फटी पुस्तक की आत्मकथा पर कविता Fati pustak ki atmakatha kavita
Fati pustak ki atmakatha kavita
दोस्तों नमस्कार, कैसे हैं आप सभी दोस्तों आज हम आपके लिए लाए हैं फटी पुस्तक की आत्मकथा पर मेरे द्वारा लिखित यह कविता। इस कविता को आप जरूर पढ़ें तो चलिए पढ़ते हैं आज की हमारी इस कविता को
दोस्तों पुस्तके वास्तव में हमको जीवन जीना सिखाती हैं और ऐसा ज्ञान हमको देती हैं जिस ज्ञान को पाकर हम देश दुनिया में बड़ी पहचान बना पाते हैं और बहुत कुछ ऐसा कर सकते हैं जैसे हम सपने देखते है। इस फटी पुस्तक की आत्मकथा पर कविता आपको काफी भावुक कर देगी तो चलिए आज की हमारी इस कविता को पढ़ते हैं
मैं फटी पुस्तक हूं फिर भी खुश हूं
बीते दिनों की याद कर मैं खुश हूं
मैंने अपने जीवन में बहुत से लोगों को देखा
अपने किताब के पन्नों को बदलते मैंने देखा
जिंदगी बदलते देखी
हंसते मुस्कुराते लोगों को देखी
मैंने जीवन में बहुत कुछ देखा
चारों और खुशी और दुख को देखा
मेरी किताब के पन्नों का रंग बदला
समय के साथ जीवन में बहुत कुछ बदला
जीवन में बहुत कुछ सीखा और सिखाया मैंने
मुझे पढ़कर हंसते मुस्कुराते देखा मैंने
घर के एक कोने में पड़ी हूं मैं
आखरी दिनों को गिन रही हूं मैं
पुस्तक हूं मैं जीवन को बहुत कुछ सिखाने वाली हूं मैं
ना घूमती ना घुमाती फिर भी बहुत कुछ सिखाती हूँ मै
दोस्तों मेरे द्वारा लिखित पुस्तक पर कविता Fati pustak ki atmakatha kavita आपको कैसी लगी हमें जरूर बताएं और हमारे इस आर्टिकल को ज्यादा से ज्यादा शेयर करें और हमें सब्सक्राइब करें धन्यवाद।