चोरी और प्रायश्चित के संबंध में गांधी जी के विचार पर प्रकाश डालिए

चोरी और प्रायश्चित के संबंध में गांधी जी के विचार पर प्रकाश डालिए

दोस्तों नमस्कार आज हम आपके लिए लाए हैं चोरी और प्रायश्चित के संबंध में गांधीजी के जीवन की लिखी एक सच्ची घटना एवं इस घटना के आधार पर गांधीजी के विचार, तो चलिए पढ़ते हैं आज के हमारे इस आर्टिकल को।

महात्मा गांधी जी जब छोटे थे तब उन्हें अपने एक मित्र के साथ बीड़ी पीने की आदत लग गई थी दरअसल जब वह देखते थे कि उनके काका जी बीडी पीते हैं तो उन्हें देखकर उनकी भी आदत बीडी पीने की लग गई थी इसलिए वह अपने काका जी के द्वारा फेंके गए ठूंठ को चुराकर पीने लगे।

कुछ समय बाद उन्हें समझ में आया कि बीड़ी ही पी जाये तो इसके लिए उन्होंने अपने नौकर के जेब में से पैसे चुराए अब वह अपने मित्र के साथ बीडी पीने लगे लेकिन उनको समझ में नहीं आता था कि आंखें बीडी क्यों पी रहे हैं क्योंकि बीड़ी पीने में ना तो उन्हें आनंद महसूस होता था केवल उन्हें बीडी का धुआं उड़ाना अच्छा लगता था।

कुछ समय बाद गांधी जी को एहसास हुआ कि जो हम कर रहे हैं वह गलत कर रहे हैं इसलिए उन्होंने आत्महत्या करने का भी विचार किया और उन्होंने इसके लिए कोशिश भी की लेकिन आत्महत्या करते समय उन्हें डर लगा।

बीड़ी खरीदने के चक्कर में उनके सर पर कुछ कर्ज हो गया था जिस वजह से उन्होंने अपने बड़े भाई के सोने के कढ़े की चोरी भी की और फिर बाद में उन्होंने महसूस किया और यह निर्णय लिया कि अब वह कभी भी बीड़ी नहीं पिएंगे क्योंकि यह आदत बहुत ही बुरी और हानिकारक है।

लेकिन चोरी उन्होंने की थी जिसका भी पश्चाताप करना चाहते थे वह अंदर ही अंदर बुरा महसूस कर रहे थे इसलिए वह पश्चाताप के रूप में अपने पिताजी से यह बात कहना चाहते थे लेकिन अपने पिताजी से वो सीधे यह बात नहीं कह पा रहे थे उन्होंने एक पत्र के माध्यम से पिताजी को यह बात बताई जब उनके पिताजी ने वह पत्र पड़ा तो उनके पिताजी की आंखों में आंसू थे अब महात्मा गांधी को यह महसूस हुआ कि उन्होंने अपनी चोरी का सच्चा प्रायश्चित कर लिया है।

इस घटना से हमें कई सारी बातें सीखने को मिलती है और गांधीजी के विचार हमें जानने को मिलते।

गांधी जी एक ऐसे महापुरुष थे जिन्होंने अपने बचपन में चोरी की और उसका प्रायश्चित भी किया हर किसी को अपने गलत कर्मों का प्रायश्चित जरूर करना चाहिए।

हमें चाहिए कि यदि हम बुरी संगत में, कुछ बुरी आदतों में पड़ जाए तो हम उन बुरी आदतों को छोड़ने की कोशिश करें। हम यह समझे कि बुरी आदतों से हमें नुकसान भी हो सकता है और इनका उपयोग करने से कोई फायदा भी नहीं होता है।

हमें यह भी समझने की जरूरत है कि जीवन में मृत्यु को गले लगाने से कुछ नहीं हो पाता हमको अगर जीवन में कुछ करना है तो प्रायश्चित करना चाहिए जिससे हम जीवन को एक बेहतरीन ढंग से जीने के लिए फिर से तैयार हो सके।

गांधीजी के प्रसंग से हमें यह भी सीखने को मिलता है कि लोग गलत काम तो करते हैं लेकिन सच्चा प्रायश्चित करने की हिम्मत हर किसी में नहीं होती हमें गांधीजी की तरह अपने गलत कार्यों का सच्चा प्रायश्चित करना चाहिए।

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