सिंधी टीजरी व्रत कथा sindhi teejri vrat katha in hindi

sindhi teejri vrat katha in hindi

दोस्तों आज हम आपको इस आर्टिकल के माध्यम से सिंधी टीजरी व्रत की कथा सुनाने जा रहे हैं । चलिए अब हम आगे बढ़ते हैं और सिंधी टीजरी की व्रत कथा को ध्यान से पढ़ते हैं । एक शहर में एक लक्ष्मी चंद नाम का एक व्यापारी रहता था । वह बहुत ही धनी व्यक्ति था ।उसके पास धन संपत्ति की कोई भी कमी नहीं थी ।

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वह अपने परिवार की सारी जरूरतों को पूरा करता था । किसी तरह की कोई भी कमी अपने बच्चों के लिए नहीं होने देता था । उसकी एक बेटी थी जिसका नाम रूपवंंती था । उसके दो बेटे भी थे जिनके नाम क्रांति चंद और रमेश था । धीरे धीरे उनके बच्चे बड़े होने लगे । जब इनकी बेटी बढ़ी हुई तब लक्ष्मी चंद ने अपनी बेटी रूपवंंती का विवाह दूर के एक लड़के के साथ कर दिया था । उसकी शादी बहुत धूमधाम से लक्ष्मी चंद ने की थी । लक्ष्मी चंद की बेटी रूपवंंती अपने पति के यहां पर रहने लगी थी ।

यहां पर लक्ष्मीचंद अपने बेटों के साथ खुशी से रहता था । एक बार लक्ष्मी चंद ने पवित्र अनुष्ठान यज्ञ करवाने का फैसला लिया । एक ब्राह्मण को बुलवाकर उससे अनुष्ठान यज्ञ करने की विधि पूछी । उस पंडित ने लक्ष्मी चंद को शुभ मुहूर्त बताया और जगह भी बताई । इसके बाद लक्ष्मी चंद ने पवित्र अनुष्ठान यज्ञ करने का फैसला कर लिया था । वह लक्ष्मीचंद यह चाहता था कि इस यज्ञ में पूरा परिवार साथ में हो जिससे उस पवित्र अनुष्ठान यज्ञ का फल मेरे सभी बच्चों को प्राप्त हो ।

ऐसा सोचकर लक्ष्मी चंद ने अपने दोनों बेटों रमेश और क्रांति चंद को अपनी बेटी को लेने के लिए भेज दिया था । दोनों भाई अपनी बहन को लेने के लिए चले गए थे । जब रमेश और क्रांति चंद रूपवंंती के यहां पर पहुंचे तब रमेश और क्रांति चंद का खूब सत्कार किया गया , उनको भोजन कराया गया , उनका स्वागत किया गया था । जब रात हुई तब दोनों भाइयों को रूपवंंती ने वहीं पर रोक लिया था । सुबह हुई तब दोनों भाइयों को स्नान करा कर भोजन के लिए बुलाया और भोजन की थाली दोनों के सामने रख दी ।

दोनों भाइयों ने रूपवंती से कहा कि हम सभी एक साथ मिलकर भोजन करेंगे । तुम भी आ जाओ । रूपवंंती ने अपने भाइयों से कहा कि मैं अभी भोजन नहीं कर सकती हूं क्योंकि मैंने तीज का व्रत रखा है । जब तक सूर्योदय नहीं होगा तब तक मैं भोजन नहीं करूंगी । दोनों भाइयों ने यह सुनकर यह निर्णय लिया की हम भी तीज व्रत रखेंगे और सूर्योदय से पहले भोजन नहीं करेंगे । ऐसा निर्णय लेकर उन्होंने तीज व्रत रखा परंतु लक्ष्मीचंद के दोनों बेटे अमीर परिवार के थे । उनको कभी भी भूख से पीड़ित नहीं होना पड़ा था ।

इसलिए वह भूख सहन नहीं कर सकते थे । जब उन्होंने तीज व्रत रखा तब उनको भूख का एहसास हुआ । वह भूखे रहकर अपने आप को कमजोर महसूस करने लगे थे । जैसे जैसे समय बीत रहा था वैसे वैसे उन दोनों भाइयों की बेचैनी बढ़ रही थी । दोनों भाइयों में से एक भाई पेड़ पर चढ़ गया और पेड़ पर चमकती हुई थाली और एक दीपक के जरिए एक चंद्रमा जैसा चमकदार दीपक जलाकर अपनी बहन को बुलाकर अपनी बहन से झूठ बोला कि है बहन चंद्रमा निकल आया है । अब हम अपना व्रत खोलते हैं ।

रूपवंंती ने अपने भाइयों का विश्वास करके , पूजा करके तीज व्रत खोल लिया था । ऐसा करने पर भगवान नाराज हुए और रूपवंंती का पति बीमार हो गया था ।जब रूपवंंती को यह पता चला कि उनके भाइयों ने झूठ बोला था तब उसे बड़ा दुख हुआ । अब वह अपने बीमार पति की सेवा करने लगी थी । समय बीतता गया और जब 1 साल बाद फिर से तीज व्रत का दिन आया तब रूपवंंती ने अपनी पति की दीर्घायु एवं सलामती के लिए व्रत रखा ।

पूरे विधि विधान से इस व्रत की पूजा की और शाम होने पर चंद्रमा को अर्ध्य देकर भोजन किया । ऐसा करने पर भगवान ने उसकी सारी गलती माफ कर दी थी और उसके पति को ठीक कर दिया था । इस तरह से जो भी तीज व्रत करता है , पूजा करता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं ।

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