सालासर बालाजी का इतिहास Salasar balaji history in hindi
Salasar balaji history in hindi
Salasar balaji दोस्तों आज हम आपको इस आर्टिकल के माध्यम से सालासर बालाजी मंदिर के इतिहास के बारे में बताने जा रहे हैं । तो चलिए अब हम आगे बढ़ते हैं और इस आर्टिकल को पढ़कर सालासर बालाजी मंदिर के इतिहास के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त करते हैं ।
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राजस्थान में स्थित सालासर बालाजी मंदिर के बारे में – भारत देश के राजस्थान राज्य में स्थित सालासर बालाजी का मंदिर एक अद्भुत चमत्कारी मंदिर है जिस मंदिर से बालाजी भक्तों की आस्था जुड़ी हुई है । इस मंदिर के दर्शन के लिए लाखों की संख्या में भक्तगण सालासर बालाजी मंदिर के दर्शन करने के लिए जाते हैं और बालाजी के दर्शन करके अपने जीवन में सुख समृद्धि और आनंद प्राप्त करते हैं । सालासर बालाजी की प्रतिमा की उत्पत्ति के बारे में ऐसा कहा जाता है कि सालासर बालाजी की प्रतिमा की उत्पत्ति 1811 में नागौर जिले के आसोटा गांव में हुई थी ।
सालासर बालाजी की प्रतिमा की उत्पत्ति और मंदिर निर्माण को लेकर एक कथा भी कही जाती है और कथा में यह बताया जाता है कि बालाजी महाराज के सबसे प्रिय भक्त महात्मा मोहनदास जी के द्वारा बालाजी महाराज की कठिन तपस्या की गई थी । जब बालाजी महाराज की तपस्या महात्मा मोहनदास महाराज के द्वारा की गई थी तब बालाजी महाराज महात्मा मोहनदास की तपस्या से खुश हो गए थे । इसके बाद बालाजी महाराज ने मोहनदास की तपस्या से खुश होकर महात्मा मोहनदास जी महाराज को साक्षात मूर्ति के रूप में दर्शन दिए थे और महात्मा मोहनदास से बालाजी महाराज ने यह भी कहा था कि वह जल्द ही एक प्रतिमा के रूप में तुम्हारे पास आएंगे और तुम्हारे द्वारा एक भव्य मंदिर का निर्माण किया जाएगा ।
एक बार जब एक किसान जो आसोटा गांव का रहने वाला था वह खेत में हल चला रहा था अचानक से वह एक जगह पर रुक गया उसे ऐसा महसूस हुआ कि जरूर जमीन में कुछ ऐसी वजनदार चीज है जिसके कारण पंजा आगे नहीं बढ़ पा रहा है । उसी समय किसान ने उस स्थान के आसपास खुदाई करवाई जिसमें से बालाजी महाराज की मूर्ति निकली थी और उसने उसी उस मूर्ति को गंगाजल से धोकर साफ कपड़े से पहुंचकर देखा तो वह बालाजी महाराज की प्रतिमा के रूप में दिखाई देने लगी थी । इसके बाद बालाजी महाराज ने वहां के पास में रहने वाले एक ठाकुर को स्वप्न में कहा था कि वह किसान से मूर्ति लेकर सालासर तक पहुंचा दें जिससे कि वह मूर्ति सालासर में स्थापित की जा सके ।
ठाकुर ने यह स्वप्न देखने के बाद मूर्ति को सालासर पहुंचाने की जिम्मेदारी ले ली थी और बालाजी महाराज ने उस ठाकुर को स्वप्न में यह भी कहा था कि वह एक बैलगाड़ी में यह मूर्ति रखकर सालासर पहुंचाए । बेल गाड़ी के पहिए जहां पर भी रुके वहीं पर इस मूर्ति की स्थापना करवानी है । इस तरह से ठाकुर बालाजी की मूर्ति लेकर चल दिया और वह सालासर पहुंचा था । जब लोगों को बालाजी मूर्ति के बारे में पता पड़ी तब सालासर के रहने वाले लोगों ने ठाकुर और उस मूर्ति का भव्य स्वागत किया गया था ।
जैसे ही बैलगाड़ी महाराज महात्मा मोहनदास जी के आश्रम पर पहुंची उस बेल गाड़ी के पहिए वहीं पर रुक गए थे जिसके बाद महात्मा मोहनदास जी महाराज के आश्रम के आसपास सालासर बालाजी के मंदिर का भव्य निर्माण महात्मा मोहनदास जी महाराज के द्वारा कराया गया था । महात्मा मोहनदास जी महाराज के द्वारा तकरीबन 300 वर्ष पहले एक धुणी प्रज्वलित की गई थी जो आज भी ज्यों की त्यों जली हुई है । सालासर बालाजी की प्रतिमा एक ऐसी सुंदर अद्भुत चमत्कारी प्रतिमा है जिस प्रतिमा पर बालाजी की मूछें दाढ़ी हैं ।
यह एक लौती प्रतिमा है जिस प्रतिमा पर बालाजी महाराज की दाढ़ी मूछें दिखाई देती हैं । मंदिर के निर्माण के बारे में ऐसा कहा जाता है कि जब मूर्ति सालासर पहुंची तब महात्मा मोहनदास जी महाराज के द्वारा मंदिर के भव्य निर्माण के लिए मुसलमान कारीगरों को बुलाया गया था और वह मुसलमान कारीगर फतेहपुर का रहने वाला था जिसका नाम नूर मोहम्मद दाऊ था । जो भी यात्रीगण सालासर बालाजी मंदिर के दर्शनों के लिए जाता है वह जयपुर बीकानेर राज मार्ग से होते हुए सालासर बालाजी मंदिर के दर्शन करने के लिए पहुंचता है । सालासर बालाजी मंदिर की दूरी सीकर से 57 किलोमीटर है , सुजानगढ़ से 24 किलोमीटर है , लक्ष्मणगढ़ से 30 किलोमीटर दूरी पर स्थित है ।
सालासर बालाजी मंदिर के नजदीकी रेलवे स्टेशनों के नाम सीकर , सुजानगढ़ , डीडवाना जयपुर और रतनगढ़ हैं । जहां से यात्री रेल यात्रा के माध्यम से सालासर बालाजी मंदिर के दर्शनों के लिए पहुंचता है ।
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