भिखारी की आत्मकथा निबंध Bhikari ki atmakatha in hindi
Autobiography of beggar in hindi
दोस्तो कैसे हैं आप सभी,दोस्तों आज का हमारा आर्टिकल एक भिखारी की आत्मकथा पर निबंध आप सभी के लिए बहुत ही हेल्पफुल होगा हमारे आज के इस निबंध से आप एक भिखारी के बारे में जानेंगे. भिखारी जो मंदिर के बाहर,सड़क के किनारे हम सभी को दिखते हैं वह भीख मांगकर अपने जीवन को चलाते हैं चलिए पढ़ते हैं भिखारी की आत्मकथा पर लिखे हमारे आज के निबंध को
एक दिन की बात है मैं सुबह-सुबह नहा धोकर मंदिर जा रहा था मैं जैसे ही जूते चप्पल उतारकर मंदिर की ओर अंदर प्रवेश कर रहा था तभी मुझे एक भिखारी दिखाई दिया उसकी हालत वास्तव में दयनीय थी उसका एक पैर और एक हाथ टूटा हुआ था बेचारा जीवन से निराश लग रहा था वह आते जाते लोगों से भीख मांग रहा था.
सबसे पहले मैं मंदिर के अंदर गया मैंने भगवान के दर्शन किए और उसके बाद मैं मंदिर के बाहर आया तो उस भिखारी ने मुझे बुला लिया मुझे बेचारे उस बेकारी पर दया आयी मैंने उन्हें अपने जेब में रखे कुछ पैसे दे दिए और प्रसाद भी दिया मैंने उस भिखारी से पूछा की आपकी इतनी बुरी दशा कैसे हुई क्या आप मुझे इसके बारे में बताएंगे तभी बेचारा भिखारी निराश हो गया वह अपने बारे में मुझे बताने लगा भिखारी ने अपने पूरे जीवन की बात मुझे कुछ इस प्रकार बताई
साहब मैं अपने गांव का एक सीधा-साधा नौजवान था मां-बाप ने पास के गांव से मेरी शादी कर दी थी मैं अपने जीवन में खुश था लेकिन समय के साथ मेरे माता पिता का देहांत हो गया मैं पढ़ा लिखा नहीं था इसलिए मेरे भाइयों ने मेरी जमीन पर कब्जा कर लिया मेरे पास रहने को जगह नहीं थी इसलिए मैं शहर में आ गया. शहर में मैंने एक किराए का कमरा ले लिया वहां पर मैं अपनी बीवी और दो बच्चों के साथ रहता था मेने बहुत काम तलाशा लेकिन मुझे काम नहीं मिल रहा था मैं बहुत परेशान था.
एक दिन मैं एक होटल में काम मांगने के लिए गया लेकिन किसी ने मुझे काम नहीं दिया तभी मैंने सोचा कि चलो अपने बीवी बच्चों के 2 वक्त का खर्चा चलाने के लिए मैं बर्तन मांजने का ही काम करने लगू लेकिन उस होटल में वह जगह भी खाली नहीं थी अब मैंने मजदूरी करना शुरु कर दिया मैं चौराहे पर सुबह से खड़ा हो जाता मेरे साथ में बहुत सारे लोग खड़े होते थे मैं मजदूरी करने उन लोगों के साथ चला जाता में किसी किसी के घर बनाने में मदद करता था. मैं बजरी और बड़े-बड़े पत्थर ढोने का काम करता था मेरा बस यही जीवन था मैं रोज के 100 रुपये कमा लेता था यह इस जमाने में बहुत ही कम था लेकिन हमारी जीविका चल रही थी मैं किराए के पैसे भी समय पर दे पाता था.
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मैं अपने इस जीवन से खुश था एक दिन मैं अपने दोनों बच्चों और अपनी बीवी के साथ बाजार घूमने जा रहा था हम रोड के एक साइड पैदल चलते हुए जा रहे थे मैंने अपने एक बच्चे को गोद में लिए हुए था और दूसरे बच्चे को मेरी बीवी गोद में लेकर जा रही थी हम रास्ते में बातचीत भी कर रहे थे हमारे पास भले ही बहुत सी समस्याएं हैं लेकिन हम अभी तक के अपने जीवन से संतुष्ट थे तभी पीछे से एक तेजी से कार चलती हुई आई और वह मुझमें और मेरे बीवी बच्चों में जोर से टक्कर दे मारी.
मेरे दोनों बच्चे वहीं के वहीं मर चुके थे क्योंकि एक्सीडेंट बहुत ही खतरनाक था एक्सीडेंट में मेरा एक हाथ और पैर टूट गया और मेरी बीवी के ऊपर वह कार चढ़ चुकी थी लेकिन अभी भी उसकी थोड़ी बहुत सांसे चल रही थी आसपास के कुछ लोग आए और हमें एंबुलेंस में लेकर अस्पताल में ले गए मेरे बच्चों की तो पहले ही मृत्यु हो गई थी लगभग आधे घंटे बाद हॉस्पिटल में मेरी बीवी की भी मृत्यु हो गई और मैं इस दुनिया में अकेला रह गया मेरे मां बाप तो पहले ही खत्म हो चुके थे और मेरे भाई मुझसे एकदम विमुख थे उनसे तो अच्छा दुश्मन होता है वह मेरी किसी भी तरह से मदद ना करते.
अब मैंने किराए का कमरा भी खाली कर दिया क्योंकि मेरे पास पैसे नही थे में एक-दो दिन तक भूखा रहा लेकिन किसी ने मेरी मदद नही की.मैं अपने जीवन से बहुत दुख था तभी मैंने आत्महत्या करने तक का सोच लिया था लेकिन मेने सोचा कि आत्महत्या करना तो पाप होता है क्यों ना किसी तरह से अपने जीवन को चलाया जाए मेरे पास कोई ऐसा काम था नहीं जो मैं बिना हाथ-पैर के कर सकूं आखिर में मैंने भीख मांगना ही उचित समझा तब से मैं बाजार के चौराहे पर बैठकर भीख मांगता हूं तो कभी बहुत सारे शहर के मंदिरों के द्वारे पर बैठकर भीख मांगता हूं.साहब आप पहले ही एक ऐसे शख्स हो जिसने मुझ जैसे भिखारी की कहानी सुनी है.
भिखारी की ये कहानी सुनकर मुझे बहुत ही दुख हुआ. बेचारा भिखारी इस तरह की अपनी आत्मकथा सुनाकर जोर जोर से रोने लगा उसको उसके बीवी बच्चों की याद आ गई.मुझे भी बहुत दुख हुआ मेरी आंखों में आंसू थे कि एक इंसान को किस तरह की जिंदगी गुजारना पड़ती है लेकिन मैं कर भी क्या सकता था मैंने उस भिखारी को उसी स्थान पर रुकने के लिए कहा मैं अपने घर गया और घर से कुछ अच्छे कपड़े और कुछ पैसे लेकर उस भिखारी के पास आया और मैंने पैसे और कुछ अच्छे कपड़े बेचारे उस भिखारी को दे दिए.
मुझे वाकई में बहुत ही अच्छा लगा.मुझे खुशी हुई कि मैं बेचारे उस भिखारी की मदद कर पाया और फिर मैं वहां से अपने घर चला आया.
वास्तव में कुछ लोगों का जीवन कैसा होता है परिस्थिति ही उन्हें कुछ भी बनने पर मजबूर कर देती है हमें ऐसे लोगों का सम्मान करना चाहिए और भगवान का ही एक रूप समझकर हमें उनकी मदद करने के लिए तत्पर रहना चाहिए क्योंकि हर एक इंसान में भगवान का वास होता है.
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