भगवान शिव की उत्पत्ति कैसे हुई Story of lord shiva and his birth in hindi

Story of shivling in hindi language

दोस्तों आज हम पढ़ेंगे भगवान शिव के जन्म की कथा भगवान शिव हम सभी के पूजनीय हैं वह निराकार हैं उनका कुछ भी आदी या अंत नहीं है वैसे तो भगवान शिव की उत्पत्ति के बारे में कोई भी प्रमाणिक बात पता नहीं लगी है लेकिन भगवान शिव की उत्पत्ति से संबंधित पुराणों में दो कथाएं प्रसिद्ध है आज हम इन्ही कथाओं को पढ़ेंगे तो चलिए पढ़ते हैं भगवान शिव की उत्पत्ति से संबंधित दो कथाओं को.

Story of lord shiva and his birth in hindi
Story of lord shiva and his birth in hindi

पुराणों में एक कथा है जिसके अनुसार एक ऋषि ने भगवान शिव से पूछा कि भगवान आपके पिता कौन हैं? इस सवाल के जवाब में भगवान शिव ने कहा की मेरे पिता ब्रह्मदेव हैं इस सवाल के जवाब को सुनकर उस ऋषि की जिज्ञासा खत्म नहीं हुई बल्कि और बढ़ गई उस ऋषि ने फिर से यही सवाल भगवान ब्रह्मदेव के बारे में पूछा की आपके पिता ब्रह्मदेव हैं लेकिन ब्रह्मदेव के पिता कौन हैं तो भगवान शिव बोले कि ब्रह्मदेव के पिता भगवान विष्णु है.

ऋषि ने फिर से सवाल किया भगवान विष्णु के पिता कौन हैं? तो भगवान शिव बोले की विष्णु के पिता शिव हैं इस तरह के जवाब को सुनकर ऋषि समझ गए की भगवान शिव की उत्पत्ति को समझना मुश्किल है उन्होंने इस तरह के सवाल फिर नहीं किए.

पुराणों में भगवान शिव की उत्पत्ति से संबंधित एक और कथा पढ़ने को मिलती है जिसके अनुसार निराकार भगवान शिव का जन्म हुआ उनसे भगवान विष्णु का जन्म हुआ और भगवान विष्णु से ब्रह्म देव का जन्म हुआ जब भगवान विष्णु और ब्रह्मदेव का जन्म हुआ तो दोनों में इस बात को लेकर बहस छिड़ गई की मैं सबसे पहले आया हूं.ब्रह्मदेव बार-बार कहते की आप से पहले मैं आया हूं विष्णु देव कहते की आप से पहले मैं आया हूं इस तरह की बातों से उन दोनों में बहुत ज्यादा बहस हो गई.

लगभग 10000 वर्षों तक उन दोनों के बीच युद्ध हुआ लेकिन इस युद्ध का कोई भी परिणाम नहीं निकला तभी भगवान शिव एक ऊर्जा स्त्रोत का रूप रख कर उन दोनों के बीच में खड़े हो गए तभी आकाशवाणी हुई कि तुम दोनों में सबसे शक्तिशाली और महान कौन है और सबसे पहले कौन आया है यह तभी माना जाएगा जब कोई मेरे इस ऊर्जा स्त्रोत के ऊपर या निचले सिरे की शुरुआत या अंत का पता लगाएगा.

ब्रह्मदेव यह सुनकर उस ऊर्जा स्त्रोत के ऊपर वाले सिरे की ओर चले गए और उसका अंत ढूंढने लगे विष्णुदेव नीचे वाले सिरे की ओर जा कर उस ऊर्जा स्त्रोत का अंत ढूंढने लगे लेकिन किसी को भी उस ऊर्जा स्त्रोत का शुरुआत या अंत नहीं मिला.विष्णु देव को जब इस ऊर्जा स्त्रोत का अंत नहीं मिला तो उन्होंने भगवान से माफी मांगी कि हे भगवान शिव मुझे माफ कीजिए मैं अपने आप को बड़ा समझ रहा था मुझे इसका आदि या अंत नहीं मिला है लेकिन ब्रह्मदेव चाहते थे कि वह इस सृष्टि में महान कहलाएं और सभी लोग यहीं जाने कि उनकी उत्पत्ति सबसे पहले हुई है इसी वजह से ब्रह्मदेव ने वापस आकर भगवान शिव से कह दिया कि मैंने इस ऊर्जा स्त्रोत का अंत ढूंढ लिया है

ब्रह्मदेव की यह बात सुनकर भगवान शिव क्रोधित हुए उन्होंने कहा की यह मेरा रूप है इसका ना आदी है न अंत है क्योंकि मैं निराकार हूं तुम्हारे झूठ बोलने पर मैं तुम्हें श्रॉफ देता हूं कि तुम्हारी कोई पूजा नहीं करेगा लेकिन ब्रह्मदेव ने इस पर माफी मांगी और कहा कि भगवान मुझे एक वर दीजिए कि आप हमारे जैसे समान रुप में हमारे साथ रहे और तभी उस ऊर्जा स्त्रोत मैं से साकार शिव की उत्पत्ति हुई और उस ऊर्जा स्त्रोत को शिवलिंग के रूप में पूजा जाने लगा.

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