दया धर्म का मूल है निबंध daya dharam ka mool hai essay in hindi

daya dharam ka mool hai essay in hindi

दया धर्म का मूल है यह बात सत्य है क्योंकि जिस व्यक्ति के अंदर दया की भावना नहीं होती वह धार्मिक व्यक्ति नहीं कहलाता है । यह ईश्वर के द्वारा दिया गया सबसे बड़ा आशीर्वाद हैं अगर हम किसी व्यक्ति पर दया नहीं कर सकते है तो फिर पूजा पाठ करने से भी कोई मतलब नहीं है । यदि हम मंदिरों में जा कर पूजा पाठ करते हैं और कई तरह का दिखावा करते हैं तथा किसी के ऊपर दया भाव की भावना नहीं रखते तो मंदिरों में जाने से कोई भी फायदा नहीं है ।

यह सब करके हम लोगों को यह बताना चाहते हैं कि हम एक धार्मिक व्यक्ति हैं ,हम धर्म का पालन करते हैं किंतु हमारे अंदर दया की भावना ही नहीं है तो यह सब बेकार है । भगवान भी हम सब पर दया भाव रखते हैं । लेकिन हम इंसान क्या करते हैं हमें तो हमारी जिंदगी प्यारी है हमें दूसरों से कोई मतलब ही नहीं रहता हैं , हमारे अंदर दया की भावना नहीं है फिर हम भगवान को याद करते हैं , कई तरह का दिखावा करते हैं क्या भगवान हमको माफ कर देगा ? नहीं करेगा क्योंकि जब हम भगवान के बनाए गए रास्ते पर ही नहीं चल रहे हैं तो भगवान हमारी आत्मा को कभी माफ नहीं करेगा ।

मैं तो यही कहूंगा कि हमें हमारे नीचे के ओदे के व्यक्ति के साथ दया की भावना रखना चाहिए । हम सभी को किसी भी प्रकार का कोई घमंड नहीं होना चाहिए क्योंकि जिस व्यक्ति को घमंड होता है वह कभी ना कभी बर्बाद जरूर होता है । हम जानते हैं कि रावण को बर्बाद करने में उसका घमंड था । जब घमंड से रावण बर्बाद हो सकता है तो हम आम इंसान की औकात ही क्या है।

दया भाव से हम ईश्वर को प्राप्त कर सकते हैं । दया भाव से हम अपनी आत्मा को पवित्र कर सकते हैं । जब हमारे अंदर दया भाव की भावना होती है तो आसपास के लोग हमें मान सम्मान देते हैं । दया भाव भगवान के द्वारा दिया गया एक ऐसा गुण हैं जिसके माध्यम से हम ईश्वर को प्राप्त कर सकते हैं । कई लोग लाखों वर्षों तक तपस्या करते हैं और कई पर्वतों पर बैठकर भगवान से मिलने का इंतजार करते रहते हैं लेकिन उनके अंदर दया भावना नहीं है तो वो भगवान को भी प्राप्त नहीं हो पाएंगे ।

हम सभी को यह कोशिश करना चाहिए कि हम इंसानों पर दया करें, अपने आस-पड़ोस के लोगों पर भी दया भाव रखें ,जानवरों पर दया भाव रखें ,पेड़ पौधों पर दया भाव रखें, तब जाकर हमारी आत्मा पवित्र होगी। दया भाव रखने से हमारे अंदर का क्रोध खत्म होता है जब हमारे शरीर के अंदर से क्रोध खत्म होता है तब हम कई परेशानियों से बच जाते हैं क्योंकि जब कोई व्यक्ति क्रोध में होता है तो वह ना तो अपना भला सोच पाता है और ना ही दूसरे का इसलिए हम सभी को कोशिश करना चाहिए कि हम कभी भी क्रोध को ना पालें, अपने अंदर हमेशा दया भाव रखें और दूसरों पर दया भाव दिखाते रहे ।

मैंने ऐसे कई लोगों को देखा है जो दया भाव से कितने खुश होते हैं । मैंने एक बार एक व्यक्ति को देखा जो सड़क पर पड़ी गाय को इलाज कराने के लिए ले गया और वहां पर उस गाय का इलाज कराया और इलाज कराने के बाद उस गाय को कुछ खिलाने के लिए पैसे खर्च किए ऐसे व्यक्ति कि हम सभी प्रशंसा करते हैं। इसलिए हमें कोशिश करना चाहिए कि हमेशा दया की भावना रखें और अपने क्रोध को त्याग दें ।जब हम दया भाव की भावना रखेंगे तब हमें ईश्वर की प्राप्ति अवश्य होगी क्योंकि हम ईश्वर के द्वारा बनाए गए अच्छे रास्ते पर चल पड़े हैं । इससे भगवान भी खुश होगा और हमारी आत्मा की खुश होगी।

दोस्तों तुलसीदास ने भी एक दोहा के माध्यम से यह बताने की कोशिश की है कि हमें दया भाव रखना चाहिए दोहा।

“दया धर्म का मूल है, पाप मूल अभिमान। तुलसी दया न छोड़िए , जा घट तन में प्राण”

तुलसीदास जी के कहने का तात्पर्य यह है कि जिस व्यक्ति के अंदर दया भाव नहीं होता वह पाप करने की कगार पर होता है और वह लोगों से कह रहे हैं कि दया भाव जैसी भावना हम सभी को रखना चाहिए जिससे कि हम परमात्मा से मिल सके और हमारी आत्मा पवित्र हो सके ।

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