स्वामी विवेकानन्द के प्रेरक प्रसंग Swami vivekanand ke prerak prasang

Swami vivekanand ke prerak prasang

दोस्तों स्वामी विवेकानंद जी ने हम सभी को जिंदगी के बारे में बहुत कुछ सीख दी,उनके जीवन से हमें बहुत सारी प्रेरणा मिलती है

Swami vivekanand ke prerak prasang

आज हम पढ़ने वाले हैं स्वामी विवेकानंद जी के जीवन की एक घटना जो आप सभी को अपने डर को दूर करने की हिम्मत देगी.

पहला प्रसंग

दोस्तों काफी समय पहले स्वामी विवेकानंद जी काशी में श्री शंकर भगवान जी के दर्शन करने के लिए गए हुए थे तभी उनके पीछे बंदर पड़ गया दरअसल स्वामीजी की वेशभूषा को देखकर और स्वामी जी के थेले को देखकर बंदरों ने सोचा कि जरूर इसके पास कुछ होगा,स्वामीजी इन बंदरों से बहुत ही डर गए थे,वह आगे तेजी से भागे जा रहे थे उनके पीछे बंदर बहुत दूर तक भागते भागते आ गए,स्वामी जी की लंबी लंबी सांस चलने लगे,तभी स्वामी जी को एक व्यक्ति ने आवाज लगाई कहां रूको डरो मत एक जगह खड़े हो जाओ,उस व्यक्ति की ऐसी आवाज को सुनकर स्वामी जी को अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस की बात याद आ गई.

दरअसल वह कहते थे कि अगर जिंदगी में किसी से डर हो तो उससे भयभीत मत होइए आप उसके सामने खड़े हो जाएगी,आपका डर खत्म हो जाएगा,स्वामीजी ने ऐसा ही किया वह एक जगह नजर होकर खड़े हो गए उसी समय में बंदर स्वामी जी से दूर भाग गए दोस्तों इस वृतांत के बाद स्वामीजी जिंदगी में कभी भी किसी से नहीं डरें क्योंकि उन्हें पता चल चुका था की जिंदगी में किसी से डर गए तो वह चीज हमको और ज्यादा डराने लग जाती है.

दूसरा प्रसंग-

दोस्तों आज की हमारी कहानी मनुष्य का धैर्य हम सभी के लिए बहुत ही जागरुक करने वाली है,दोस्तों स्वामी विवेकानंद जी एक महान ज्ञाता थे वह अपने शिष्यों को ज्ञान देते थे,एक बार उनके पास उनका एक शिष्य आया,वह बोला कि स्वामी जी मैं अमेरिका जाना चाहता हूं तो स्वामी जी ने प्रश्न किया कि आप अमेरिका क्यों जाना चाहते हो?

तब शिष्य कहने लगा कि मैं अपने देश की संस्कृति धर्म रीति रिवाज आदि का प्रचार-प्रसार करुंगा,आप अगर अनुमति दें तो मैं अमेरिका जाऊं.
स्वामी विवेकानंद जी ने शिष्य की इस बात पर कहा कि मैं सोचकर बताऊंगा,कुछ समय बाद शिष्य ने पुनः कहा कि स्वामी जी क्या मैं अमेरिका जा सकता हूं तो स्वामी विवेकानंद जी ने पुनः वही बात दोहराई कि मैं सोचकर बताऊंगा तब स्वामी जी कि इस तरह की बातों को सुनकर समझ गया कि शायद स्वामी जी मुझे अमेरिका नहीं भेजना चाहते इसलिए इस तरह की बात कह रहे हैं उसने फिर से वह प्रशन नहीं दोहराया.

स्वामी जी ने लगभग 2 दिनों के बाद उससे कहा कि तुम हमारे देश के धर्म संस्कृति आदि का प्रसार प्रचार करने के लिए अमेरिका जा सकते हो,तब शिष्य ने कहा कि स्वामी जी आप उस समय भी मुझे अनुमति दे सकते थे लेकिन आपने इतना समय क्यों लिया.

तब स्वामी जी कहने लगे कि मैं तेरी धैर्य की परीक्षा ले रहा था दरअसल किसी दूसरे देश में लोगों के बीच में धर्म संस्कृति अपनी सभ्यता को फैलाने के लिए बहुत संघर्ष और धैर्य की जरूरत होती है अगर कोई व्यक्ति होता तो हो सकता है मेरे जवाब ना देने के कारण क्रोध में आ जाता है या फिर मेरी सेवा नहीं करता या मुझसे पहले जैसा व्यवहार नहीं करता लेकिन मैंने तेरी बात का जवाब नहीं दिया लेकिन फिर भी मैंने तेरे अंदर कोई बदलाव नहीं देखा,तूने बिल्कुल अपना धेर्य नहीं खोया और किसी भी काम में सफल होने के लिए धेर्य की जरूरत होती है इसलिए धेर्य तेरे अंदर है और तू अमेरिका जा सकता है.

दोस्तों वाकई में अगर हमको जिंदगी में सफल होना है तो हमें उसकी तरह धैर्य रखने की जरूरत है क्योंकि अगर हम भी धेर्य रखते हैं तो वाकई में हम सफल हो सकते हैं क्योंकि अगर बड़ी सफलता अर्जित करनी हो तो उसमें तो धेर्य रखना ही पड़ता है.

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