रस संप्रदाय पर एक विस्तृत निबंध Ras sampraday in hindi
Ras sampraday in hindi
Ras sampraday – दोस्तों आज हम आपको इस आर्टिकल के माध्यम से रस संप्रदाय पर एक विस्तृत निबंध के बारे में बताने जा रहे हैं । तो चलिए अब हम आगे बढ़ते हैं और इस आर्टिकल को पढ़कर रस संप्रदाय के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त करते हैं ।
रस संप्रदाय के बारे मे – रस संप्रदाय भारत देश के काव्यशास्त्र का सबसे प्राचीन सिद्धांत है । जो भारतीय रस सिद्धांत काव्य सिद्धांत कहा जाता है । भारत देश के काव्यशास्त्र में रस सिद्धांत प्राचीन समय का है । जब रस संप्रदाय की उत्पत्ति की गई तब कई काव्य शास्त्र में रस सिद्धांत का उपयोग किया गया था । नाट्यशास्त्र में रस संप्रदाय का प्रथम बार उपयोग किया गया था । जब नाट्यशास्त्र में रस संप्रदाय का उपयोग किया गया तब नाट्यशास्त्र की उपलब्धि निरंतर बढ़ती गई और कई महान लेखकों ने अपनी नाटकों में रस संप्रदाय का उपयोग करना महत्वपूर्ण समझा था ।
इस तरह से रस संप्रदाय केे सिद्धांत को अपनाते हुए कवि, नाटककार लेखक निरंतर आगे बढ़ते गए और रस संप्रदाय को अपनाकर नाटक लिखने लगे थे । रस संप्रदाय के कई प्रकार होते हैं जिन सभी प्रकार के रसों का उपयोग कवि अपनी कविताओं , नाटककार अपने नाटकों में उपयोग करते हैं । रस के कुछ प्रकार होते हैं । जैसे कि शृंगार रस , हास्य रस , करुण रस , रौद्र रस , वीर रस , भयानक रस , वीभत्स रस , अद्भुत रस , वात्सल्य रस , शांत रस , भक्ति रस , प्रेयान रस आदि । यह सभी रस के प्रमुख प्रकार होते हैं ।
इन सभी रस संप्रदाय का उपयोग कवि , लेखक , नाटककार करते हैं । दोस्तों इनमें से कुछ ऐसे रस होतेे हैं जिन रसों मे कुछ भेद होते हैं । वीर रस एक ऐसा रस होता है जिस रस में तीन भेद माने गए हैं । पहला भेद युद्धवीर होता है , दूसरा भेद धर्मवीर होता है , तीसरा भेद दानवीर होता है । इस तरह से वीर रस के तीन प्रमुख भेद होते हैं । इसके साथ-साथ रस संप्रदाय की रति में भी तीन भेद होते हैं । रति के तीन भेद इस प्रकार से है । रति का पहला भेद वात्सल्य रति होता है ।
रति का दूसरा भेद दांपत्य रति होता है । रति का तीसरा भेद भक्ति संबंधी रति होता है । इस तरह से रति के यह तीन भेद होते हैं ।
रस संप्रदाय के प्रवर्तक के बारे में – रस संप्रदाय की उत्पत्ति का श्रेय रस संप्रदाय के प्रवर्तक भरतमुनि को जाता है । रस संप्रदाय के प्रवर्तक भरतमुनि के द्वारा रस संप्रदाय की उत्पत्ति 200 ईसवी पूर्व में की गई थी । जब भरत मुनि के द्वारा रस संप्रदाय की उत्पत्ति की गई तब भरतमुनि के द्वारा रस संप्रदाय का उपयोग नाट्यशास्त्र में किया गया था । जब भरतमुनि के द्वारा रस संप्रदाय की निरूपण व्याख्या नाट्यशास्त्र में की गई तब भरतमुनि ने रस संप्रदाय की महत्वता को विस्तृत रूप में लोगों के समक्ष प्रस्तुत किया था ।
जब भारतीय काव्यशास्त्र में रस सिद्धांत का उपयोग सर्वप्रथम भरतमुनि के द्वारा नाट्यशास्त्र में रस निरूपण की व्याख्या की गई तब लोगों ने रस संप्रदाय के बारे में जाना था । भारतीय काव्यशास्त्र के महान प्रवर्तक भरतमुनि के द्वारा जब ग्रंथ नाट्यशास्त्र लिखा गया तब उस ग्रंथ में भरतमुनि ने रस संप्रदाय को भी स्थान दिया था । यह कहा जाता है कि भरतमुनि के द्वारा रस संप्रदाय का उपयोग नाट्यशास्त्र ग्रंथ के छठे अध्याय में रस सूत्र का विस्तृत उपयोग किया गया था ।
जब भरतमुनि के द्वारा छठे अध्याय में रस सूत्र का उपयोग किया गया तब ग्रंथ नाट्यशास्त्र एक सफल शास्त्र बनने की ओर अग्रसर था । छठे अध्याय में रस सूत्र का उपयोग करने के बाद भरतमुनि ने ग्रंथ नाट्यशास्त्र में सातवें स्थान पर अनुभाव और विभाव का उपयोग उनके द्वारा किया गया था । इसके साथ साथ भरतमुनि के द्वारा लिखे गए ग्रंथ नाट्यशास्त्र में स्थाई भाव और संचारी भाव की भी व्याख्या की गई है । रस संप्रदाय की उत्पत्ति से लेकर रस संप्रदाय की व्याख्या भरतमुनि के द्वारा की गई है । भरतमुनि को ही रस संप्रदाय का प्रवर्तक माना जाता है ।
रस संप्रदाय की उत्पत्ति के बारे में प्राचीन समय से ही बताया जाता रहा है क्योंकि रस संप्रदाय के द्वारा ही नाटक शास्त्र में उन्नति हुई है । जब किसी मंच पर नाटक प्रस्तुत किया जाता है तब उस नाटक में रस संप्रदाय की उत्पत्ति ना की जाए तो वह नाटक एक सफल नाटक नहीं कहलाता है ।
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