्रत में सूर्य भगवान की पत्नी उषा की पूजा की जाती है . यह व्रत महिलाएं संतान प्राप्ति एवं अपने परिवार की सुख-समृद्धि के लिए करती है . यह त्यौहार बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है . यह त्यौहार चतुर्थी से सप्तमी तक बड़े धूमधाम से मनाया जाता है .
छठ पूजा का इतिहास प्राचीन समय का है . यह त्यौहार झारखंड , बिहार , पूर्वी उत्तर प्रदेश , नेपाल आदि प्रदेशों में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है . यह त्योहार राम राज्य समय से ही बड़े धूमधाम से मनाया जाता है .
यह कहा जाता है कि राम भगवान जब लंका जीत कर अयोध्या वापस आए थे तब माता सीता और भगवान राम ने छठ माता की पूजा की थी . सूर्य भगवान की पूजा की थी . प्राचीन ग्रंथों में हमें यह भी पढ़ने को मिलता है कि छठ पूजा का व्रत सबसे पहले सूर्य भगवान के पुत्र कर्ण ने किया था .
इसके अलावा महाभारत काल में भी छठ माता का व्रत एवं पूजा द्रौपदी ने भी की थी . द्रौपदी ने यह व्रत अपने परिवार की सुख शांति एवं समृद्धि के लिए किया था . छठ व्रत की शुरुआत नहाए – खाय रस्म से की जाती है . पहले दिन जो महिला एवं पुरुष छठ माता का व्रत रखता है वह कद्दू की सब्जी , दाल चावल खाता है और छठ माता की पूजा करता है . दूसरे दिन खरना रस्म निभाई जाती है . दूसरे दिन जो भी प्रसाद बांटा जाता है वह प्रसाद खरना में ही बांटा जाता है .
इस दिन भोजन में नमक व चीनी का उपयोग नहीं किया जाता है . ऐसा कहा जाता है कि जो महिला पुरुष छठ पूजा व्रत करता है वह नमक व चीनी से बने व्यंजनों का सेवन नहीं करता है .
छठ माता के व्रत के तीसरे दिन जो भी व्रत करता है वह शाम के समय नदी या तालाब के किनारे जाकर , पानी के अंदर जाकर सूर्य भगवान को अर्ध्य देता हैं और सूर्य भगवान को दूध एवं जल से अर्घ्य दिया जाता है . इस दिन बांस के बने हुए सूप में मैदा का बना हुआ ठेकुआ , गन्ना , मूली , चावल के लड्डू एवं अन्य तरह की सब्जियां व फल फ्रूट रखा जाता है .
इस प्रसाद को अर्ध्य देने के बाद सूर्य भगवान एवं छठ माता को चढ़ाया जाता है . अंतिम दिन कार्तिक मास की शुक्ल सप्तमी के दिन जो भी व्यक्ति छठ माता का व्रत रखता है वह उस दिन नदी एवं तालाब के किनारे जाकर सूर्य भगवान की पूजा अर्चना करता है .
अंतिम दिन व्रत करने वाला व्यक्ति घर के पास में स्थित पीपल के पेड़ की पूजा करता है एवं जल चढ़ाता है . पूजा करने के बाद व्रत करने वाला व्यक्ति कच्चे दूध का शरबत और प्रसाद ग्रहण करके अपना व्रत पूरा करता है . इस पूरी प्रक्रिया को पारण कहते हैं .
छठ माता की व्रत कथा – एक राज्य में प्रियव्रत नाम का राजा राज करता था और उसकी एक पत्नी थी जिसका नाम मालिनी था . उनकी कोई संतान नहीं थी . काफी समय बीत जाने के बाद उन्होंने संतान प्राप्ति के लिए पुश्रेष्ठी यज्ञ करवाने की योजना बनाई थी . उन्होंने यह यज्ञ महर्षि कश्यप के द्वारा करवाया था . इस यज्ञ बाद प्रियव्रत की रानी गर्भवती हो गई थी और बच्चा पैदा हुआ लेकिन वह बच्चा मरा हुआ पैदा हुआ था . यह सब देखकर राजा पूरी तरह से टूट चुका था .
उसने आत्महत्या करने का विचार बना लिया था . वह जैसे ही आत्महत्या कर रहा था उसी समय एक कन्या वहां पर प्रकट हुई और प्रियव्रत से कहने लगी कि मैं छठ माता हूं जो भी व्यक्ति मेरी पूजा सच्चे मन से करता है मैं उसे संतान प्राप्ति का वरदान देती हूं . यदि तुम संतान चाहते हैं तो मेरी पूजा सच्चे मन से करो . मेरी पूजा , व्रत एवं कथा करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती है .
राजा ने छठ माता के कहे अनुसार व्रत किया और पूजा की . छठ माता की कृपा से राजा के यहां एक पुत्र ने जन्म लिया और राजा रानी तभी से छठ माता की पूजा एवं व्रत कथा करने लगी थी . इसी तरह से जो भी व्यक्ति छठ माता की पूजा करता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती है , परिवार की सभी इच्छाएं पूरी होती है .
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