संतान सप्तमी पूजा विधि एवं व्रत कथा santan saptami puja vidhi , katha in hindi
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दोस्तों आज हम इस लेख के माध्यम से संतान सप्तमी पूजा विधि एवं व्रत कथा पढ़ेंगे ।
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santan saptami puja vidhi
संतान सप्तमी पूजा विधि – संतान सप्तमी व्रत महिलाएं अपनी संतान की सुख शांति एवं समृद्धि के लिए करती हैं । संतान सप्तमी व्रत संतान की लंबी आयु के लिए किया जाता है । संतान सप्तमी व्रत में भगवान शिव एवं माता पार्वती की पूजा की जाती है और भगवान शिव और माता से अपनी संतान की लंबी आयु , सुख शांति एवं समृद्धि कि कामना की जाती है । संतान सप्तमी व्रत भादो महीने की शुक्ल पक्ष की सप्तमी को किया जाता है ।
इस दिन जो भी महिला अपनी संतान की लंबी आयु के लिए यह व्रत करती है उसकी संतान की आयु लंबी हो जाती है । इस व्रत मैं सुबह स्नान करके , घर को साफ करके मिट्टी के शंकर एवं पार्वती की मूर्ति बनाकर पूजा में रखी जाती है । जो महिला संतान सप्तमी का व्रत करती है वह सबसे पहले पूजा की थाली तैयार करती है । पूजा की थाली में हल्दी , चावल , रोरी , पुए , मीठी पूड़ी , अगरबत्ती , धूप बत्ती , फूल , दुवा , घी , शक्कर सजाया जाता हैं ।
सात मीठी पूड़ी को केले के पत्ते में बांधकर पूजा में रखी जाती हैं । संतान सप्तमी की पूजा दोपहर के समय की जाती है । जो महिला संतान सप्तमी का व्रत करती है उसको अपने हाथों में सूती का धागा या फिर चांदी की बनी हुई चूड़ी हाथ में पहननी चाहिए । भगवान शिव एवं पार्वती की पूजा करनी चाहिए , धूपबत्ती से आरती करना चाहिए , फूल माला चढ़ाना चाहिए , डूबा चढ़ाना चाहिए , हल्दी , चावल , रोरी चढ़ाना चाहिए ।
भगवान शंकर एवं माता पार्वती से अपने संतान की सुख शांति एवं समृद्धि की प्रार्थना करना चाहिए । पूजा करने के बाद कथा पढ़नी चाहिए , कथा सुनना चाहिए और दूसरों को सुनाना चाहिए । कथा पूरी हो जाने के बाद भगवान शिव और पार्वती की पूजा अर्चना करना चाहिए । व्रत खोलते समय पूजा में रखी हुई सात पूरी ही खाना चाहिए । ऐसा करने से संतान की लंबी आयु , सुख समृद्धि प्राप्त होती है ।
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संतान सप्तमी कथा – एक बार श्री कृष्ण युधिस्टर को अपने माता पिता के बारे में बता रहे थे । श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा कि जब मेरे माता पिता को कंस ने बंदी बना लिया था तब उनके ऊपर काफी अत्याचार कंस करता था । मेरी मां की जितनी भी संतान होती थी कंस उसको जेल में ही मार देता था । इस तरह से कंस ने कई संतानों को मार दिया था और मेरे मां-बाप संतान मृत्यु से दुखी थे । उसी समय एक लोमस ऋषि मेरे माता-पिता से मिले और मेरे माता-पिता से कहा कि संतान मृत्यु शोक से बाहर आओ संतान मृत्यु शोक से बाहर आने के लिए में तुम्हें कुछ बताना चाहता हूं ।
लोमस ऋषि में वासुदेव और देवकी से कहा कि यदि तुम अपनी संतान को जीवित रखना चाहते हो तो मैं तुम्हें जो बताने जा रहा हूं उसको ध्यान से सुनना । लोमस ऋषि में माता देवकी और वसुदेव से कहा कि तुम दोनों अपनी संतान की लंबी आयु के लिए संतान सप्तमी व्रत एवं पूजा करो । ऐसा करने से तुम्हारी संतान को कोई भी नहीं मार सकता है । माता देवकी और वसुदेव में लोमस ऋषि की बात को मानकर व्रत किया और पूजा की ।
उसके बाद लोमस ऋषि में कथा सुनाई एक राज्य अयोध्यापुरी का प्रतापी राजा नहुष था और उसकी पत्नी का नाम चंद्रमुखी था । राजा नहुष की कोई भी संतान नहीं थी । दोनों पुत्र ना होने के कारण दुखी रहते थे । नहुष अयोध्या पुरी का प्रतापी राजा था । उसी राज्य में एक विष्णु दत्त नाम का ब्राह्मण रहता था । उस ब्राह्मण की एक पत्नी थी जिसका नाम रूपवती था ।अयोध्यापुरी की रानी चंद्रमुखी और ब्राह्मण की पत्नी रूपवती की आपस में गहरी मित्रता थी ।
दोनों साथ में खाना खाते , साथ में घूमते फिरते थे । एक बार जब ब्राह्मण की पत्नी और रानी की पत्नी तालाब के किनारे स्नान करने के लिए गई तब वहां पर और भी महिलाएं तालाब में स्नान कर रही थी । उन महिलाओं ने स्नान करके माता पार्वती और शंकर की मूर्ति की पूजा की और जीवन भर संतान सप्तमी का व्रत करने का संकल्प हाथ में धागा बांधकर किया था । जब रानी और ब्राह्मण की पत्नी ने यह देखा तब दोनों ने उन महिलाओं से पूछा कि यह तुम क्या कर रही हो ।
उन महिलाओं ने रानी से कहा कि हम संतान सप्तमी का व्रत एवं पूजा कर रही हैं । ऐसा करने से संतान सुख की प्राप्ति होती है । रानी और ब्राह्मण की पत्नि ने अपने हाथों में धागा बांधा और संतान सप्तमी का व्रत करने का संकल्प लिया था । दोनों अपने अपने घर चली गई थी । परंतु दोनों व्रत करना भूल गई थी । दोनों संतान सप्तमी व्रत कथा एवं पूजा करना भूल गई थी । कुछ समय पश्चात दोनों की मृत्यु हो गई थी । मृत्यु के बाद उनका अगला जन्म जानवर की योनि में हुआ था ।
रानी को बानरी का रूप मिला था । ब्राह्मण की पत्नी को मुर्गी का रूप मिला था । जब कालांतर युग में दोनों ने पशु योनि छोड़कर पुनः मनुष्य की योनि प्राप्त की तब भी दोनों संतान सप्तमी का व्रत करना भूल गई थी । इस कारण से इस जन्म में भी दोनों को संतान सुख की प्राप्ति नहीं हुई थी । इस जन्म में भी दोनों की गहरी मित्रता हो गई थी ।रानी का विवाह मथुरा के राजा पृथ्वीनाथ से हुआ था । ब्राह्मण की पत्नी रूपवती का विवाह एक ब्राह्मण के घर हुआ था । इस जन्म में रानी का नाम ईश्वरी एवं ब्राह्मणी का नाम भूषणा था ।
भूषणा का विवाह राजपुरोहित अग्नि मुखी के साथ हुआ था । इस जन्म में भूषणा को संतान सप्तमी व्रत का संकल्प ध्यान में आ गया था और उसके यहां 8 सुंदर संतानो ने जन्म लिया था लेकिन रानी ईश्वरी को अपना संकल्प याद नहीं आया था । उसने प्रौढ़ावस्था में एक गूंगा एवं बहरेे पुत्र को जन्म दिया था । कुछ समय पश्चात लगभग 9 वर्ष की आयु में उसके पुत्र की मृत्यु हो गई थी । जब भूषणा ने यह सुना की ईश्वरी के पुत्र का देहांत हो गया है ।
तब भूषणा अपनी सहेली ईश्वरी के पास पहुंची थी । जब ईश्वरी ने यह देखा की भूषणा की आठ संताने हैं जो कि सुंदर है । यह देख कर उसके मन में क्रोध आने लगा था । उसने भूषणा की सभी संतानों को मारने के लिए खाने में जहर मिला दिया था लेकिन माताा पार्वती और शंकर भगवान की कृपा से उनके पुत्र को कुछ भी नहींं हुआ था । यह देखकर ईश्वरी को और भी क्रोध आ गया था । उसने जल्लादों को भूषणा के पुत्रों को मारने के लिए भेज दिया था लेकिन फिर भी उसके पुत्रों को नहीं मार पाए थे ।
फिर क्या था ईश्वरी को और भी क्रोध आया । ईश्वरी ने गुस्सा में आकर अपनेे सैनिकों को भूषणा केे पुत्रों को युद्ध क्षेत्र में जान से मारने केेेे लिए भेजा था लेकिन युद्ध क्षेत्र में भूषणा के पुत्र बच गए थे । यह सब देख कर ईश्वरी ने भूषणा को बुलाया और क्षमा मांगी, भूषणा से यह पूछा कि तुम्हारे पुत्र की मृत्यु क्यों नहीं हो रही है तब भूषणा ने रानी से कहा कि तुम्हेंं पिछले जन्म की एक बात याद है क्या ? रानी बोली कौन सी बात तब भूषणा ने रानी से कहा कि एक बार हम तालाब में स्नान करने के लिए गए थे ।
वहां पर हमने संतान सप्तमी का व्रत करने का संकल्प लिया था । वह व्रत करना हम भूल गए थे। जिस कारण से हमें संतान सुख की प्राप्ति नहीं हो रही थी लेकिन मुझे इस जन्म में संतान सप्तमी का व्रत करना याद आ गया था जिससे मुझे सुंदर 8 पुत्रों की माता बनने काा सौभाग्य प्राप्त हुआ है । यह सब सुनकर रानी ईश्वरी ने व्रत किया और कथा कही ऐसा करने से भगवान शिव और माता पार्वती प्रसन्न हो गई थी । इस व्रत के प्रभाव से रानी ईश्वरी के यहांं एक सुंदर पुुत्र ने जन्म लिया था । तभी से यह व्रत सभी महिलाएं अपने पुत्र की सुख शांति एवं समृद्धि के लिए करती हैं ।
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