सूखी नदी की आत्मकथा Sukhi nadi ki atmakatha
Sukhi nadi ki atmakatha
दोस्तों आज हम आपके लिए लाए हैं सुखी नदी की आत्मकथा, आप इसे जरूर पढ़ें और जानें सूखी नदी की आत्मकथा के बारे में
में एक सूखी नदी हूं। पहले मुझमें भी काफी पानी था लेकिन गर्मियों की वजह से मैं आज सूखी हूं। मेरी व्यथा मैं ही जानती हूं जब मैं अपने पुराने दिनों को याद करती हूं तो मुझे काफी खुशी महसूस होती है। मैं सोचती हूं कि पहले कितना अच्छा था मेरे चारों ओर पानी ही पानी भरा हुआ था, पानी के चारों ओर हरे भरे वृक्ष, कई तरह के पक्षी, मछली आदि पानी में भ्रमण करते हुए काफी खुश रहते थे लेकिन मेरे सूख जाने के बाद मछलियों का भी अस्तित्व नष्ट हो गया और इसी के साथ में कई पशु-पक्षी भी अन्यत्र चले गए या नष्ट हो गए।
नदी एक अकेली नहीं होती, उसके साथ बहुत सारे जीव जंतु, पशु पक्षी जुड़े होते हैं। मेरे सूख जाने के बाद आज उन सभी को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है, कईयों का अस्तित्व भी नष्ट हो गया। अब मुझ सूखी नदी को बरसात के मौसम की याद सता रही है। मैं सोचती हूं की बरसात का मौसम जल्द से जल्द आए और फिर से मैं नदी हरी-भरी खिलखिलाती रहू और मुझमें चारों ओर पशु पक्षी, पेड़ पौधे, मछलियां खिलखिलाते रहें और अपने जीवन को जीते रहे।
मेरे सूखे होने का जिम्मेदार मनुष्य सबसे ज्यादा है। मनुष्य अपने लालच की वजह से पेड़ पौधों की कटाई कर रहा है जिससे बरसात ठीक तरह से नहीं हो पाती। मनुष्य पर्यावरण को भी कई तरह से प्रदूषित कर रहा है जिस वजह से मेरे जैसी कई सारी नदियां सूखती जा रही हैं।
अभी तो मुझमें थोड़ा बहुत पानी बचा हुआ ही है लेकिन कुछ सालों में हो सकता है मैं पूरी तरह से सूख जाऊं और मेरा अस्तित्व ही नष्ट हो जाए, इससे मेरा नुकसान तो होगा ही लेकिन इससे मनुष्य को भी काफी ज्यादा नुकसान होगा। मनुष्य को इस ओर ध्यान देना चाहिए कि उसकी वजह से हम नदियों को नुकसान ना पहुंचे। यदि आगे भी इसी तरह से नदियो की स्थिति रही तो मनुष्य का अस्तित्व खतरे में आ सकता है। बस मुझ सूखी नदी की आत्मकथा इतनी सी है। हो सकता है इस मेरी आत्मकथा से बहुत से लोगों को काफी प्रेरणा मिली हो।
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