मातृ देवो भव पर निबंध Mathro devo bhava nibandh in hindi

Mathro devo bhava nibandh in hindi

Mathro devo bhava  – दोस्तों आज हम आपको इस आर्टिकल के माध्यम से मातृ देवो भव पर लिखे निबंध के बारे में बताने जा रहे हैं । तो चलिए अब हम आगे बढ़ते हैं  और इस आर्टिकल को पढ़कर मातृ देवो भव पर लिखे  निबंध के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त करते हैं ।

Mathro devo bhava nibandh in hindi
Mathro devo bhava nibandh in hindi

मातृ देवो भव के बारे में – मातृ देवो भव का अर्थ होता है कि माता देवताओं से भी बढ़कर होती है। संसार में सबसे बड़ी माता होती हैं क्योंकि जब माता अपने बच्चे को जन्म देती है इससे पहले माता अपने बच्चे को 9 महीने तक अपनी कोख में रखती है । जब बच्चा दुनिया में जन्म ले लेता है तब मां से ज्यादा अपने बच्चे को कोई भी प्यार नहीं देता है । माता ही अपने बच्चे को ज्ञान देती है , संस्कार देती है । माता ही अपने बच्चे की पहली गुरु होती है । जिस तरह से पिता , गुरु अपने बच्चे की भविष्य की उज्जवल कामना के लिए कार्य करते हैं उसी तरह से मां भी अपने बच्चे के भविष्य के लिए अपने बच्चे को ज्ञान देती है ।

एक बार जब  यक्ष ने धर्मराज युधिष्ठिर से बातों ही बातों में यह पूछा कि पृथ्वी से सबसे भारी कौन होता है तब युधिष्ठिर ने यक्ष के सवाल का जवाब देते हुए कहा कि पूरी दुनिया में सबसे भारी माता होती हैं । माता के द्वारा ही बच्चे का भरण पोषण किया जाता है । माता के द्वारा ही बच्चे को सबसे ज्यादा प्यार , दुलार प्राप्त होता है । सभी बच्चों के लिए उनकी माता ममतामई होती हैं क्योंकि माता के अंदर ममता कूट कूट कर भरी होती है । जब बच्चा किसी  से जूझ रहा होता है  तब माता के द्वारा ही उस बच्चे का मार्गदर्शन किया जाता है  क्योंकि माता कभी अपने बच्चे को गलत रास्ता नहीं दिखाती है ।

माता अपने बच्चे के लिए एक रहस्यमई होती है क्योंकि माता के अंदर बच्चे के प्रति इतना प्यार  छुपा होता है जिसकी कल्पना कोई भी नहीं कर सकता है । माता अपने बच्चे के प्रति स्नेह प्रेम की भावना रखती है इसलिए हमारे ग्रंथों   पुराणों में भी माता को सर्वश्रेष्ठ बताया है । माता के बिना यह दुनिया अधूरी है । माता के द्वारा ही बच्चे का भरण पोषण किया जाता है । हमारे प्राचीन ग्रंथों ने बताया गया है कि जब अभिमन्यु का जन्म माता की कोख में हुआ तब अपनी माता की कोख में रहकर अभिमन्यु ने चक्रव्यूह में प्रवेश करने की विद्या प्राप्त कर ली थी ।

कहने का तात्पर्य यह है कि अभिमन्यु ने अपनी माता के गर्भ में रहकर अपनी माता से ज्ञान चक्र में विद्या सीखकर अपने आप को सर्वश्रेष्ठ बना लिया था । बच्चों के जीवन में मां से बढ़कर कोई गुरु नहीं हो सकता है । जब किसी मां का बच्चा दुखी रहता है तब मां की ममता उसे खुश कर देती है । जब कोई मां अपने बच्चे से प्यार करती है , अपने बच्चे से दुलार करती है तब वह बच्चा अपने जीवन में आनंद खुशी प्राप्त करता है । माता के बिना यह दुनिया अधूरी है जिस बच्चे की माता नहीं होती है वह माता की कमी महसूस  करता है । माता पिता के बिना कोई भी बच्चा अपने भविष्य की उज्जवल कामना नहीं कर सकता है ।

माता पिता के प्यार से वह दुनिया में सफलता प्राप्त करता है इसलिए हम सभी को अपने माता-पिता का सम्मान करना चाहिए , उनका अनादर कभी नहीं करना चाहिए । कुछ लोग ऐसे होते हैं जो बुढ़ापे में अपने माता पिता को घर से निकाल देते हैं वह दुनिया के सबसे पापी व्यक्ति होते हैं क्योंकि जिस माता-पिता के द्वारा हमारा भरण पोषण किया गया है , हमको ज्ञान दिया गया है जब हमारा समय आता है कि हम उनकी सेवा करें तब हम उनके प्रति  घृणा की भावना रखते हैं यह सही नहीं है । यदि हम एक इंसान हैं तो हमें इंसानियत दिखाना चाहिए और अपने माता-पिता का सम्मान करना चाहिए ।

हमारा सबसे बड़ा कर्तव्य  यह है कि हम अपने माता पिता की आज्ञा का पालन करें क्योंकि माता-पिता के पास अनुभव होता है जिस अनुभव को हम प्राप्त करके सफलता की ऊंचाई तक पहुंच सकते हैं । जब हम अपने माता-पिता से ज्ञान अर्जित करके कार्य करते हैं तब हमारे सभी कार्य सफल होते हैं । जब हम सफलता प्राप्त करते हैं तब सबसे ज्यादा खुशी माता को होती है क्योंकि जब माता को अपने बच्चे की सफलता का पता चलता है तब वह फूली नहीं समाती है क्योंकि माता के लिए अपने बच्चे से बढ़कर और कुछ भी नहीं होता है ।

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