पिंजरे में बंद पक्षी की आत्मकथा Pinjre me band pakshi ki atmakatha in hindi
Pinjre me band pakshi ki atmakatha in hindi
दोस्तों कैसे हैं आप सभी,दोस्तों आज का हमारा आर्टिकल पिंजरे में बंद पक्षी की आत्मकथा एक पक्षी की जानकारी देगा यह हमारे द्वारा लिखित एक काल्पनिक आर्टिकल है हमारे द्वारा लिखित इस आर्टिकल का उपयोग आप अपने स्कूल, कॉलेज की परीक्षा में इस तरह की जानकारी लिखने के लिए कर सकते हैं साथ में अपने ज्ञान को बढ़ाने के लिए भी आप इस आर्टिकल को जरूर पढ़ें और समझे की पक्षी निर्जीव नहीं होते वह भी जीवित होते हैं उन्हें भी जीने का,स्वतंत्र होने का पूरा अधिकार है चलिए पढ़ते हैं पिंजरे में बंद पक्षी की आत्मकथा
मैं एक पक्षी हूं मेरा जन्म जंगल के वृक्ष के ऊपर बने घोसले में हुआ है जंगल के पेड़ के ऊपर बने हुए घोसलों में मैं अपने माता पिता के साथ रहता था.में धीरे-धीरे थोड़ा बड़ा होने लगा एक दिन मेरे माता पिता कहीं दाना चुगने के लिए गए हुए थे वो रोज सुबह जाते और शाम को मेरे लिए खाना लेकर आते थे उस दोपहर गर्मी बहुत थी मुझे प्यास लगी थी मैं पानी की खोज में उसपर से दूर कहीं उड़ चला.मैं प्यास की वजह से ध्यान ही नहीं दे पाया कि मैं अपने घोसले वाले पेड़ से बहुत दूर आ गया हूँ.
मुझे एक नदी दिखी मैंने वहां पर पानी पिया और पानी पीने के बाद कुछ पल एक पेड़ की छांव में रुका तभी मैंने पीछे मुड़ कर देखा तो मुझे अपने घोसले का रास्ता पता ही नहीं चला मैं एक दम से घबरा चुका था मेरे मन में तरह-तरह के ख्याल आने लगे थे मैं सोचने लगा कि अब मैं अकेला क्या करूंगा मैंने उस रास्ते में थोड़े आगे जाने की कोशिश की लेकिन मुझे रास्ता समझ नहीं आया और मैं वापस उसी नदी के किनारे आ गया.
दो दिन तक मैं उसी नदी के किनारे रुका और वहां के मीठे मीठे फल फूल भी खाये और नदी का मीठा पानी भी पिया.मेने सोचा कि मेरे माता-पिता घोसले में बहुत दुखी हो रहे होंगे.कुछ समय बाद एक दिन चिड़ीमार मीठा मीठा पानी पीने के लिए आया तभी उसकी नजर मुझपर पड़ी मैं गहरी नींद में था.उसने मुझे पिंजरे में बंद कर लिया था और जब मेरी नींद खुली तो मैं समझ गई थी कि जरूर ही मुझे किसी ने सोते हुए पकड़ लिया है. मैं बहुत जोर से चिल्ला रहा था लेकिन उस चिड़ीमार ने मेरी चिल्लाने की आवाज पर बिल्कुल भी दया नहीं दिया और आखिर मुझे चिल्लाना बंद करना पड़ा.
कुछ देर बाद वह अपनी गाड़ी पर बैठाकर मेरे पिंजरे को बाजार में ले गया बाजार में उसने मेरा पिंजरा एक जगह रख दिया.कुछ लोग आते और मुझे देखकर चले जाते.मैं समझ चुका था कि ये व्यक्ति जरूर ही मुझे बेच देगा.मुझे डर भी लग रहा था कि पता नहीं यह लोग मुझे खरीदकर मेरे साथ क्या करेंगे मैं वहां पर काफी देर तक बैठा था तभी एक व्यक्ति आया और उसने कुछ रुपए देकर मुझे खरीद लिया और वह अपने साथ मुझे ले गया.
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मैं जैसे ही घर गया तो उसके बच्चे मुझे देखकर बहुत खुश हुए मैं पिंजरे में बंद था थोड़ा दुखी था थोड़ा खुश भी था क्योंकि मुझे लग रहा था कि शायद ये छोटे-छोटे बच्चे मेरी सही तरह से देखरेख करेंगे.वैसे भी मेरे मम्मी पापा मुझसे बिछड़ चुके थे अब मैं अकेले वहां पर रहकर भी क्या करता शायद मेरा यहां पर अच्छा मन लगा रहे इसलिए मैंने भी जिंदगी को यही जिंदगी समझ लिया.वह बेचारे बच्चे सुबह शाम मुझे तरह तरह की चीजें खिलाते.मैं बहुत ही खुश रहता है वह मुझे रात में दरवाजा बंद करके कमरे में खुला छोड़ देते हैं.में कमरे की दीवारों पर चढ़ता और बच्चों के साथ खूब मजे करता.धीरे-धीरे मैं अपने मां-बाप की यादों को भूलाता जा रहा था मुझे इसी में खुशी थी.
आज मुझे कई साल हो चुके हैं मैं आज थोड़ा सा दुखी रहता है कि मेरे जैसे और पक्षी खुले आसमान में उड़ सकते हैं लेकिन मुझे इन लोगों ने पिंजरे में बंद कर रखा है.एक दिन बच्चे को मुझपर दया आ गई उसने मुझे छोड़ दिया और मैं आसमान मे उड़ने लगा लेकिन मुझे भी उन दोनों बच्चों की बहुत याद आ रही थी शाम को मैं उसी कमरे में जा पहुचा. बच्चे मुझे देखकर बहुत खुश थे और कभी-कभी मुझे खुले में छोड़ देते थे. मैं खुले में घूमकर अपने दोस्तों से मिलकर रोज शाम को घर आ जाता था.वह सुबह मुझे वापस पिंजरे से बाहर निकाल देते.वाकई में मैं इस जिंदगी में बहुत खुश था वह बच्चे और उनके परिवार वाले बहुत ही अच्छे थे वास्तव में पिंजरे में बंद पक्षी के लिए ये बहुत ही खुशी की बात होती है।
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