रामधारी सिंह दिनकर की कविता हिमालय Ramdhari singh dinkar poem himalaya in hindi
Ramdhari singh dinkar poem himalaya in hindi
Ramdhari singh dinkar poem himalaya in hindi-हेलो दोस्तों कैसे हैं आप सभी,दोस्तों आज की हमारी कविता रामधारी सिंह दिनकर की लिखी हुई एक कविता है रामधारी सिंह दिनकर एक ऐसे महान कवि,लेखक और निबंधकार थे जिन्होंने हम सभी को बहुत सी अपने द्वारा लिखी हुई कृतियां प्रदान की हैं जिसमें विशेष रुप से उन्होंने वीर रस को स्थापित किया है
Image source- https://en.wikipedia.org/wiki/Ramdhari_Singh_Dinkar
वैसे तो इन्होंने बहुत सी कविताएं लिखी हैं लेकिन हिमालय के ऊपर लिखी गई इनकी कविता मुझे बहुत ही पसंद है आज हम श्री रामधारी सिंह दिनकर जी की हिमालय के ऊपर लिखी हुई कविता पढ़ेंगे तो चलिए पढ़ते हैं इनकी इस कविता को
मेरे नगपति मेरे विशाल
साकार,दिव्य,गौरव विराट
पुरुष के पुंजीभूत ज्वाल
मेरी जननी के हिम किरीट
मेरे भारत के दिव्य भाल
मेरे नगपति मेरे विशाल
युग युग अजय,निर्बंध,मुक्त
युग युग गर्वोन्नत नित महान
निस्सीम व्योम में तान रहा
युग से किस महीमा का वितान
कैसी अखंड यह चिर समाधि
यतिवर कैसा यह अमर ध्यान
तू महाशून्य मैं खोज रहा
किस जटिल समस्या का निदान
उलझन का कैसा विषम जाल
मेरे नगपति मेरे विशाल
ओ मोंन तपस्या लीन यति
पल भर को तो कर द्र्गुन्मेश
रे ज्वालाओ से दग्ध विकल
है तड़प रहा पद पर स्वदेश
सुख सिंधु पंचनद भ्र्ह्मपुत्र
गंगा यमुना की अमिय धार
जिस पुण्यभूमि की ओर बही
तेरी विगलित करुणा उदार
जिसके द्वारों पर खड़ा क्रांत
सीमा पति तूने की पुकार
पद दलित इसे करना पीछे
पहले ले मेरा सिर उतार
उस पुण्यभूमि पर आज तपी
रे आन पड़ा संकट कराल
व्याकुल तेरे सुत तड़प रहे
डस रहे चतुर्दिक विविध व्याल
मेरे नगपति मेरे विशाल
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