पहाड़ी की आत्मकथा Pahadi ki atmakatha essay in hindi

Pahadi ki atmakatha essay in hindi

दोस्तों आज मैं आपके लिए लाया हूं पहाड़ी की आत्मकथा। मेरे द्वारा लिखित काल्पनिक आर्टिकल चलिए पढ़ते हैं आज के हमारे इस आर्टिकल को। मैं एक पहाड़ी हूं मैं बहुत ही ऊंची हूं मेरी पहाड़ी पर चढ़ना लोगों के लिए काफी मुश्किल होता है।

Pahadi ki atmakatha essay in hindi
Pahadi ki atmakatha essay in hindi

बहुत ही कम लोग मुझ पहाड़ी पर चढ़ पाते हैं मेरे ऊपर कई सारे पेड़ पौधे लगे हुए हैं। कई सारे पशु-पक्षी भी मेरे ऊपर निवास करते हैं जिन की चहचहाहट मैं हमेशा सुनती रहती हूं। मैं शहर से काफी दूर एक जंगली इलाके में निवास करती हूं मेरी पहाड़ी की ऊंची चोटी से कई सारे गांव भी देखे जाते हैं।

कुछ लोग जो पहाड़ियों, पर्वत ऊपर चढ़ने में एक्सपर्ट होते हैं वह मुझ पहाड़ी पर आसानी से चढ़ जातेे हैं और काफी खुशी का अनुभव करते हैं। मुझ पहाड़ी पर कुछ बाहर से लोग घूमने के लिए भी आते हैं मैं ऊंची पहाड़ी कई सारे लोगों को अपने नजदीक से गुजरते हुए भी देखती हूं तो मुझे काफी खुशी होती है।

मैं हमेशा सोचती हूं कि सबसे ऊंची में हूं वास्तव में मेरे आस-पास मैंने आज तक मुझसे ऊंची कोई भी चीज नहीं देखी। आज से कुछ सालों पहले मेरा जब जन्म हुआ तब मैं छोटी थी धीरे-धीरे मैं बड़ी होने लगी और आज मैं बहुत ही ऊंची एक पहाड़ी का रूप ले चुकी हूं। लोग जब मेरे आस पास से गुजरते हुए मुझे देखते हैं तो उन्हें अपना सर ऊपर करना पड़ता है।

मैं कभी-कभी अपने आप में खुश रहती हूं कि मैं कितनी ऊंची हूं मुझ पर कितने सारे पेड़-पौधे, पशु-पक्षी निवास करते हैं लेकिन कभी-कभी मैं सोचती हूं की मैं कहीं आसपास घूमने नहीं जा सकती जिस तरह से पक्षी आसमान में उड़ सकते हैं वह देश दुनिया की सैर कर सकते हैं इसी तरह जानवर एवं मनुष्य भी आसपास की जगह में विचरण कर सकते हैं लेकिन मैं कहीं पर भी आसपास नहीं घूम सकती।

मैं बस एक ही जगह पर स्थित हु इसलिए मुझे थोड़ा अच्छा नहीं लगता काश में आसपास के इलाकों में घूम सकती तो कितना अच्छा होता। मुझे कितनी खुशी मिलती बहुत से जीव जंतु, पशु पक्षी ऐसे होते हैं जो मुझ पहाड़ी पर अपना घर बनाकर रहते हैं। कई जंगली भी मुझ में घर बना कर जब रहते हैं तो मुझे अच्छा भी लगता है क्योंकि मैं सोचती हूं कि चलो मैं किसी तरह से इनकी मदद तो कर सकती हूं।

कई बार जब ज्यादा हवा या पानी आता है तो मुझ पर लगे पेड़ पौधे एवं रहने वाले जीव जंतुओं पर काफी प्रभाव पड़ता है लेकिन मुझे कोई खास असर नहीं पड़ता क्योंकि मैं विशालकाय हूं मेरी वजह से हवा का मार्ग भी बदल जाता है। गर्मी में भी मैं सूर्य की रोशनी को अपने में से कभी भी नहीं गुजरने देती मैं बहुत ही विशालकाय हूं इसलिए मैं खुद को काफी अच्छा भी समझती हूं।

दोस्तों मेरे द्वारा लिखा पहाड़ी की आत्मकथा आपको कैसा लगा यदि आपको अच्छा लगे तो इस आर्टिकल को ज्यादा से ज्यादा शेयर करना ना भूलें और हमें सब्सक्राइब जरूर करें।

Add a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *