ईश्वर चन्द्र विद्यासागर की जीवनी ishwar chandra vidyasagar biography in hindi

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दोस्तों आज हम आपको इस आर्टिकल के माध्यम से ईश्वर चंद्र विद्यासागर जी के जीवन के बारे में बताने जा रहे हैं ।चलिए अब हम आगे बढ़ते हैं और ईश्वर चंद्र विद्यासागर जी की जीवनी को बड़ी गहराई से पढ़ते हैं ।

shwar chandra vidyasagar biography in hindi
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Image source – https://en.m.wikipedia.org/wiki/Ishwar_Chandra_Vidyasagar

न्म स्थान व् परिवार – ईश्वर चंद्र विद्यासागर जी का जन्म 26 सितंबर 1820 को बंगाल के मेदनीपुर जिले के वीर सिंह गांव में हुआ था । ईश्वर चंद्र विद्यासागर जी के पिताजी का नाम ठाकुरदास बंधोपाध्याय था । उनकी माता जी नाम भागवती देवी था । ईश्वर चंद्र विद्यासागर जी का जन्म एक अति निर्धन दलित परिवार में हुआ था । इनके घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी । इनके पिता ठाकुरदास बंधोपाध्याय जी मेहनत मजदूरी करके अपना घर संभालते थे । ईश्वर चंद्र विद्यासागर जी के बचपन का नाम ईश्वर चंद्र बंधोपाध्याय था ।

ईश्वर चंद्र विद्यासागर जी एक ऐसे महान व्यक्ति थे जिन्होंने समाज की सेवा में अपना सारा जीवन बिता दिया था । ईश्वर चंद्र विद्यासागर जी एक प्रसिद्ध दार्शनिक , समाज सुधारक , शिक्षाविद , मुद्रक , लेखक प्रकाशक , अनुवादक , परोपकारी एवं उद्यमी व्यक्तित्व थे । जिसने अपने जीवन में कई महान कार्य किए हैं । ईश्वर चंद्र विद्यासागर जी का विवाह दिनामनि देवी से हुआ था । ईश्वर चंद्र विद्यासागर जी और दिनामनि देवी की एक संतान भी थी जिसका नाम नारायण चंद्रा बंदोपाध्याय था ।

यह एक ऐसी सोच वाले व्यक्ति थे जिन्होंने समाज को नई दिशा दी थी । ईश्वर चंद्र विद्यासागर जी के द्वारा कई ऐसी कुरीतियों को समाज से खत्म किया गया था  जिससे  समाज के लोगों को  हनी हो रही थी । समाज को सही रास्ता दिखाने का काम ईश्वर चंद्र विद्यासागर जी के द्वारा किया गया था । ईश्वर चंद्र विद्यासागर जी के अंदर भेदभाव जैसी भावना नहीं थी । वह निष्पक्ष भाव से समाज को और निर्धन व्यक्तियों को निरंतर आगे बढ़ाने का प्रयत्न करते रहते थे ।

ईश्वर चंद्र विद्यासागर जी की प्रारंभिक शिक्षा – ईश्वर चंद्र विद्यासागर जी एक निर्धन परिवार के थे । वह उच्च शिक्षा प्राप्त करने में अपने आपको असहाय समझते थे । परंतु उनके पिता का दृढ़ संकल्प था कि वह अपने बच्चे को उच्च शिक्षा अवश्य प्रदान कराएंगे और वह अपने बच्चे को घर पर ही ज्ञानप्रद बातें सिखाते रहते थे । जब ईश्वर चंद विद्यासागर जी की उम्र 9 वर्ष की हुई तब उनके पिता ने ईश्वर चंद्र विद्यासागर जी को शिक्षा दिलाने के लिए कोलकाता ले गए थे और वहां पर उन्होंने ईश्वर चंद विद्यासागर जी को संस्कृत का ज्ञान दिलाने के लिए भर्ती करा दिया था । वहीं से ईश्वर चंद्र विद्यासागर जी का जीवन शिक्षा की ओर बढ़ा ।

उन्होंने कोलकाता के संस्कृत कॉलेज से अपनी पढ़ाई पूरी की । उन्होंने 1841 ने कोलकाता के संस्कृत कॉलेज से डिग्री हासिल की थी । जिस समय वह संस्कृत की पढ़ाई कर रहे थे उस समय वह संस्कृत के सबसे विद्वान व्यक्ति के रूप में पहचाने जाने लगे थे । संस्कृत कॉलेज से  उनको  संस्कृत का प्रचंड ज्ञान प्राप्त हो गया था । वह कभी भी अपने आप को महान नहीं मानते थे । विद्यार्थी जीवन में वह संस्कृत कॉलेज में उनके साथ पढ़ने वाले निर्धन छात्रों की मदद किया करते थे । वहीं से उनके मन में परोपकार की भावना जागृत हुई थी ।

प्रारंभिक केरियर की शुरुआत – ईश्वर चंद्र विद्यासागर जीने जब कोलकाता के संस्कृत कॉलेज से अपनी पढ़ाई पूरी कर ली थी तब इसके बाद 1841 को ईश्वर चंद्र विद्यासागर जी को फोर्ट विलियम कॉलेज में ₹50 मासिक वेतन पर मुख्य पंडित पद पर रख लिया था । वहीं से उन्होंने अपने कैरियर की शुरुआत की थी । ईश्वर चंद्र विद्यासागर जी के बारे में ऐसा कहा जाता है की इसी कॉलेज में उनके व्यवहार और संस्कृत का महान ज्ञान को देखते हुए ईश्वर चंद्र विद्यासागर जी को दानवीर सागर की उपाधि दी थी ।

कॉलेज के सभी शिक्षक एवं छात्र ईश्वर चंद्र विद्यासागर जी का सम्मान करते थे , उनका आदर करते थे । ईश्वर चंद्र विद्यासागर जी जब इस कॉलेज में संस्कृत की शिक्षा देते थे तब ऐसे निर्धन परिवार के बच्चों की मदद किया करते थे जो अपनी निर्धनता के कारण पढ़ाई नहीं कर पा रहे थे , आगे नहीं बढ़ पा रहे थे । उन बच्चों की ईश्वर चंद्र विद्यासागर जी ने मदद की और उनको संस्कृत का ज्ञान दिया था । इसके बाद वह यहीं पर रुकने वाले नहीं थे उनको और भी आगे जाना था ।

उनके संस्कृत के प्रचंड ज्ञान को देखते हुए कॉलेज के उच्च पद पर विराजमान अधिकारियों ने ईश्वर चंद्र विद्यासागर जी का प्रमोशन करने का विचार बनाया था और 1846 में ईश्वर चंद्र विद्यासागर जी को उसी संस्कृत कॉलेज में सहकारी संपादक नियुक्त किया गया था । कई समय तक ईश्वर चंद्र विद्यासागर जी ने कॉलेज के विद्यार्थियों को संस्कृत का ज्ञान दिया था , निर्धन बच्चों को आगे बढ़ाया था । परंतु कुछ लोगों ने उन से मतभेद करना प्रारंभ कर दिया था जिसके कारण ईश्वर चंद्र विद्यासागर जी को बड़ा दुख हुआ और उन्होंने इस मतभेद के कारण वहां से त्यागपत्र दे दिया था ।

इसके बाद 1851 में संस्कृत कॉलेज के मुख्य अध्यक्ष के रूप में उनको चुना गया था । परंतु यहां से इन्होंने त्यागपत्र दे दिया था । इसके बाद ईश्वर चंद्र विद्यासागर जी को 1855 में असिस्टेंट स्पेक्टर की नौकरी प्राप्त हुई थी और इस नौकरी में उनका अच्छा प्रदर्शन देखते हुए बहुत जल्दी उनका प्रमोशन किया गया था । इनका प्रमोशन करके इनको स्पेशल इस्पेक्टर बना दिया गया था । प्रमोशन के बाद इनका मासिक वेतन ₹500 कर दिया गया था लेकिन यहां पर भी उनके साथ कुछ लोगों ने मतभेद करना प्रारंभ कर दिया था ।

जिसके कारण इनको बढ़ा दुख हुआ और उन्होंने इस नौकरी से भी त्यागपत्र दे दिया था । इसके बाद ईश्वरचंद विद्यासागर जी ने समाज सेवा करने का विचार बनाया और वह निर्धन छात्र और महिलाओं को उनके दुखों से बाहर निकालने का काम करने लगे थे । वह अपने कदम समाज सेवा की ओर बढ़ा चुके थे । उन्होंने यह विचार बनाया था कि वह अपने ज्ञान को कभी भी अंधकार में भटकने नहीं देंगे । वह अपने ज्ञान के माध्यम से लोगों की सहायता करने लगे और कई लोगों को फ्री में संस्कृत का ज्ञान देकर उनकी मदद किया करते थे ।

कई ऐसी कुरीतियों को वह खत्म करना चाहते थे जिसके कारण समाज में अंधकार फैल रहा था । जब ईश्वर चंद्र विद्यासागर जी असहाय छात्र , निर्धन व्यक्ति और विधवा महिलाओं की मदद किया करते थे तब उनको बहुत आनंद आता था । वह धीरे-धीरे समाज सेवा में आगे बढ़ने लगे और उनके इस परोपकार को सभी जानने लगे थे । आज उनके इस परोपकार को कोई भी नहीं भुला सकता है । वह संस्कृत के प्रचंड ज्ञानी थे । उन्होंने संस्कृत का प्रचार प्रसार करने में कोई भी कमी नहीं रखी थी ।

वह यह जानते थे कि यदि संस्कृत का ज्ञान मैं सभी लोगों को दे पाया तो मेरा जीवन धन्य हो जाएगा , मैं अपने माध्यम से समाज में फैली हुई कुरीतियों को खत्म कर दूंगा । ऐसे विचार अपने मन में लेकर समाज को सही दिशा दिखाने के लिए ईश्वर चंद्र विद्यासागर जी चल पड़े थे । उनके रास्तों में कई रुकावटें , कई परेशानियां आई थी परंतु उन्होंने अपना दृढ़ निश्चय कर लिया था और वह हर कठिनाइयों से लड़ने के लिए तैयार हो गए थे । उन्होंने हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त की है ।

वह समाज सेवा के माध्यम से लोगों को रास्ता दिखा रहे थे । समाज के लोगों ने उनके इस कार्य को देखकर ईश्वर चंद्र विद्यासागर जी को दानवीर सागर कहकर संबोधित किया था । सभी उनको दानवीर सागर कहने लगे थे । क्योंकि वह निर्धन छात्रों को अपनी सहायता से मदद किया करते थे । साहित्य और समाज सेवा में उन्होंने अपना जीवन न्योछावर कर दिया था । वह निरंतर समाज में फैली कुरीतियों को खत्म करना चाहते थे ।

ऐसे महान व्यक्ति की जितनी प्रशंसा की जाए उतनी कम है क्योंकि धरती पर हजारों करोड़ों लोगों में एक दो लोग ही होते हैं जो महान व्यक्तियों की श्रेणी में आते हैं । उन महान व्यक्तियों में ईश्वर चंद्र विद्यासागर जी भी आते हैं जिन्होंने महान कार्य किए हैं । महान व्यक्ति वह होता है जो दूसरों के जीवन में खुशी लाने की कोशिश करें और ईश्वर चंद्र विद्यासागर जी ने अपने द्वारा कई सारे लोगों का जीवन सुधारा है ।

ईश्वर चंद्र विद्यासागर जी द्वारा किए गए महान कार्य – ईश्वर चंद्र विद्यासागर जी के द्वारा कई महान कार्य किए गए हैं ।वह बालिका शिक्षा के समर्थक थे । उन्होंने कई ऐसे कार्य  किए हैं जिसके माध्यम से समाज को नई दिशा मिली है । उन्होंने शिक्षा प्राप्त करने के बाद कई बालिका विद्यालय की स्थापना की है । ईश्वर चंद विद्यासागर जी विधवा पुनर्विवाह के समर्थक थे और उन्होंने विधवा पुनर्विवाह के लिए संघर्ष किया है । वह दानवीर भी थे । उन्होंने कई छात्रों को अपने माध्यम से विकास की ओर बढ़ाया है ।

समाज सुधारक के रूप में भी उन्होंने अपनी भूमिका निभाई है । साहित्य के क्षेत्र में उनके योगदान को कभी भी भुलाया नहीं जा सकता है । उन्होंने एक अच्छे लेखक के रूप में भी अपना योगदान दिया है । उन्होंने संस्कृत भाषा के साथ-साथ बंगला भाषा के प्रचार प्रसार को भी आगे बढ़ाया था । वह निरंतर लोगों की भलाई के लिए कार्य करते रहते थे ।

ईश्वर चंद विद्यासागर जी के द्वारा निर्धन छात्रों की मदद – वह एक निर्धन परिवार से ताल्लुक रखते थे । वह जानते थे की निर्धनता क्या होती है । वह अपने जीवन में बहुत कठिनाइयां झेल चुके थे । इसलिए उन्होंने पढ़ाई करने के बाद निर्धन छात्रों की मदद करना प्रारंभ किया था । वह ऐसे छात्रों को निरंतर आगे बढ़ाते रहते थे जो अपनी गरीबी के कारण आगे नहीं बढ़ पा रहे थे । वह रात के समय निर्धन छात्रों को अलग से पढ़ाते थे और उनको संस्कृत का ज्ञान देते थे ।

इसीलिए कई निर्धन छात्र उनका सम्मान करते थे क्योंकि ऐसा काम सिर्फ एक महान व्यक्ति ही कर सकता है । जो दूसरों की सेवा करने में विश्वास रखता हो वह सबसे बड़ा महान व्यक्ति होता हैं । इसीलिए इस महान व्यक्ति को , ईश्वर चंद्र विद्यासागर जी को महान व्यक्ति कहा गया है क्योंकि उन्होंने महान कार्य किए हैं । यह काम कोई  साधारण इंसान नहीं कर सकता है । उन्हीं ने समाज को सही दिशा दिखाई है । इसलिए सभी लोग उनका मान सम्मान करते थे ।

ईश्वर चंद विद्यासागर जी ने शिक्षा प्रणाली में कई बदलाव किए थे क्योंकि निर्धन छात्रों के साथ अन्याय हो रहा था । उन्हीं ने छात्रवृत्ति जैसी योजनाओं का शिलान्यास किया जिससे कि निर्धन छात्र आगे बढ़ सके और शिक्षा प्राप्त कर सकें ।

नारी शिक्षा समर्थक के रूप में ईश्वर चंद्र विद्यासागर जी का योगदान – ईश्वर चंद्र विद्यासागर जी नारी शिक्षा के समर्थक थे । उन्होंने जब संस्कृत कॉलेज में एक पंडित की उपाधि प्राप्त की थी तब से ही वह नारी शिक्षा पर जोर दे रहे थे । उन्होंने यह निश्चय किया था कि वह देश में नारी शिक्षा को पूर्ण रूप से आगे बढ़ाने का काम करेंगे । उन्होंने नारी शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए कोलकाता में बालिका विद्यालय की स्थापना की और वहां पर बालिकाओं को पढ़ने का आग्रह किया । बालिका विद्यालय में ईश्वर चंद्र विद्यासागर जी के द्वारा शिक्षा दी जाती थी ।

कोलकाता ही नहीं उन्होंने अन्य क्षेत्रों में भी बालिका विद्यालय खुलबाए थे । जहां पर नारी शिक्षा को बढ़ावा दिया जा रहा था । वह जानते थे कि यह हमारे देश में सबसे बड़ी कुरीतियों में से  एक हैं । हर नारी को शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार मिलना चाहिए । जब देश में , समाज में नारी और पुरुष को एक दृष्टि से देखा जाएगा तब देश ऊंचाइयों पर पहुंचेगा । उन्होंने नारी शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए श्री मैथ्यून की सहायता लेकर गर्ल्स स्कूल की स्थापना की थी और उस गर्ल्स स्कूल का नाम मेट्रोपोलिस कॉलेज रखा था ।

जहां से कन्याओं को शिक्षा दी जाती थी और काफी छात्राओं ने वहां से शिक्षा प्राप्त करके अपना जीवन ऊंचाई तक पहुंचाया है ।

ईश्वर चंद्र विद्यासागर जी का विधवा पुनर्विवाह का समर्थन – ईश्वर चंद्र विद्यासागर जी कम उम्र में विधवा हो जाने वाली महिलाओं पर हो रहे अत्याचार को सबसे बड़ा पाप मानते थे । उनका कहना था कि जो नारी कम उम्र में विधवा हो जाती है उसको इतने दंड दिए जाते हैं जैसे कि उसने कोई पाप किया हो । ईश्वर चंद्र विद्यासागर जी समाज को सही रास्ता दिखाना चाहते थे । इसलिए उन्होंने  विधवा पुनर्विवाह का समर्थन किया था । विधवा पुनर्विवाह का प्रचार-प्रसार ईश्वर चंद्र विद्यासागर जी के द्वारा किया गया था ।

लंबे संघर्ष के बाद वह समाज में फैली विधवा औरतों को अपमानित करने की बुरी नीति को खत्म करने में कामयाब हुए थे । इसके लिए उन्होंने अपने पुत्र का विवाह भी एक विधवा लड़की से कराया था । वह  चाहते थे कि विधवा स्त्री भी अपने जीवन को स्वतंत्रता के साथ व्यतीत करें  क्योंकि विधवा स्त्री को भी  अपना जीवन स्वतंत्रता से जीने का हक होता है । विधवा लड़की से हम या समाज उसका जीवन नहीं छीन सकते हैं ।

यदि किसी लड़की का पति मर जाता है तो उसको अपना जीवन जीने का अधिकार होता है । विधवा पुनर्विवाह के रोकने का अधिकार किसी को नहीं है । उन्होंने जब समाज से इतनी बड़ी और बुरी रीति को खत्म करने के लिये अपने कदम  सही रास्ते पर चलाएं तब उनका साथ कई लोगों ने दिया था । उन्होंने 1856 में अपने अथक प्रयासो से तकरीबन 25 विधवा स्त्रियों का पुनर्विवाह करवा चुके थे । उनके द्वारा पुनर्विवाह को समाज के बीच में लाया गया था ।

ईश्वर चंद्र विद्यासागर जी ने अपने अथक प्रयासों से 1856 को विधवा पुनर्विवाह कानून पारित करवाया गया था । यह उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि थी । उन्होंने समाज को विधवा पुनर्विवाह के बारे में समझाया और समाज के लोगों को भी विधवा महिलाओं को आगे बढ़ाने का आग्रह किया था । उनके इन महान कार्य के लिए ईश्वर चंद्र विद्यासागर जी को कट्टरपंथियों का सामना करना पड़ा था । परंतु वह धर्म के मार्ग पर चल पड़े थे , समाज सेवा करने के लिए निकल पड़े थे ।

उन्होंने अपने कदम कभी भी नहीं रोके । विधवा पुनर्विवाह को उन्होंने शास्त्रों से प्रमाण करके विधवा विवाह को  वैध साबित किया था  और शास्त्रीय प्रमाण से वह समाज  को यह समझाने में सफल हुए थे की विधवा पुनर्विवाह विधवा स्त्री  के लिए  सही है ।  इस तरह से विधवा पुनर्विवाह समाज में प्रारंभ किया गया था । जिससे कई महिलाओं को आगे बढ़ने के रास्ते मिले थे ।

ईश्वर चंद्र विद्यासागर जी का साहित्य के क्षेत्र में योगदान – ईश्वर चंद्र विद्यासागर जी एक महान व्यक्ति थे । ईश्वर चंद्र विद्यासागर जी ने साहित्य के क्षेत्र में भी अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है । ईश्वर चंद्र विद्यासागर जी ने तकरीबन 52 पुस्तकों की रचना की है । जिसमें पांच पुस्तकें अंग्रेजी भाषा में लिखी हैं । ईश्वर चंद्र विद्यासागर जी ने 17 पुस्तकें संस्कृत भाषा में लिखी हैं । ईश्वर चंद्र विद्यासागर जी ने शेष पुस्तकें  बंगला भाषा में लिखी हैं । ईश्वर चंद्र विद्यासागर जी के साहित्य के इस कार्य को हम कभी भुला नहीं सकते हैं ।

ईश्वर चंद्र विद्यासागर जी की जितनी प्रशंसा की जाए उतनी कम है । साहित्य के क्षेत्र में एवं समाज सेवा करने में उनके योगदान को कभी भी नहीं भुलाया नहीं जा सकता है । ईश्वर चंद्र विद्यासागर जी को इस महान कार्य के लिए 1880 को  सी आई ई का सम्मान दिया गया था ।

ईश्वर चंद्र विद्यासागर जी के द्वारा बांग्ला भाषा के गद्य को सरल बनाने में योगदान – ईश्वर चंद्र विद्यासागर जी ने अपने अथक प्रयासों से संस्कृत भाषा का प्रचार प्रसार तो किया ही था इसके साथ वह बंगला भाषा के प्रचार-प्रसार में भी आगे बढ़े थे । ईश्वर चंद्र विद्यासागर जी ने बांग्ला भाषा के प्रचार के लिए कई स्कूल खुले थे और उस स्कूल में ईश्वर चंद्र विद्यासागर जी ने बांग्ला भाषा के गद्दे को आधुनिक एवं सरल बनाकर छात्रों को बंगला भाषा का ज्ञान दिया था । ईश्वर चंद्र विद्यासागर जी को इस सर्वश्रेष्ठ काम के लिए 2004 के सर्वेक्षण में उन्हें सर्वश्रेष्ठ बंगाली माना गया है क्योंकि उन्होंने बांग्ला भाषा को एक सरल भाषा के रूप में प्रस्तुत किया था ।

ईश्वर चंद्र विद्यासागर जी के द्वारा लिखी गई पुस्तक – ईश्वर चंद्र विद्यासागर जी के द्वारा कई पुस्तके लिखी गई हैं । ईश्वर चंद्र विद्यासागर जी एक साधारण व्यक्ति के रूप में अपना जीवन व्यतीत करते थे । वह साधारण सूती वस्त्र पहनते थे । उनमें किसी तरह का कोई भी घमंड नहीं था ।वह समाज हित के लिए कई कार्य करते रहे और उन्होंने साहित्य के माध्यम से समाज को बदलने की कोशिश की थी ।  कई पुस्तक ईश्वर चंद्र विद्यासागर जी के द्वारा लिखी गई थी । उन पुस्तकों के नाम इस प्रकार से हैं वैतालपंचविंशति , सीता बनवास , शकुंतला , महाभारत और भी कई पुस्तके उनके द्वारा लिखी गई है जिससे समाज को ज्ञान प्राप्त हुआ था ।

ईश्वर चंद्र विद्यासागर जी का निधन – ईश्वर चंद विद्यासागर जी का निधन 29 जुलाई 1891 को हो गया था ।

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