भाईचारा पर कविता Hindi poem on bhaichara
भवानीप्रसाद मिश्र की भाईचारे पर कविता Hindi poem on bhaichara
दोस्तों भवानी प्रसाद मिश्र का जन्म 29 मार्च सन 1914 को मध्य प्रदेश के जिला होशंगाबाद के टिगरिया नामक गांव में हुआ था उन्होंने अपनी शुरुआती शिक्षा होशंगाबाद और जबलपुर में की और फिर उन्होंने b.a. की पढ़ाई ये हिंदी के प्रसिद्ध कवि थे.
उन्होंने बहुत सी कविताएं जैसे कि चकित है दुख, खुशबू के शिलालेख, कालजई, त्रिकाल संध्या,फसले और फूल आदि लिखी उन्होंने बच्चों के लिए भी कविताएं लिखी इनकी एक कविता भाईचारे पर भी लिखी गई है जो काफी प्रसिद्ध है.आज हम इनके द्वारा लिखित इसी कविता को पढ़ेंगे तो चलिए पढ़ते हैं भवानी प्रसाद मिश्र की भाईचारे पर लिखी इस कविता को
अक्कड़ मक्कड़,धुल में धक्कड़ दोनों मूरख,दोनों अक्खड़ हाट से लोटे ठाट से लोटे एक साथ एक बाट से लोटे
बात बात में बात ठग गई बाह उठी और मूछ तन गई इसने उसकी गर्दन भींची उसने इसकी दाडी खींची
अब वह जीता अब यह जीता दोनों का बन चला फजीता लोग तमाशाई जो ठहरे सबके खिले हुए थे चेहरे
मगर एक कोई था फक्कड़ मन का राजम कर्रा कक्कड़ बढ़ा भीड़ को चीर चार कर बोला ठहरो गला फाड़ कर
अक्कड़ मक्कड़ धुल में धक्कड़ दोनों मूरख दोनों अक्कड़ गर्जन गूंजी रुकना पड़ा सही बात पर झुकना पड़ा
उसने कहा सही वाणी में डुबो चुल्लू भर पानी में ताकत लड़ने में मत खोओं चलो भाई चारे को बोओं
खाली सब मैदान पड़ा है आफत का शैतान खड़ा है ताकत ऐसे ही मत खोओं चलो भाई चारे को बोओं
सूनी मूर्खो ने जब बानी दोनों जैसे पानी पानी लड़ना छोड़ा अलग हट गए लोग शर्म से गले छंट गए
सबको नाहक लड़ना अखरा ताकत भूल गई सब नखरा गले मिले तब अक्कड़ मक्कड़ ख़त्म हो गया धूल में धक्कड़
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