कृष्ण और सुदामा की मित्रता की कहानी Sudama charitra story in hindi
Sudama charitra story in hindi
Sudama charitra story in hindi-सुदामा जी अपनी पत्नी और बच्चों के साथ रहा करते थे वह दरिद्र हो चुके थे उनके पास ना हीं खाने के लिए अन्न था और ना हीं पहनने के लिए कपड़े थे वो बेहद गरीब थे एक दिन उनकी पत्नी ने उनसे कहा कि क्यों ना आप अपने पुराने मित्र श्रीकृष्ण के पास जाएं जो कि द्वारिका के राजा हैं हो सकता है वह आपको कुछ दान में दे दें और हमारे परिवार की स्थिति में कुछ सुधार हो सके.

अपनी पत्नी की इस तरह की बातें सुनकर सुदामा जी अपने गांव से द्वारिका की ओर चल पड़े जैसे ही वह द्वारका में पहुंचे तो द्वारपालों ने उन्हें अंदर नहीं जाने दिया तब सुदामा ने कहा कि मैं श्रीकृष्ण का मित्र हू ऐसा सुनकर द्वारपालों को बहुत ही अजीब लगा वह श्री कृष्ण के पास अंदर गए और श्रीकृष्ण से कहने लगे कि महाराज एक बहुत ही गरीब आदमी जिसके ना पैरों में चप्पल है ना ही कुर्ता है और ना ही पगड़ी है वह आपका मित्र बताता है और अपना नाम सुदामा बताता है
ऐसा सुनकर श्री कृष्ण नंगे पैर ही अपने राजमहल से अपने मित्र सुदामा से मिलने के लिए दौड़ पड़े जब उन्होंने अपने मित्र को देखा तो वह उनके गले लग गए और अपने राजमहल में लेकर आए राजमहल में उन्होंने देखा कि उनके मित्र के पैरों पर कांटे चुभे हुए थे उन्होंने उनके पैर धोने के लिए एक थाल मंगवाया लेकिन उसकी जरूरत ना पडी श्रीकृष्ण ने अपने आंसुओं से ही सुदामा के पेर धो दिए.जब श्री कृष्ण ने सुदामा के पास में रखी पोटली देखी तो उन्होंने सुदामा से कहा कि भाभी ने कुछ खाने को भेजा है तुम सुदामा मुझसे यह क्यों छुपा रहे हो और उन्होंने वह पुटली ले ली और उसमे रखे चावलों को खाने लगे और बोले कि तुमने गुरु माता की दी हुई खाने की चीजों को बचपन में अकेले खा लिया था
लेकिन अब मैं अपनी भाभी के दिए हुए चावलों को अकेले नहीं खाने दूंगा और इसके बाद श्रीकृष्ण ने उन्हें खाना खिलाया और फिर श्री कृष्ण ने सुदामा को विदा किया जब सुदामा द्वारका से निकले तो श्रीकृष्ण ने उन्हें कुछ भी नहीं दिया यह सब सोचकर सुदामा अपने आपमें बहुत ही अचंभित महसूस कर रहे थे उन्होंने सोचा कि कृष्ण मेरे बचपन का दोस्त है फिर भी मुझे उसने कुछ भी भेंट के रूप में नहीं दिया है लेकिन उनको नहीं पता था कि श्री कृष्ण ने उन्हें बिना मांगे ही सब कुछ दे दिया है.
जैसे ही सुदामा अपने गांव पहुंचे तो उन्होंने देखा कि चारों ओर महल बने हुए हैं और उसका नजारा द्वारका की तरह बहुत ही शानदार लग रहा है उन्होंने उन्हें चारों ओर देखा तो उन्हें उनकी झोंपड़ी नजर नहीं आई जब उनको बाद में पता लगा कि यह उनका ही गांव है तो उन्हें बहुत ही खुशी हुई और श्री कृष्ण को इसके लिए धन्यवाद दिया.श्री कृष्ण ने सुदामा को बिना मांगे ही सब कुछ दे दिया था.
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