बाबा बैद्यनाथ धाम की कथा एवं इतिहास baba baidyanath dham history in hindi

baba baidyanath dham history in hindi

दोस्तों आज हम आपको इस लेख के माध्यम से बाबा बैद्यनाथ धाम की कथा एवं इतिहास के बारे में बताने जा रहे हैं ।  चलिए अब हम इस आर्टिकल को पढ़ते हैं और बाबा बैद्यनाथ धाम के बारे में जानते हैं । बाबा बैद्यनाथ धाम का इतिहास रामायण काल के समय का माना जाता है । रामायण काल के समय में ही बाबा बैद्यनाथ धाम , भगवान शिव की शिवलिंग स्थापित हुई थी । बाबा बैद्यनाथ धाम का मंदिर भारत देश के झारखंड राज्य के देवघर नामक स्थान पर स्थित है ।

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image source –https://www.billdesk.com/hdfc/Baidyanat

यह धाम हिंदू धर्म के लोगों का सबसे पवित्र धाम है । इस बाबा बैद्यनाथ धाम को देवघर भी कहा जाता है । यहां की ज्योतिर्लिंग उन 12 लिंगो में से एक है जिन ज्योतिर्लिंग को भगवान शिव का रूप माना जाता है । यह ज्योतिर्लिंग सिद्ध ज्योतिर्लिंग हैं । इस ज्योतिर्लिंग की जो भी सच्चे ह्रदय से पूजा करता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं । इसलिए इस ज्योतिर्लिंग को कामना लिंग भी कहा जाता है । इस मंदिर के समीप एक विशाल तालाब भी है ।

इस तालाब के बारे में यह कहा जाता है कि यह वही तालाब है जहां पर रावण ने लघु शंका की थी । यह हिंदू धर्म के प्रमुख तीर्थों में से एक तीर्थ है  जहां पर हिंदू धर्म के सभी लोग दर्शन करने के लिए जाते हैं ।

कथा – जब रामायण काल के समय में रावण ने भगवान शिव की विशाल पर्वत पर तपस्या कर , भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए अपने सिर काटकर अग्नि में डाल दिए थे तब भगवान शिव रावण की तपस्या से प्रसन्न हुए थे । रावण के द्वारा काटे गए सिरो को भगवान शिव ने पुनः रावण को दे दिए थे । रावण की तपस्या से खुश होकर भगवान शिव जी ने उसे मनचाहा वरदान मांगने को कहा था । रावण ने भगवान शिव से एक ही वरदान मांगा था कि भगवान शिव यह पर्वत छोड़कर लंका में वास करें ।

भगवान शिव ने रावण को अपने अंग से बनी हुई ज्योतिर्लिंग दे दी थी और रावण से कहा था कि यह ज्योतिर्लिंग जहां पर भी तुम रखोगे वहीं पर यह स्थापित हो जाएगी । जब यह बात देवी देवताओं को मालूम पड़ी तो वह बहुत घबरा गए थे और विष्णु भगवान के पास पहुंच गए थे । सभी देवी देवताओं ने विष्णु भगवान से कहा कि यदि यह शिवलिंग रावण की लंका में पहुंच गई तो यह रावण पूरी दुनिया को अपने कब्जे में कर लेगा ।

विष्णु भगवान ने सभी देवी देवताओं की प्रार्थना सुनकर एक लीला रची और वरुण देव से कहा कि तुम रावण के पेट में बास करो । विष्णु भगवान बैजू ग्वाल का रूप धारण कर धरती पर आए । जब राजा देवघर के निकट था तब उसे बहुत जोर से लघु शंका लगी । जब रावण को बहुत जोर से लघु शंका लगी तब उसने इस ज्योतिर्लिंग को बैजू ग्वाल के हाथों में थमा दी थी । रावण लघु शंका करने के लिए  चला  गया था । जहां पर रावण ने लघु शंका की थी वहां पर  एक तालाब आज ही स्थित है ।

जैसे ही रावण लघुशंका करने के लिए चला गया था  उसी समय बैजू ग्वाल ने वह ज्योतिर्लिंग वहीं पर रख दी थी और वह ज्योतिर्लिंग वहीं पर स्थापित हो गई थी । जब रावण वहां पर आया तब उसने देखा कि वह ज्योतिर्लिंग जमीन पर रखी हुई हैै । उस रावण ने ज्योतिर्लिंग को उखाड़ने की बहुत कोशिश की लेकिन वह नहीं उखड़ी । वह रावण देवी देवताओं की चाल समझ गया था और उसने ज्योतिर्लिंग पर अपना अंगूठा गड़ा कर वहां से वापस लंका चला गया था ।

जैसे ही रावण वहां से चला गया तब देवी देवताओं नेे एवं ब्रह्मा , विष्णु जी ने उस ज्योतिर्लिंग की पूजा अर्चना की और वहीं पर स्थापित करके वहां से वापस  देव लोक आ गए थे । विष्णु भगवान  ने बैजू ग्वाल  का रूप धारण किया था इसलिए इस धाम को बैजनाथ धाम कहा जाता है । इस जगह को बाबा बैद्यनाथ धाम के साथ साथ रावणेश्वर धाम भी कहां जाता है ।

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