तुलसी और भगवान विष्णु की कथा Story of tulsi and lord vishnu in hindi

Story of tulsi and lord vishnu in hindi

Story of tulsi and lord vishnu in hindi-दोस्तों सावर्णि मुनि की पुत्री का नाम तुलसी था वह बहुत ही सुंदर थी वह भगवान नारायण से अपना विवाह करना चाहती थी इसके लिए उन्होंने बहुत ही लंबे समय तक कठोर तपस्या की.कठोर तपस्या करने के बाद ब्रह्माजी उनके सामने प्रकट हुए और उन्होंने तुलसी से कहा की तुम्हें पिछले जन्म में श्राप मिला था और भगवान विष्णु के एक पार्षद यानि भगवान विष्णु के अंश को भी एक श्राप मिला था जिस वजह से वह धरती पर राक्षस प्रजाति में जन्मा है लेकिन भगवान का अंश है उसमें भगवान विष्णु स्वयं विराजमान करते हैं तुम्हारी शादी उससे होगी तुलसी ने ब्रम्हाजी के द्वारा दिए गए वरदान को स्वीकार कर लिया.

Story of tulsi and lord vishnu in hindi
Story of tulsi and lord vishnu in hindi

एक दिन तुलसी की मुलाकात शंखचूड़ से हुई जोकि भगवान विष्णु का ही एक अंश थे शंखचूड़ को जब तुलसी पसंद आए तो उन्होंने उनसे शादी करने के लिए आग्रह किया और एक दिन शंखचूड़ और तुलसी की शादी हो गई और शंख चूर्ण अपने राज्य में तुलसी को ले आया.tulsi के आने के बाद शंखचूड का राज निरंतर बढ़ने लगा उनके राज्य का विस्तार देवलोक तक हो गया उन्होंने देवताओ को युद्ध में हरा दिया और उन देवताओ को अपने राज्य में शामिल किया वह किसी के साथ दुराचार नहीं करता था लेकिन वह किसी से भी युद्ध में नहीं डरता था.

एक दिन सभी देवताओं ने अपने राज्य को खोकर शंकर जी से प्रार्थना की कि आप ही हमें हमारा राज वापस दिलाने में मदद करे.देवताओं की प्रार्थना सुनकर शिव शंकर स्वयं शंखचूर्ण नामक देत्य से मिले.शिव शंकर जी ने शंखचूड़ से देवताओं का राज वापस करने को कहा लेकिन शंखचूड ने राज वापस करने से मना कर दिया उन्होंने कहा कि अगर राज वापस लेना है तो मुझसे युद्ध करना पड़ेगा तभी सभी देवताओं ने मिलकर शंखचूड़ से युद्ध करने की योजना बनाई और एक दिन युद्ध निश्चित किया गया.

जब युद्ध हुआ तो शंखचूड़ का कोई मुकाबला नहीं कर पा रहा था क्योंकि वह भगवान नारायण का एक अंश था जब सभी देवता मिलकर उस से युद्ध करते तो वह एकदम से गायब हो जाता था वह किसी को दिखाई नहीं देता था तभी शिव शंकर जी ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की कि आप किसी तरह से शंखचूड़ से युद्ध जीतने में हमारी मदद करें तब भगवान विष्णु ने शंखचूड़ का रुप धारण किया और छल से शंखचूड की पत्नी तुलसी के पास जा पहुंचे.

भगवान विष्णु ने शंखचूड़ का रूप धारण करके उनकी पत्नी को आलिंगन में लिया जिस वजह से तुलसी का पतिव्रता धर्म भंग हो गया जिस वजह से शंखचूर का सुरक्षा कवच दूर हो गया और शिव शंकर ने अपने त्रिशूल से शंखचूड़ को भस्म कर दिया इस तरह से शंखचूड भस्म हो गए लेकिन इधर जब तुलसी को पता लगा कि भगवान विष्णु ने उनके साथ छल किया है और उनके पति को भस्म करने में देवताओं की मदद की है तो तुलसी ने भगवान विष्णु को श्राप दिया और कहां कि तुम पत्थर हो जाओ.

भगवान विष्णु ने तुलसी के दिए गए श्राप को शिरोधार्य किया भगवान विष्णु ने कहा कि मैंने शंखचूड़ के कल्याण के लिए और तुम्हें श्राप से मुक्त करने के लिए यह सब किया भगवान विष्णु ने तुलसी से आगे कहा कि अब भी तुम मेरे पत्थर के ऊपर हमेशा विराजमान रहोगी और तभी से तुलसी हमेशा भगवान विष्णु के पत्थर रुपी शीश पर विराजमान रहती हैं भगवान विष्णु ने आगे कहा तुम्हारे पति शंखचूड के हड्डियों के चूर्ण से संख की उत्पत्ति होगी जो किसी भी शुभ कार्य या देवताओं की पूजा के समय उसकी ध्वनी को शुभ माना जाएगा इस तरह से तुम दोनों को ऊंचा पद प्रदान किया जाएगा.

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