आचार्य ओशो रजनीश की जीवनी Osho rajneesh biography in hindi

acharya rajneesh biography in hindi

दोस्तों आज हम आपको इस आर्टिकल के माध्यम से आचार्य ओशो रजनीश की जीवनी के बारे में बताने जा रहे हैं । चलिए अब हम आगे बढ़ते हैं और आचार्य ओशो रजनीश की जीवनी को बड़ी गहराई से पढ़ते हैं ।

osho rajneesh biography in hindi
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जन्म स्थान व परिवार – आचार्य ओशो रजनीश का वास्तविक नाम चंद्र मोहन जैन था । आचार्य ओशो रजनीश का जन्म 11 दिसंबर 1931 को मध्य प्रदेश राज्य की रायसेन जिला के कुचवाड़ा ग्राम में हुआ था । इनके पिता का नाम श्री बाबूलाल जैन था । इनकी माता का नाम सरस्वती जैन था । यह बचपन से ही शांत स्वभाव के व्यक्ति थे । इनका प्रारंभिक काल का समय ज्यादातर अपने नाना नानी के यहां पर व्यतीत हुआ था ।

जब इनके नाना का देहांत हो गया था तब आचार्य के माता पिता ने वापस अपने पास बुला लिया था । यह अपने माता पिता के साथ ही रह रहे थे । यह ज्यादा तर लोगों से बातचीत नहीं किया करते थे क्योंकि यह शांत स्वभाव के थे । इनको किसी से बातचीत करना अच्छा नहीं लगता था । जैसे जैसे उम्र बढ़ती गई इनको ज्ञान प्राप्त होता गया और यह लोगों को उपदेश देने लगे थे ।

आज इनको भारत के साथ कई देश विदेश के लोग एक आध्यात्मिक गुरु के रूप में जानते हैं । उनके उपदेशों से कई लोगों ने अपना जीवन धन्य बनाया है । आचार्य ओशो रजनीश ने देश विदेश में भी अपने उपदेश दिए हैं । इनको भगवान ओशो रजनीश भी कहा जाता है ।

शिक्षा – आचार्य ओशो रजनीश ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा शासकीय आदर्श उच्चतर माध्यमिक विद्यालय से प्राप्त की थी । इसके बाद उन्होंने सागर के ही विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन किया था । जिस समय यह सागर के विश्वविद्यालय में पढ़ रहे थे उस समय में इनका जीवन बहुत ही सरलता से गुजर रहा था । ओशो रजनीश जीने ग्रेजुएशन सागर से 1957 में किया था ।

जब आचार्य ओशो रजनीश जी बाल्य अवस्था से युवा अवस्था में आए तब इनका स्वभाव एक नास्तिक व्यक्ति की तरह हो गया था । इनको भगवान पर किसी तरह का कोई विश्वास नहीं था लेकिन धीरे-धीरे समय बीतता गया उनको ज्ञान प्राप्त होता गया और लोगों को उपदेश देने लगे ।

आचार्य जीवन – चंद्र मोहन जैन जिनको बाद में आचार्य ओशो रजनीश जी के नाम से सभी जानने लगे थे । उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद एक लेक्चरर बनने के लिए आवेदन किया और उनका सिलेक्शन हो गया था । आचार्य ओशो रजनीश जी का सिलेक्शन रायपुर विश्वविद्यालय में संस्कृत लेक्चरर के रूप में हुआ था । वहां पर यह छात्रों को संस्कृत भाषा में लेक्चरर दिया करते थे , उनको संस्कृति महिमा के बारे में बताया करते थे लेकिन उस विश्वविद्यालय में आचार्य ओशो का रहन सहन ठीक नहीं था ।

जिसके कारण वहां के कुलपति ने ओशो रजनीश को विश्वविद्यालय से हटाने का निर्णय लिया ।ओशो रजनीश का रायपुर विश्वविद्यालय से ट्रांसफर कर दिया गया था और उनकी पोस्टिंग जबलपुर यूनिवर्सिटी में हो गई थी । जहां पर ओशो रजनीश दर्शन शास्त्र विषय में छात्रों को लेक्चर दिया करते थे । यहीं से उन्होंने अपने उपदेशों का प्रचार करना प्रारंभ किया था । उन्होंने गांधीवादी रूढ़िवादी पर कई भाषण दिए थे । उनको सभी जानने लगे थे और 1960 को चंद्रमोहन जैन को आचार्य रजनीश के नाम से जानने लगे थे ।

यह आचार्य रजनीश के नाम से फेमस हो गए थे । समय बीतता गया धीरे-धीरे यह अपने उद्देश्य आगे बढ़ाते गए । 1970 को आचार्य ओशो रजनीश को सभी भगवान रजनीश कहने लगे थे । इसके बाद आचार्य ओशो रजनीश को 1989 के समय सभी इनको ओशो के नाम से संबोधित करने लगे थे । यह नाम इन्होंने ही रखा था । जब आचार्य ओशो रजनीश जी एक महान कभी विलियम जेम्स की कविता पढ़ रहे थे तब कविता में ओशो शब्द आया ।

जिसका शाब्दिक अर्थ होता है सागर में समाहित हो जाना । यह शब्द और इसका अर्थ बहुत ही अच्छा था । इसलिए आचार्य ओशो रजनीश ने ओशो शब्द का उपयोग अपने नाम में किया । इन्होंने एक अध्यात्मिक गुरु के तौर पर सबसे पहला अपना भाषण मुंबई में दिया था । इसके बाद वह रुके नहीं मुंबई से लेकर देश विदेशो तक अपने भाषण दिए हैं । आचार्य ओशो रजनीश ने अपना पहला आश्रम पुणे ने स्थापित किया था । इसके बाद वह अमेरिका गए अमेरिका में उन्होंने अपने उपदेश सभी के सामने रखें ।

सभी ने उनके उपदेशों को स्वीकार किया और अपना दूसरा आश्रम अमेरिका के ऑर्गन में खोल दिया था । जहां पर वह अपने उपदेश देते थे । जब 1985 में अमेरिका में खाद संबंधित एक बड़ी दुर्घटना हुई तब संयुक्त राज्य अमेरिका ने आचार्य ओशो रजनीश को वहां से वापस भेजने का विचार बनाया । आचार्य ओशो रजनीश को संयुक्त राज्य अमेरिका से निर्वासित कर दिया गया था । इसके बाद आचार्य ओशो रजनीश कई देशों में भटकते रहे ।

तकरीवन 20 देशों ने ओशो रजनीश को रूकने एवं अपना आश्रम स्थापित करने का अधिकार नहीं दिया । जिसके बाद आचार्य रजनीश ओशो भारत वापस आ गए और अपना समय पुणे के आश्रम में गुजारने लगे थे । वहीं पर उनका देहांत 19 जनवरी 1990 को हो गया था ।

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