मेरी पहली अध्यापिका मेरी माँ पर निबंध Meri pahli adhyapika meri maa par hindi essay
Meri pahli adhyapika meri maa par hindi essay
Meri pahli adhyapika meri maa – दोस्तों आज हम आपको इस आर्टिकल के माध्यम से मेरी पहली अध्यापिका मेरी मां पर लिखे निबंध के बारे में बताने जा रहे हैं । तो चलिए अब हम आगे बढ़ते हैं और इस आर्टिकल को पढ़कर मेरी पहली अध्यापिका मेरी मां के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त करते हैं ।
मेरी पहली अध्यापिका मेरी मां के बारे में – जब मेरा जन्म इस दुनिया में हुआ तब मेरे पालन-पोषण में मेरी मां का एक महत्वपूर्ण योगदान रहा है । मैं धीरे धीरे बढ़ा हुआ तो मेरी मां के द्वारा मुझे चलना , उठना , बैठना सिखाया गया है ।
इसलिए यह कहना कोई गलत नहीं होगा कि मेरी पहली अध्यापिका मेरी मां ही है क्योंकि माँ ही अपने बच्चों को संस्कार देती है उसी तरह से मेरी माँ ने भी मुझे संस्कार देकर इस समाज में , अपने देश में जीने के लायक बनाया है । वह माँ ही होती है जो अपने बच्चे को पहला ज्ञान देती है । इसके बाद बच्चा आगे बढ़ता हैं , माँ की ममता कि आंचल में बच्चा आगे बढ़ता है ।
माँ ही बच्चे की पहली गुरु अध्यापिका होती है जिसके माध्यम से बच्चा अपने जीवन को सफल बनाता है । माँ के बिना किसी बच्चे का जीवन एक सफल जीवन नहीं हो सकता है क्योंकि मां के ज्ञान के बिना कोई बच्चा संस्कार प्राप्त नहीं कर सकता है ।
जो बच्चा अपनी माँ के द्वारा संस्कार प्राप्त करता है वह आने वाले जीवन में सभी कठिनाइयों से लड़कर आगे बढ़ता है और सफलता प्राप्त करता है । एक माँ अपने बच्चे को अपने गर्भ में 9 महीने रखती है । अपने पेट में अपने बच्चे का भरण पोषण करती है । इसके बाद बच्चा जन्म लेता है ।
इसके बाद उसके भरण-पोषण से लेकर उसकी रक्षा तक उसकी माँ के द्वारा की जाती है । जब बच्चा धीरे-धीरे बड़ा होने लगता है तब उसकी माँ के द्वारा उसको संस्कार , शिक्षा आदि दी जाती है । इसीलिए माँ ही बच्चे की पहली अध्यापिका होती है जिसके माध्यम से वह अपने जीवन में संस्कार प्राप्त करता है ।
सभी मनुष्य के जीवन में शिक्षा का एक बड़ा महत्व होता है क्योंकि शिक्षा प्राप्त किए बिना मनुष्य का जीवन अंधकार में होता है । जिस अंधकार को शिक्षा के द्वारा दूर किया जा सकता है । एक माँ ही होती है जो अपने बच्चे को अपने धर्म के बारे में बताती है । माँ के द्वारा ही बच्चे को भगवान की आराधना करने के बारे में बताया जाता है ।
मेरी माँ के द्वारा मुझे आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त हुआ है । मैं जानता हूं कि मेरी माँ ने मुझे अच्छे संस्कार देकर समाज में उठने बैठने के लायक बनाया है । माँ से ज्ञान प्राप्त करके मैं अपने जीवन को सफल बना पाया हूं इसलिए मेरे जीवन में मेरी माँ ही मेरी अध्यापिका है क्योंकि मनुष्य को ज्ञान अपनी माता के द्वारा और अपने गुरुजनों के द्वारा ही प्राप्त होता है ।
माँ के द्वारा ही बच्चे को पहला ज्ञान दिया जाता है । एक माँ ही अपने बच्चे को निस्वार्थ भाव से ज्ञान देती है । जब बच्चा अपनी माँ से ज्ञान प्राप्त करके अपने जीवन को सफल बनाने के लिए कार्य करता है तब वह एक सफल इंसान बनता है ।
यदि माँ नहीं होती तो बच्चे को उचित संस्कार प्राप्त नहीं होते और ना ही उसे ज्ञान की प्राप्ति होती । इसीलिए बच्चे के जीवन में माँ का होना बहुत ही जरूरी है । मेरी माँ मुझे बचपन से ही एक सफल इंसान बनने के लिए ज्ञान देती आ रही है ।
मेरी माँ के द्वारा ही मुझे यह सिखाया गया है कि समाज क्यों आवश्यक है और समाज के लिए जो व्यक्ति अपना योगदान देता है वह एक सफल इंसान होता है । मेरी माँ के द्वारा ही मुझे यह बताया गया था कि लोगों की भलाई के लिए हमेशा कार्य करना चाहिए । सिर्फ अपने जीवन को सफल बनाने के बारे में नहीं सोचना चाहिए ।
हमें दूसरों के जीवन को सफल बनाने के लिए भी कार्य करना चाहिए । जिसके बाद मैं बड़ा होकर समाज के हित में कार्य करने लगा और आज पूरी समाज मेरा सम्मान करती है । यह सब मुझे मेरी माँ के द्वारा ही प्राप्त हुआ है । मेरे जीवन की पहली अध्यापिका मेरी माँ ही है ।
मैं अपनी मां का बहुत सम्मान करता हूं और मैं कभी भी अपनी माँ की बात को नहीं टालता हूं । जब मैं बड़ा होकर अपनी आगे की शिक्षा प्राप्त करने के लिए स्कूल गया तब मेरे गुरु जी के द्वारा भी मुझे यह बताया गया था कि माँ ही बच्चे के जीवन में उजाला करती है ।
माँ से बच्चे को सभी तरह की खुशी प्राप्त होती है । बच्चे का भरण पोषण करने के साथ-साथ बच्चे को ज्ञान देने का कार्य भी माँ के द्वारा ही किया जाता है जिस ज्ञान को पाकर बच्चा संस्कार प्राप्त करता है ।
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