पालतू प्राणी की आत्मकथा निबंध Paltu prani ki atmakatha nibandh in hindi

Paltu prani ki atmakatha nibandh in hindi

आज के हमारे इस आर्टिकल में हम पढ़ेंगे पालतू प्राणी की आत्मकथा पर निबंध। हमारे आसपास कई तरह के जीव जंतु रहते हैं, बहुत सारे लोग जानवरों को पालते हैं इन पालतू जानवरों में से आज हम आपके लिए लाए हैं बकरी की आत्मकथा।

Paltu prani ki atmakatha nibandh in hindi
Paltu prani ki atmakatha nibandh in hindi

मैं एक बकरी हूं मैं आज एक शहर के इलाके में रहती हूं। मैं काफी खुश हूं क्योंकि मेरा मालिक मेरा भरण पोषण ठीक तरह से करता है। आज से कुछ सालों पहले जब मेरा जन्म एक गांव में हुआ था तो मैं काफी खुश थी उस गांव का माहौल कुछ ऐसा था कि गांव के ज्यादातर घरों में हम जैसी कई अन्य बकरियां थी जिनकी आवाज अक्सर मुझे सुनाई देती थी।

कई लोग बकरियों का दूध पीना बेहद पसंद करते थे। हमारे गांव से बकरियों का दूध शहर बेचने के लिए जाता था। धीरे-धीरे मैं उस गांव में बड़ी होने लगी जब मैं बड़ी हुई तो मैंने सोचा भी नहीं था कि मुझे अपने परिवार से अपने गांव से दूर जाना पड़ेगा लेकिन मालिक ने मुझसे बिना पूछे मेरा सौदा कर दिया। एक दिन एक शहर का आदमी आया और अपने साथ मुझे ले चला।

मैं उसके साथ में जाते-जाते रास्ते में अपनी मां को याद करती और रास्ते में चिल्लाती रही जब मैं शहर में पहुंची तो मेरे नए मालिक ने मेरा बहुत ही अच्छी तरह से ख्याल रखा। मुझे कुछ अन्य बकरियों के साथ में एक घर में बांध दिया गया वह मालिक भी हम सभी बकरियों का दूध आज शहर के अन्य इलाकों में बेचने के लिए जाता था और हमारे दूध को बेचने के बाद जो पैसे आते थे उससे वह अपने घर का खर्चा चलाता था।

हम सभी इसलिए खुश थे क्योंकि मालिक समय पर हमें चारा उपलब्ध करवाता था। वह कभी भी किसी भी बात की कोई कमी नहीं रखता था हमारे मालिक के परिवार में 4 सदस्य थे मालिक मालिक और दो बच्चे पूरा परिवार बहुत ही खुश मिजाज था जो हमें भी एक परिवार के सदस्य की तरह रखता था हमारी देखभाल करता था।

मैं शहर में खुश थी लेकिन गांव में अपने परिवार वालों के साथ रहते हुए मुझे ज्यादा खुशी मिलती थी। वहां पर मुझ बकरी जैसे कई अन्य सदस्य भी थे लेकिन अब जो हुआ सो हुआ वैसे भी अब मैं क्या कर सकती हूं। मैं बस यहां पर बंदी अपने मालिक की सेवा करती रहती हूं और अपने मोहल्ले की जीविका चलाने के लिए उसे दूध उपलब्ध करवाती हूं। यही मेरा कर्तव्य है और मैं अपना कर्तव्य पूरी ईमानदारी से करती हूं।

जब भी कभी मेरी तबीयत खराब होती है तो मालिक एक परिवार के सदस्य की तरह मेरा इलाज भी करवाता है तो मुझे बहुत खुशी मिलती है। यही मेरे जीवन की आत्मकथा है।

दोस्तों मेरे द्वारा लिखी एक पालतू प्राणी की आत्मकथा पर निबंध आपको कैसा लगा। इस काल्पनिक आर्टिकल को ज्यादा से ज्यादा अपने दोस्तों में शेयर करें।

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