श्रवण कुमार की कथा shravan story in hindi
shravan story in hindi
दोस्तों आज हम आपके लिए लाए हैं श्रवण कुमार की प्रेरणादायक कहानी.श्रवण कुमार माता पिता की हर आज्ञा का पालन करता था वह मात्र और पितृ भक्त था आज के इस जमाने में भी श्रवण कुमार के बारे में हर कोई जानता है वास्तव में वह एक बहुत ही अच्छा बालक था एक रात जब श्रवण कुमार आराम कर रहे थे तभी उनके अंधे माता पिता आपस में बातें कर रहे थे कि हमारी शुरू से इच्छा है कि हम तीरथ यात्रा करने के लिए जाएं जब श्रवण कुमार ने अपने माता पिता की बात सुनी तो उसने अपने माता पिता को तीर्थ यात्रा कराने के लिए निर्णय लिया उस समय मोटर गाड़ी या बैलगाड़ी नहीं चलती थी.
image source- https://commons.wikimedia.org/wiki/File:Dashrath_Raja_and_Shravan.jpg
श्रवण कुमार ने एक बांस का डंडा लिया और उसके दोनों सिरों पर दो टोकरिया बांध ली और उन टोकरियों में उसने अपने मां-बाप को बिठा दिया और श्रवणकुमार अब अपने मां-बाप को लेकर यात्रा करने के लिए चल पड़ा वह बहुत से गांव और जंगलों से होते हुए चले.श्रवण कुमार ने अपने माता पिता को बहुत से तीर्थ स्थलों का वर्णन अपनी आखो देखी सुनाया.श्रवण कुमार के माता श्रवण की आंखों से तीर्थ स्थलों को देख रहे थे वह तीरथ स्थलों के बारे में सुनकर अच्छा महसूस कर रहे थे.
एक बार अपने माता-पिता को श्रवण कुमार एक पेड़ के नीचे बिठा कर पानी की तलाश में जंगल में चले गए वह एक नदी से पानी भरी रहे थे कि अयोध्या के राजा दशरथ जो कि शब्दभेदी थे उन्होंने सोचा कि शायद कोई नदी के किनारे जानवर पानी पी रहा है वह शिकार करने के लिए ही जंगल में आए थे उन्होंने अपने वाणो से उस दिशा में तीर चला दिया और वह तीर श्रवण कुमार को जा लगा और श्रवण कुमार चिल्लाने लगे तो राजा दशरथ समझ चुके थे कि वह कोई जानवर नहीं बल्कि एक मनुष्य है वह उस श्रवण कुमार के पास गए तो राजा दशरथ को बहुत दुख हुआ कि उन्होंने किसी की हत्या कर दी है.
श्रवण कुमार ने कहा कि मेरी आखिरी इच्छा है कि मैं तुम मेरे मां-बाप को पानी पिला आओ.राजा दशरथ उस मटके में पानी भरकर सरवन कुमार के माता पिता के पास जाने लगे.माता-पिता राजा दशरथ के पैरों की आवाज सुनकर समझ चुके थे कि है कोई अजनबी है उन्होंने जब राजा दशरथ से पूछा कि तुम कौन हो तो राजा दशरथ ने अपने बारे में बताया और पूरी बात बताई
ये सुनकर श्रवणकुमार के माता-पिता ने क्रोधित होकर राजा दशरथ को श्राप दे दिया था कि जिस तरह से हम दोनों अपने पुत्र के दुख में तड़प तड़प के मर रहे हैं उसी तरह तू भी एक दिन अपने पुत्र के वियोग में ही तड़प तड़प के मरेंगया.अब राजा दशरथ कर भी क्या सकते थे वह वापस अपनी अयोध्या नगरी चले गए.
वास्तव में श्रवण कुमार एक आज्ञाकारी पुत्र था हम सबको उनसे बहुत कुछ सीखने की जरूरत है.
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