सिंदबाद की तीसरी समुद्री यात्रा “Sindbad ki teesri samudri yatra”

हेलो दोस्तों कैसे हैं आप सभी,दोस्तों मैंने आपको अपने पिछले आर्टिकल में सिंदबाद की पहली यात्रा की कहानी और दूसरी कहानी आपके सामने प्रस्तुत की है आप यहां पर क्लिक करके उन कहानियों को पढ़ सकते हैं,दोस्तों सिंदबाद एक ऐसा जहाजी था जिसके साहस की मिसाल हम आज के युग में भी देते हैं.वह एक साहसी एक नेक बंदा था आज हम पढेंगे सिंदबाद जहाजी की तीसरी यात्रा

Sindbad ki teesri samudri yatra

सिंदबाद ने हिंद्बाद को अपनी तीसरी कहानी सुनाई.वह कहने लगे की में बगदाद में अपने पति पत्नी के साथ खुश था में अपनी दूसरी यात्रा से काफी डरा हुआ था इसलिए मेंने कभी भी यात्रा करने का फैसला किया लेकिन समय के साथ धन की भी कमी आई और उस समय घर पर ही बैठे रहने से में बोर होने लगा तब मैंने निश्चय किया कि मैं फिर से यात्रा करने के लिए जाऊं.

मैं अपने कुछ व्यापारी दोस्तों के साथ बगदाद से कुछ माल खरीदकर उसको अपने जहाज में रखवाकर बगदाद से निकल पड़ा.हमारा जहाज समुद्र में तेजी से दौड़ने लगा काफी लंबे सफर के बाद अचानक ही समुद्र में तूफान आ गया,यह तूफान इतना भयंकर था ऐसा लग रहा था कि अब हमारी मौत नजदीक है लेकिन कुछ समय बाद ही हमारा जहाज एक द्वीप पर पहुंचा.

हम सभी बहुत खुश थे हमने सोचा कि अब हमारी जान बच जाएगी लेकिन तभी जहाज के कप्तान के चेहरे पर निराशा की किरण आने लगी वह बहुत ही दुखी लगा,जब मेने निराशा का कारण पूछा गया तो उसने कहा कि यह एक ऐसा द्वीप है यहां पर कुछ ऐसे जानवर होते हैं जिनसे गलती से भी अगर किसी को मार दिया गया तो वह चींटियो की तरह हम को मारकर खा जाते हैं, वह हमें नहीं छोड़ेंगे वह सब यह सोच रहे थे कि तभी जानवरों ने हम पर हमला कर दिया और बह हमें घसीटकर अपने साथ एक घर में ले आए.

हम सभी को उस घर के अंदर रखा गया.हम बहुत ही गहरी सांस ले रहे थे तभी हमने उस समय वहां देखा कि वहां पर एक बहुत ही भयंकर राक्षस आया जिसके बीच में एक आंख थी और उसके होंठ बहुत ही लंबे थे उसके दांत भी बहुत बड़े-बड़े थे जो उसके मुंह से बाहर निकल रहे थे.हम उसको देखकर बहुत ही भयभीत हुए लेकिन उसके सामने हम कुछ भी नहीं कर पा रहे थे.

वह राक्षस हमारे पास आया और हरएक को हाथ लगाकर गौर से देखने लगा.हमारे नाव का जो कप्तान था वह हष्टपुष्ट था उस राक्षस ने उस कप्तान की छाती चीर डाली उसको मार कर खा गया और हमको वही पर छोड़कर चला गया.कप्तान की मौत पर हमें बेहद दुख था.चारों और हमें वहां जानवर ही जानवर नजर आ रहे थे तभी अगले दिन वह राक्षस आया और उसने फिर से सभी लोगों को देखा और जो सबसे हष्टपुष्ट लग लगा उस राक्षस ने उसको मार कर खा लिया.

हम सभी लोग बहुत ही डरे हुए थे,सोच रहे थे कि आत्महत्या करले लेकिन कहते हैं आत्महत्या करना सबसे बड़ा पाप होता है इसलिए हमने कुछ रास्ता निकालने की कोशिश की.मैंने सभी को एक सुझाव दिया कि क्यों ना हम यहां से बाहर निकलने के लिए कुछ नाव बनाएं,उन नावो में हम सवार होकर यहां से निकल चलें तभी वह सुबह का इंतजार करने लगे.

जब सुबह हुई और वह राक्षस आया तब सिंदबाद ने उस राक्षस को मारने के लिए लोहे के सरिए को गर्म कर लिया था. जैसे ही वह राक्षस आया सिंदबाद में उस राक्षस की आंखों में गर्म सरिया दे मारा.वह राक्षस भागने लगा और हम वहां से भाग निकले और समुद्र के किनारे आ गए.वह राक्षस वहां पर भी आ गए दरअसल उस बड़े राक्षस के साथ कुछ और भी राक्षस आए जो हमें वहां से जाने नहीं दे रहे थे.

हम जैसे ही नदी में अपनी नाव को आगे बढ़ाने लगे उन राक्षसों ने हमारी नावों में पत्थर फेंकना शुरू कर दिया.मेरे और साथी थे जो नावों में बैठे हुए थे उन पत्थरों के द्वारा मारे गए लेकिन हम कोई तीन चार लोग ही वहां से निकलने में कामयाब हुए. हम बहुत देर तक अपनी नावो को आगे बढ़ाए जा रहे थे, हमको कब नींद आ गई पता भी नहीं चला.तभी सुबह सुबह हुयी,मेरी नींद खुली.हम एक किनारे पर जा लगे थे.

मैंने अपने सभी साथियों को जगाया और हम शेयर करने के लिए निकल पड़े,यहाँ चारों ओर वृक्ष लगे हुए हैं, हम वृक्षों से फल तोड़कर खाने लगे और वहीं पेड़ के नीचे विश्राम करने लगे तभी अचानक ही मेरी नींद खुली तो मेरे दोस्त के चारो ओर एक बहुत ही बड़ा साँप लिपटा हुआ था और मेरे सामने ही उसने उसको खा लिया था मैंने अपने दुसरे दोस्त को जगाया और हम वहां से निकल पड़े.अब हम सिर्फ दो बचे थे हम एक पेड़ की डाल पर चढ़ गए और सोच रहे थे की हो सकता है कि अब हम बच सकें.मेरा दोस्त एक नीचे वाली डाल पर था.मैं ऊपर वाली डाल पर झाइयों में छुपा हुआ था कुछ समय बाद वहां साँप आया और उसने मेरे दोस्त को भी खा लिया और निगल लिया.

मैं यह दृश्य देखकर काफी भह्भीत था.मैं सोच रहा था कि इतनी सारी मुसीबतों से तो अच्छा है कि मैं आत्महत्या ही कर लूं.साँप के चले जाने के बाद मैं वहां से उतरा और आसपास समुद्र की तलाश में इधर-उधर चलने लगा कि किसी समुद्र में जाकर आत्महत्या कर लूंगा लेकिन समुद्र में मुझे एक जहाज दिखाई दिया.जहाजवालो ने मेरे इशारे करने पर एक नाव भेज दी और वह मुझे सुरक्षित अपनी जहाज में लेकर आ गए.

मेरे पास कुछ भी सामान नहीं था तभी उन लोगों ने मुझसे अपने बारे में पूछा मैंने उनको अपने बारे में पूरी जानकारी दी वह मेरी मुसीबतों की कहानी सुनकर बहुत ही भयभीत हुए और मुझसे कहा की हमारे पास एक व्यक्ति का सामान रखा हुआ है अगर आप चाहें तो उस सामान का उपयोग कर सकते हैं.

जब मैंने वह सामान देखा तो मुझे बेहद आश्चर्यचकित हुआ क्योंकि वह सामान मेरा ही था मैंने देखा और जहाज के लोगों से बात की तब मुझे पता लगा कि मेरी दूसरी यात्रा में जो जहाज दूर हो गया था वह यही जहाज था सभी जहाज के लोग समझ रहे थे कि मैं मारा गया लेकिन मैं भगवान के भरोसे बच गया था.सभी मुझे जिंदा देखकर काफी खुश थे,हम सभी एक बंदरगाह पर रुके जहां पर हमने काफी कुछ  क्रय विक्रय किया और कुछ चंदन खरीदा जो कि बहुत इस्तेमाल किया जाता है.इस यात्रा में मुझे बहुत लाभ हुआ मैं अपने साथ बहुत सारा धन लाया और अपने दोस्तों के साथ बगदाद वापस आ गया और कभी भी यात्रा न करने का सोचा.

इतना कहकर सिंदबाद ने हिंद्बाद को अपनी तीसरी कहानी सुनाई और कल अपनी अगली कहानी सुनाने का वादा करके हिंदबाद को वहां से विदा किया.

दोस्तों अगर आपको हमारा यह आर्टिकल Sindbad ki samudri yatra पसंद आये तो इसे शेयर जरूर करे और हमारा फेसबुक पेज लाइक करना न भूले,हमें कमेंटस के जरिये बताएं कि आपको हमारा यह आर्टिकल कैसा लगा.

Add a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *