कोमरम भीम की कहानी Komaram bheem biography in hindi
Komaram bheem biography in hindi
Komaram bheem – दोस्तों आज हम आपको इस आर्टिकल के माध्यम से कोमरम भीम के जीवन परिचय के बारेे में एवं कोमरम भीम की कहानी के बारे में बतानेे जा रहे हैं । तो चलिए अब हम आगेेे बढ़ते हैं और इस आर्टिकल को पढ़कर कोमरम भीम के बारेे में जानकारी प्राप्त करते हैं ।
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कोमरम भीम के जन्म के बारे में – कोमरम भीम भरतीय स्वतंत्रता सेनानी रहे हैं । भारतीय आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी कोमरम भीम का जन्म 22 अक्टूबर 1901 को भारत देश के तेलंगानाा राज्य के जोदेघाट जिले में स्थित अलीदाबाद के जंगलों में स्थित गोंडा आदिवासी समुदाय में हुआ था । जहां पर वह बड़े हुए थे ।
कोमरम भीम के जीवन की कहानी – कोमरम भीम का जब जन्म हुआ तब उस समय भारत पर अंग्रेजों का शासन था और अंग्रेजो के द्वारा कोमरम भीम के गांव में रहने वाले लोगों पर काफी अत्याचार किया जाता था ।अपने बचपन काल के समय में कोमरम भीम ने अपने समाज के लोगों के साथ अन्याय होते हुए देखा था । कोमरम भीम ने वास्तविक रूप से कोई पढ़ाई नहीं की है ।बस कोमरम भीम अन्याय के खिलाफ लड़ाई लड़ना चाहते थे । जब भारत देश के वीर पुत्र भगत सिंह की मौत की खबर पूरे भारत में फैली तब उनकी मौत से कोमरम भीम काफी प्रभावित हुए थे और वह भारत की स्वतंत्रता के लिए आंदोलन करने लगे थे ।
जब कोमरम भीम की मुलाकात सीताराम राजू से हुई तब वह वीर सीताराम राजू से काफी प्रभावित हुए थे । इसके बाद उनके जीवन की सबसे बड़ी घटना 1940 में गठित हुई थी । 1940 में अक्टूबर के महीने में उनके गांव में एक पटवारी जिसका नाम लक्ष्मण राम निजाम था वह आया और गांव के सभी लोगों के साथ दुर्व्यवहार करने लगा था । लक्ष्मण राम निजाम गांव की सभी महिलाओं के साथ गाली गलौज करने लगा था । यह देखकर कोमरम भीम को बहुत गुस्सा आ गया और कोमरम भीम के हाथों सिद्दीकी की मौत हो गई थी ।
जब यह घटना हुई तब कोमरम भीम पूरी तरह से घबरा गए थे । इसके बाद कोमरम भीम अपने साथी कुंडल के साथ वहां से भाग गए थे । भागते भागते कोमरम भीम अपने साथी के साथ चंद्रपुर चले गए थे । चंद्रपुर जाने के बाद वह बिटोवा से मिले थे । बिटोवा चंद्रपुर का रहने वाला था । उसकी एक बड़ी प्रिंटिंग प्रेस थी । जिस प्रेस पर वह अंग्रेजों और निजाम के खिलाफ खबरें छापता था । विटोबा ने कोमरम भीम की मदद की और कोमरम भीम को अपने साथ ले गया था । कई समय तक कोमरम भीम बिटोवा के साथ रहे थे ।
बिटोवा के साथ रहकर कोमरम भीम ने बिटोवा से हिंदी , इंग्लिश और उर्दू भाषा सीखी थी । समय बीतने के बाद बिटोवा की प्रेस पर अंग्रेजो के द्वारा छापा मारा गया था और बिटोवा को गिरफ्तार कर लिया गया था । जिसके बाद बिटोवा की प्रेस बंद हो गई थी और कोमरम भीम अकेला हो गया था ।इसके बाद कोमरम भीम रेलवे स्टेशन पर गए और वहां पर कोमरम भीम की मुलाकात एक ऐसे व्यक्ति से हुई जो अनजान था । कोमरम भीम उस व्यक्ति के साथ घुल मिल गए थे और वह उस व्यक्ति के साथ असम चले गए थे ।
कोमरम भीम उस व्यक्ति के साथ असम के एक चाय बागान मे काम करने लगे थे । चाय बागान में कोमरम भीम काम करने लगे थे । उस चाय बागान में काम कर रहे मजदूरों के साथ चाय बागान मालिक के द्वारा अन्याय किया जा रहा था । जिसके खिलाफ कोमरम भीम ने आवाज उठाई थी । जब कोमरम भीम ने चाय बागान मालिक के खिलाफ आवाज उठाई तब कोमरम भीम को सैनिकों के द्वारा गिरफ्तार करवा दिया गया था । जब कोमरम भीम को गिरफ्तार कराया गया तब वह सैनिकों के द्वारा प्रताड़ित किया जाने लगा था । जेल में भीम तकरीबन 4 दिनों तक रहे थे ।
4 दिनों के बाद जब भीम जेल से निकले तो वह एक माल गाड़ी में बैठ कर बल्लारशाह स्टेशन चले गए थे । जब वह असम में अपना जीवन व्यतीत कर रहे थे तब वह अल्लूरी सीताराम राजू के बारे में सुनते रहते थे । जो आंध्र प्रदेश में रहने वाले आदिवासियों के संघर्ष में साथ दे रहे थे । इसके बाद कोमरम भीम की मुलाकात लच्छू पटेल से हुई जो एक देवदम गांव के मुखिया थे । जिस समय लच्छू पटेल की मुलाकात कोमरम भीम से हुई उस समय लच्छू पटेल के एक जमीन का मुकदमा चल रहा था । जिस मुकदमे को असीफाबाद के अमीन साहब के सामने रखने में कोमरम भीम ने उनकी मदद की थी ।
जिसके बाद कोमरम भीम वहां के आस-पास के गांव के रहने वाले लोगों के दिलों में छा गए थे । कोमरम भीम के द्वारा गोरिल्ला युद्ध भी किया गया था । जो 1928 को प्रारंभ हुआ और 1940 तक चला था । कोमरम भीम की शादी के बारे में ऐसा कहा जाता है कि लच्छू पटेल ने ही कोमरम भीम की शादी करवाई थी । लच्छू पटेल ने कोमरम भीम की शादी सोम बाई से करवाई थी । जब अंग्रेजों , निजाम के सैनिकों ने यह देखा कि भीम बगावत करने पर उतर आया है तब 8 अक्टूबर 1940 को थानेदार अब्दुल सत्तार के द्वारा कोमरम भीम की घेराबंदी की गई थी और भीम को आत्मसमर्पण करने के लिए बोला गया था ।
परंतु कोमरम भीम ने आत्मसमर्पण करने से मना कर दिया था जिसके कारण अब्दुल सत्तार के सैनिकों ने भीम की गोली मारकर हत्या कर दी थी ।
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