वैकुण्ठ चतुर्दशी पूजा विधि, व्रत कथा vaikuntha chaturdashi puja vidhi,vrat katha in hindi

vaikuntha chaturdashi puja vidhi,vrat katha in hindi

दोस्तों आज हम आपको इस आर्टिकल के माध्यम से वैकुण्ठ चतुर्दशी पूजा विधि , व्रत कथा के बारे में बताने जा रहे हैं . चलिए अब हम आगे बढ़ते हैं और इस आर्टिकल को ध्यान से पढ़कर वैकुण्ठ चतुर्दशी पूजा विधि , व्रत कथा के बारे में जानते हैं . वैकुण्ठ चतुर्दशी की पूजा बड़ी धूमधाम से की जाती है . यह पूजा कार्तिक शुक्ल पक्ष के दिन की जाती है .

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यह पूजा इसलिए की जाती है क्योंकि विष्णु भगवान 4 महीने की निंद्रा के बाद अपनी आंख खोलते हैं . यह पूजा वाराणसी एवं उज्जैन में बड़े धूमधाम से मनाई जाती है . इस दिन सभी व्रत करते हैं , भगवान शिव एवं विष्णु की पूजा करते हैं . इस दिन कमल के फूलों से भगवान शिव एवं विष्णु भगवान के मंदिरो  को सजाया जाता है , पालकी निकाली जाती हैं . ऐसा कहा जाता है कि वैकुण्ठ चतुर्दशी का  व्रत एवं पूजा की शुरुआत महाराष्ट्र के शिवाजी महाराज एवं उनकी मां जीजाबाई ने की थी .

आज भी यह व्रत एवं पूजा बड़े धूमधाम से मनाई जाती है . हिंदू धर्म के अनुसार ऐसा माना जाता है कि विष्णु भगवान के द्वारा ही मांगलिक कार्य होते है . विष्णु  भगवान 4 महीने के लिए शिव भक्ति में लीन होने के लिए चले जाते हैं और पूरा कार्यभार शिवजी संभालते हैं . जब विष्णु भगवान 4 महीने के बाद अपनी आंख खोलते हैं तब यह पर्व बड़े धूम-धाम से मनाया जाता है . वैकुण्ठ चतुर्दशी के दिन सभी व्रत करते हैं .

वैकुण्ठ चतुर्दशी के दिन भगवान शिव एवं विष्णु भगवान के मंदिर जाकर , कमल के फूल चढ़ाकर पूजा करते हैं एवं व्रत का संकल्प लेते हैं . महाराष्ट्र में एवं मध्य प्रदेश के उज्जैन में यह पर्व बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है . उज्जैन की नगरी में महाकाल की पालकी निकाली जाती है और वैकुण्ठ चतुर्दशी की पूजा बड़े धूमधाम से की जाती है . वैकुण्ठ चतुर्दशी के दिन भगवान शिव एवं विष्णु भगवान का मिलन होता है . जो भी इस दिन व्रत करता है एवं पूजा करता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती है , उसके सभी मांगलिक कार्य सफल होते हैं .

कथा – एक गांव में धनेश्वर नाम का ब्राह्मण रहता था . वह बहुत पापी ब्राह्मण था . वह निरंतर पाप करता  , लोगों पर अन्याय करता रहता था .  वह झूठ बोलता था , उसके बाप निरंतर बढ़ते जा रहे थे . एक बार वह गोदावरी नदी में स्नान करने के लिए गया था . जिस दिन वह स्नान करने के लिए  गोदावरी नदी में गया था  वह  दिन वैकुण्ठ चतुर्दशी का दिन था . जब वह स्नान कर रहा था तब  उसके साथ कई ऐसे लोग भी स्नान कर रहे थे जिन्होंने अच्छे काम किए थे और पुण्य कमाया था .

उन सभी के स्पर्श से धनेश्वर को भी पुण्य प्राप्त हुआ था . समय बीत जाने के बाद जब धनेश्वर ब्राह्मण का अंतिम समय आया तब  उसको यमराज नरक में ले गए थे . धनेश्वर ब्राह्मण को  नरक की यातनाएं  देने के लिए डाल ही रहे थे इतने में वहां पर  विष्णु भगवान प्रकट हुए और यमराज से कहने लगे कि इसने बहुत अधिक पाप किए हैं लेकिन इसने एक पुण्य कमाया है . इसने वैकुण्ठ चतुर्दशी के दिन  यमुना की नदी में स्नान किया था  और  कई लोग उस नदी में स्नान कर रहे थे  जिन के स्पर्श से इस धनेश्व्वर ब्राह्म ब्राह्मण  को  पुण्य प्राप्त हुआ है .

इसीलिए इसे नरक नहीं बैकुंठ धाम प्राप्त होगा . इस तरह से जो भी व्यक्ति वैकुण्ठ चतुर्दशी के दिन भगवान शिव एवं विष्णु भगवान की पूजा करता है , उनके चरणों मेंं कमल फूल अर्पण करता है उसको  पुण्य प्राप्त होता है ,  उसके जीवन में खुशियां आती हैं . इसलिए यह व्रत एवं पूजा बड़े धूमधाम से की जाती है . सभी हिंदू धर्म के लोगों की आस्था वैकुण्ठ चतुर्दशी व्रत एवं पूूूजा से जुड़ी हुई है .

दोस्तों हमारे द्वारा लिखा गया यह बेहतरीन लेख वैकुण्ठ चतुर्दशी पूजा विधि , व्रत कथा vaikuntha chaturdashi puja vidhi,vrat katha in hindi यदि पसंद आए तो सब्सक्राइब अवश्य करें धन्यवाद .

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