सीता साहू की जीवनी Sita sahu biography in hindi
Sita sahu biography in hindi
Sita sahu – दोस्तों आज हम आपको इस आर्टिकल के माध्यम से भारत की एक ऐसी होनहार लड़की के बारे में बताने जा रहे हैं जिसने अपनी मेहनत के दम पर ओलंपिक के खेलों में डबल पदक हासिल किया है । तो चलिए अब हम आगे बढ़ते हैं और इस आर्टिकल को पढ़कर ओलंपिक मैं डबल पदक हासिल करने बाली सीता साहू के बारे में जानकारी प्राप्त करते हैं ।
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सीता साहू के जन्म स्थान व् परिवार के बारे में – सीता साहू भारतीय ओलंपिक पदक हासिल करने वाली भारतीय लड़की है । सीता साहू का जन्म मध्य प्रदेश राज्य के रीवा शहर में 23 अप्रैल 1996 को हुआ था । सीता साहू का जन्म एक गरीब परिवार में हुआ था । उनके पिता का नाम पुरुषोत्तम साहू है, जो समोसे चाट टिक्की का ठेला लगाकर अपने परिवार का भरण पोषण करते हैं । ठेले के माध्यम से जो पैसा उनके पिता कमाते थे उस पैसे से वह परिवार चलाते थे ।
उनकी माता जी का नाम किरण साहू है, जो एक अच्छी ग्रहणीका है । सीता साहू एक मानसिक रूप से रोगी थी जिसने ओलंपिक के खेल में डबल पदक प्राप्त करके अपना और पूरे राज्य का नाम रोशन किया है ।
सीता साहू के द्वारा ओलंपिक खेलों में डबल पदक प्राप्त करने की कहानी – सीता साहू बचपन से ही खेलों में रुचि रखती थी । जब वह स्कूल में पढ़ाई करने जाती थी तब स्कूल के शिक्षक उनके अंदर खेल के प्रति लगन देखते थे और स्कूल के शिक्षकों के द्वारा सीता साहू को ओलंपिक खेलों में खेलने के लिए तैयार किया गया था । स्कूल के शिक्षकों के सामने सबसे बड़ी समस्या यह थी कि सीता साहू मानसिक रूप से रोगी थी । परंतु शिक्षकों के अथक प्रयास से सीता साहू को ओलंपिक खेलों में खेलने के लिए तैयार किया गया था ।
जब यह बात राज्य के मुख्यमंत्री तक पहुंची तब मुख्यमंत्री ने सीता साहू को घर पर चाय पीने के लिए बुलाया था और सीता साहू से मुलाकात करने के बाद प्रदेश के मुख्यमंत्री ने यह फैसला किया कि सीता साहू को अपने जीवन में सफल होने के लिए पूरा सहयोग किया जाएगा । इसके बाद जब सीता साहू का चयन ओलंपिक के खेलों में खेलने के लिए किया गया तब वह बहुत खुश हुई थी , उनके माता-पिता को भी बहुत खुशी हुई थी क्योंकि उनके माता-पिता ने यह कभी भी नहीं सोचा था कि उनकी बेटी सीता साहू को ओलंपिक खेलों में खेलने के लिए मौका दिया जाएगा ।
जब यह मौका उनको मिला तब वह अपने शिक्षकों के साथ तैयारी करने लगी थी । जब वह ओलंपिक खेल में शामिल हुई और एथेंस मैं ओलंपिक खेल को खेलने के लिए पहुंची तब वह बहुत उत्साहित थी । उन्होंने पूरी मेहनत और लगन के साथ ओलंपिक खेल को खेला और 2011 के ओलंपिक में उन्होंने 200 और 800 मीटर की रिले दौड़ मे हिस्सा लिया और पूरी मेहनत और लगन के साथ वह दौड़ने के लिए तैयार थी । जब दौड़ प्रारंभ हुई तब उन्होंने कम समय में 200 और 400 मीटर की रिले दौड़ को तेजी से दौड़ कर पूरा किया था और भारत को डबल पदक दिलाया था ।
सीता साहू ने ओलंपिक में डबल पदक हासिल करके यह दिखा दिया था कि वह किसी से कम नहीं है । भले ही उनका परिवार गरीब हो पर वह एक होनहार लड़की है ।पदक जीतने के बाद सीता साहू ने मध्य प्रदेश का नाम और अपने परिवार वालों का नाम रोशन कर दिया था । मध्य प्रदेश की सरकार के द्वारा यह घोषणा भी की गई थी कि सीता साहू को इनाम में ₹100000 सरकार की तरफ से दिया जाएगा । डबल पदक जीतने के बाद सीता साहू अपनी पढ़ाई को बरकरार रखने लगी थी । परंतु पिता की तंगी के कारण उनको स्कूल छोड़ना पड़ा और अपने पिता के साथ ठेले पर गोलगप्पे बेचने पड़े थे ।
जब यह बात सरकार के सामने आई तब रीवा की कलेक्टर प्रीति मैथिल ने सीता साहू से मिलने का फैसला किया और सीता साहू की पढ़ाई लिखाई की जानकारी ली थी । इसके बाद कलेक्टर महोदय ने सीता साहू को यह आश्वासन दिया था कि सरकार के हिसाब से जो सहायता उनको मिलनी चाहिए वह सहायता दिलवाने में वह सीता साहू की पूरी मदद करेंगी । 2013 में मध्य प्रदेश सरकार के द्वारा सीता साहू को जो राशि देने की घोषणा की गई थी वह राशि मध्यप्रदेश शासन के द्वारा मंजूर कर दी गई थी और मध्य प्रदेश सरकार के द्वारा सीता साहू को ₹600000 का इनाम भी दिया गया है ।
सीता साहू की यह कहानी सभी होनहार लड़कियों का हौसला बढ़ाने का काम करेगी क्योंकि सीता साहू ने गरीब परिवार की बेटी होने के बाद भी ओलंपिक में जाकर डबल पदक हासिल किया है । पूरे मध्यप्रदेश को और भारत को सीता साहू पर गर्व है । मध्य प्रदेश की सरकार के द्वारा यह प्रयास भी किए जा रहे हैं कि सीता साहू को जीवन जीने के लिए अच्छा रोजगार दिया जाए । जिससे कि वह ठेले पर गोलगप्पे बेचने के लिए मजबूर ना हो ।
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