सुदामा को गरीबी क्यों मिली

दोस्तों एक ब्राह्मणी थी जो बेहद गरीब थी वह इधर उधर से भिक्षा मांगकर अपनी जिंदगी चलाती थी.एक दिन की बात है कि किसी ने भिक्षा के रूप में उसे एक चने की पोटली दे दी.चने की पोटली को गरीब ब्राह्मणी लेकर अपने घर आ गई और अपने घर के एक कोने में चने की पोटली को रख दिया.

वह सोचने लगी कि सुबह मैं ईश्वर को भोग लगाकर चने को खाऊंगी फिर वह सो गई लेकिन रात में चोर आए.वह चोर उस गरीब ब्राह्मनी के घर में प्रवेश कर गए उन्होंने चारों ओर देखा उस गरीब ब्राह्मणी के घर में कुछ भी नहीं रखा था लेकिन एक कोने में रखी चने की पोटली उन्हें दिखी उन्होंने सोचा जरूर ही इसमें कुछ कीमती चीजें होंगी.वह चनों से भरी पोटली को अपने साथ ले जाने लगे तभी उस गरीब ब्राह्मणी कि नींद खुली और वह जोर-जोर से चिल्लाने लगी लेकिन चोर वहां से भागने में कामयाब हो गए.उस गरीब ब्राह्मनी ने श्राप दिया कि जो भी मेरी इन चनो की पोटली को खाएगा वह दरिद्र हो जाएगा.

इधर कुछ लोग चोरों के पीछे भी पडे और चोर दौड़ते-दौड़ते संदीपन ऋषि के आश्रम में जा पहुंचे जहां पर भगवान श्री कृष्ण और सुदामा शिक्षा ग्रहण करते थे.जब गुरु माता को किसी के आने की आवाज आई तो वह वहार आयी और चोर गुरु माता के पैरों की आवाज सुनकर जल्दी-जल्दी में चनो की पोटली को वही संदीपन ऋषि के आश्रम में छोड़ गए.गुरु माता ने जब चने की पोटली देखी तो श्री कृष्ण और सुदामा के जंगल में जाते समय वह पोटली उन्होंने सुदामा को दे दी और कहा कि तुम और कृष्ण दोनों मिलकर इन चनों को खा लेना.

जब वे दोनों जंगल में गए तो दोपहर के समय उन्हें भूख लगी तो सुदामा जी ने वह चने की पोटली खोली लेकिन सुदामा ने अपने ब्रह्म ज्ञान से ही पता लगा लिया था कि उस गरीब ब्राह्मनी ने श्राप दिया है कि जो भी इन चनो को खाएगा वह दरिद्र हो जाएगा.सुदामा ने सोचा कि यदि मैं श्रीकृष्ण को खिलाता हूं तो वह और पूरा संसार दरिद्र हो जाएगा जिस वजह से सुदामा जी ने वह चने खुद ही खा लिए.
इसी वजह से सुदामा दरिद्र होगा हो गए.

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