पुस्तक की आत्मकथा पर निबंध Pustak ki atmakatha essay in hindi
Pustak ki atmakatha essay in hindi
हेलो दोस्तों कैसे हैं आप सभी,दोस्तों आज का हमारे द्वारा लिखा गया है आर्टिकल पुस्तक की आत्मकथा पर निबंध एक काल्पनिक आर्टिकल हैं ये पुस्तक की आत्मकथा पर लिखा गया है इस निबंध का उपयोग विद्यार्थी अपने स्कूल,कॉलेज की परीक्षा में निबंध लिखने के लिए यहां से जानकारी ले सकते हैं साथ में अपने ज्ञान को बढ़ाने के लिए इस निबंध का उपयोग करिए इसलिए पड़ते हैं हमारे इस निबंध को
मैं एक पुस्तक हूं मेरा स्वरूप किसी किसी को बहुत ही खुश कर देता है मैं ज्यादातर हर किसी के घर रहती हूं लोग मुझे काफी पसंद करते हैं मैं संगठित अवस्था में पुस्तकालयों में रहती हूं.
हर मां बाप मुझ पुस्तक के जरिए अपने बच्चे को ज्ञान कराने की कोशिश करते हैं मा बाप जब अपने बच्चे को स्कूल में दाखिल करवाते हैं तो शिक्षक के कहने पर वह बाजार से कुछ पुस्तक बच्चों को दिलवाते हैं गुरु उन किताबों के जरिए अपने ज्ञान को और भी अच्छी तरह से प्रदान करते हैं.
एक गुरु ही शिष्य को पुस्तकों का महत्व बताता है गुरु कहते हैं की पुस्तको में माँ सरस्वती का वास होता हैं मैं कभी-कभी यह देखकर काफी खुश भी होती हूं की लोग मुझे सम्मान देते हैं.बच्चा जब स्कूल से आता है तो मां बाप उसे किताब लेकर पढ़ने की सलाह देते हैं जब बच्चा बड़ा होता है तो भी वह किताबों से अपने संबंध को नहीं छोड़ता वह मेरे नए नए रूपों को बाजार से खरीद कर अपनी आगे की पढ़ाई जारी करता है.
कहते हैं कि मुझ पुस्तक से जो अच्छी तरह ज्ञान प्राप्त करता है वह जीवन में बहुत आगे बढ़ता है मुझको पढ़ कर लोग शिक्षक बनते हैं और अपने जैसे और शिक्षकों को जन्म देते हैं मुझको पढ़कर ही लोग डॉक्टर,इंजीनियर, लॉयर, कलेक्टर और बड़े-बड़े पद क्योंकि यह सब ज्ञान मैं अपने आप में रखे हुए होती हैं हर कोई मेरी बड़ी ही इज्जत करता है
पहले के जमाने में जब मेरा आविष्कार नहीं हुआ था तब ज्ञान को एक जगह एकत्र करने के लिए ऋषि मुनि भोजपत्र पर लिखा करते थे आज भी हम देखे हैं तो बहुत पुराना साहित्य भोज पत्रों में देखने को मिलता है लेकिन बदलते जमाने के साथ हमारी इस दुनिया में बहुत सारे बदलाव देखने को मिले है.पुस्तक का अविस्कार होने से पहले कागजों का अविष्कार हुआ वांस के टुकड़े,घास फूस आदि से कागज को बनाया गया और इस कागज़ को लेखक के पास भेजा गया लेखक अपने ज्ञान के जरिए उसमें कुछ लिखता है और प्रकाशक के पास वह प्रेस में भेज देता है
वहां वह मेरे अलग-अलग पन्नों को धागे के जरिये एक किताब का स्वरुप दे देता है और मुझ सुंदर सी पुस्तक का अविष्कार होता है.प्रकाशक के जरिए वह पुस्तक दुकान पर पहुंच जाती है और वहां पर बहुत सारे लोग मुझे अपनी जरूरत के हिसाब से खरीदने के लिए आते है मैं काफी समय तक लोगों का इंतजार करती रहती हु सुबह से शाम तक रहा निकालती रहती हु कि कोई तो आए मुझे खरीदने के लिए.
मेरे मन में तरह-तरह के ख्याल आ रहे थे इतने में ही देखा कि एक स्कूल की छुट्टी हुई और बहुत सारे बच्चे अपने पीछे बस्ता टांगे हुए मेरे पास आए और उन्होंने मुझ जैसी ही बहुत सी किताबों को खरीद लिया.वह मुझे अपने घर ले जाते और अलमारी के कोने में मुझे छुपा कर रख दिया.वह कभी-कभी मुझको नही पढ़ते तो उनके मां-बाप उन्हें मुझे पढ़ने को कहते.मेरा जीवन सुख में बीत रहा था धीरे-धीरे समय बीतता गया रोजाना पढ़ते पढ़ते मेरी अवस्था पहले जैसी नहीं रही पुस्तक के पन्नो के किनारों पर वह थोड़ी-थोड़ी फट गई मुझे उस बच्चे ने एक दूसरी अलमारी के कोने में रख दिया.
अब वह बहुत ही कम मुझे निकालता मैं पड़ी पड़ी उस कोने में दिन भर बैठी रहती मैंने और भी कई तरह की अवस्थाएं देखी है.जब मुझे पुस्तकालय में रखा जाता है तो बहुत सारे बच्चे,बूढ़े नौजवान मुझे पढ़ने के लिए आते है वह पुस्तकालय में आकर मुझे हाथ में लेकर बहुत ही खुशी का अनुभव करते है.बच्चे मेरी मनोरंजन की बुक पढ़ते है नौजवान विज्ञान-गणित जैसी पुस्तक पढ़ते है और बुजुर्ग लोग और भी कई अच्छी शिक्षाप्रद किताबे पड़ते है.यहां तक कि पुस्तकालयों में लोग मुझे पढ़ने के लिए कुछ पैसे भी देने से नहीं चूकते वास्तव में जो मुझे पड़ता है वह ज्ञानवान बन जाता है.
पुस्तकालयों में मेरा बहुत ख्याल रखा जाता था एक बार एक विद्यार्थी मुझे पढ़ रहा था तो मैं गलती से उसके हाथ से छूटकर नीचे गिर गई तो देख-रेख करने वाले ने उसे तुरंत ही पुस्तकालय से बाहर निकाल दिया और मुझे उसी जगह पर रख दिया.देखा जाता है कि बहुत से लोग ऐसे हैं जो अपने जीवन को बदलना चाहते हैं लेकिन काफी कोशिश करने के बाद वह अपने जीवन में कोई भी परिवर्तन महसूस नहीं करते लेकिन कभी-कभी केवल मुझको पढ़कर अपने जीवन में बहुत कुछ कर जाते हैं और जीवन में आगे बढ़ते हैं.
जो मुझे निरंतर पढ़ता है और मेरा ज्ञान अपने भीतर उतार लेता है वह जीवन में जरूर ही आगे बढ़ता है और हमेशा खुश रहता है. आज मैं आपको सिर्फ यही संदेश देना चाहती हु कि आप मेरा सम्मान करें,मुझे निरंतर पढ़ें और अगर मेरी अवस्था बदल जाए यानी रखी रखी में पुरानी हो जाउ तो मुझे एक कोने में रख देना और कभी-कभी मुझे निकालकर जरूर पढ़ लेना क्योंकि मैं अंधेरे कोने में पड़ी पड़ी अच्छा महसूस नहीं करती.
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